कोई
बड़ा
पुराना सा महल
था सहर के उस मुहाने पर ..दीवारे बेहद
मज़बूत ओर सजी
धजी ।चबूतरों पर
लोहे की बड़ी
बड़ी सलाखे थी ,जिसमे ज़हर की एक
महीन
परत चडी थी । महल
की
मजबूत
दीवारों पर कुछ सुराख थे ,जहाँ से हर वक़्त
एक
धुंधला
सा
उजाला आता रहता । वहां से गुजरने
वाला हर राहगीर दीवार
के उस पार
की ज़िन्दगी को बड़े कोतुहल
से देखता था ,लोहे
से बना कवच पहने
एक बड़ा दरबान
उस महल के
कीवाड पर हर वक़्त
रखवाली किया करता ,सहर वालो का कहना था
की उस महल मे
ना
ही कोई चीज़
आज तक अंदर गयी और ना
बहार आयी ।कई परिंदों के
सर महल के
पीछे बने
कुंए पर कलम कर दिए गए थे क्योंकि उन्होंने उस
महल के अंदर
घुसने की गलती की थी ।
पूर्णिमा की
सर्द रातों मे
अकसर
वहां
बड़े बड़े उड़न
खटोले उडते थे ,जिनमे
बड़े बड़े दानव
उड़कर उस महल के गलियारों मे उतेरते
थे ।रात भर ढोल
नगाडे बजते ,कुछ चीखे
भी सुनायी देती ,पर
ढोल की आवाज़
मे वो कहीं
गुम हो जाती ।जो
भी उस दिन
वहां रोता या
आंसू बहाता उसकी
जुबां काटके एक
बहुत बड़े
कुंए मे फैंक
दिया जाता ।......सुना है वहां
से आज तक कोई वापस
नहीं लोटा । महल
के बहार वालो
के लिए जितनी
अंदर की ज़िन्दगी कोतुहल
भरी
थी ,उससे कही
ज्यादा अंदर वालो
के लिए ।...आंसुओं
की गंध को
सूंघने वाले अलग दानव
विचरण करते वहां ज्यूँ
ही किसी का
आंसू मिलता वो
उसी वक़्त जान
से हाथ धो
बेठता ।हर
कोई अंदर ही
अंदर आंसू समेट
खोखला हो चूका
था
रात
भर ये हो
हल्ला हर पूर्णिमा को
कई पीड़ियों से होता
आ रहा था। और
आगे भी ये
सिलसिला ज़ारी रहता ,अगर
उस रोज़ कुंए में पड़ी
उस मरणासीन
बच्ची ने अपनी
हिम्मत समेट कर अगर
वहा से निकलने
का प्रयास ना
किया
होता ।
उस
रोज़ पूर्णिमा की
रात महल के
किसी गुप्त कमरे
मे रखे नक्शे
को देख ने
की हिम्मत की
थी किसी सरफिरी
लड़की ने ,उसने
सुना था महल
के बहार जाने
का रास्ता केवल
उस नक्शे में
छुपा है। .. लड़की ने
कोशिश भी की उस
नक्शे को चुराने
की, पर उसका सर
धड से अलग
कर दिया गया ,पर
मरने से पहले उस
महल से भागने
का रास्ता वो एक बच्ची को
बता गयी ।मगर उस
बच्ची को भी
उन दानवों ने
ढूंड निकाला और कुंए
में फैंक दिया
उस
रोज़
कुंए मे में पड़ी बच्ची
ने अपने नाखुनो से
उस कुंए को कई
सालो तक खोदा । अब वो
बुढी हो चली थी
पर हारी नहीं थी
उसकी
हिम्मत ज़ब ज़ब टूटती , तब तब
वो उस पूर्णिमा की
रात को याद करती और
गुस्से से भर
उठती ,अपने दोस्तों और
बहनों को बचाने का ख्याल
उसे दूगनी उर्जा से
भर देता ..
पर अब
उन दानवो की संख्या ज्यादा होने लगी
थी ।अब हर
रात एक युवती
का खून होता ,उसको
कई हिस्सों में
विभाजीत किया जाता ,और युं ही सडने
को छोड़ दिया जाता
..क़त्ल के बाद दानव
अपने उपर एक
सफ़ेद चादर ओडते थे ।वो
एक शान का
सबब था ..मौजूद
हर लड़की को
एक ख़ास किस्म
का अर्क पिलाया
जाता । कहते हैं उस
अर्क से उनकी
आवाज़ धीरे धीरे
जाती रही ।और
वो सब निसब्ध
हो गयी .
वही दुसरी ओर वो लड़की
रास्ता ढूंढते ढूंढते महल के
दुसरी तरफ मौज़ूद कुंए
के रास्ते बहार आ गयी थी
..वहा सेकड़ो कबूतरों को
मरा देख वो
सिहर उठी थी
....... सुना
है वो युवती
कुछ
ही देर जिंदा रही ,नजाने कुछ शब्द
बोली और फिर चल
बसी ...वहां से
गुजर रहे कबूतरों के
झुंड ने वो
सुना जो उस
युवती ने कहा ...उसके
आखरी शब्द
क्या थे। किसी
को नहीं पता
... पर
उसके कुछ दिन बाद सेकड़ो
कबूतरों का झुण्ड वहा जमा
हुआ
...खूब .
रोया और फिर
सबने मिलकर एक
जोरदार हमला किया
...उस
रोज़ महल के
अन्दर दानावो की
संख्या कम थी ।सेकड़ो
कबूतरों ने
जान गवाई प़र वो लड़ते रहै
...उनकी
चोंच लगातार महल की मज़बूत दीवार पर टकराती
और टूट जाती । ...पर
वो हारे नहीं ,कई दिनों
की
के उन्होंने महल
पर एक बडा
छेद कर
दिया ।सबको आजाद क़राया.....पर
वहा कोई बोलने की हालत में
नहीं
था ।सब आवाज़
खो चुके थे
कई
साल लगे उन लड़कियों को कुछ
शब्द अपने मुह तक लाने में .....वो शब्द थे ....बोल की लब आजाद है तेरे.....अब इस
बात को कई
साल हो गए
..कुछ लोग तो
ये भी कहते
हैं ..वो दीवारों पर
जो सुराख दिखते
है ना ...वो
उन
लड़कियों ने अपने नाखुनो
से किये थे ।ताकी
कोई बाहर से उन्हें देखे
और मदद कर
सके .....पर वो शायद नहीं जानती
थी ,की जिस मदद की उम्मीद वो
बहार से कर रही थी , वो उन्हें अंदर से
मिलने
वाली थी
एक
किस्सा
और जुड़ा है इससे
की जब ये दानवी
महल की दीवारों को
उन छोटे छोटे
कबूतरों और उस बच्ची
के मदद से
हिला दिया गया तो इस जाती ने
अपना नाम महिला
........यानी
मज़बूत
से मज़बूत महल
को हिला देने
वाली रखा…
कहते
हैं जब दानवों
को इस बात का
पता चला तो
वो गुस्से से
बिलबिला उठे ।वो आज भी
उन सभी महिला
जाती को ढूंढ़
रहे
हैं। पर अब
वर्चस्व की लड़ाई में महिला काफी
ऊँची हो चली
है ...और रही बात
उन कबूतरों की
.....की
वो कौन थे ?..तो
यह कह पाना
थोडा मुशकिल है ,,,पर
शायद वो कबूतर कोई
और नहीं ...उन
महिलाओं की सेकड़ो उमीदे
थी ............
सुना है दीवार के उस पार उमीदों
के सूरज हैं