वो जुगनुओं से ख्याल अक्सर अपनी रौशनी का एक अंश छोड़ जाते हैं ...
आसमान में सितारों ने अब जुगनुओं से नए दोस्ती गांठी है
कुछ पुराने ख़त और कई सो सौगाते जुगनुओं के जिम्मे हैं अब
घुप गलियों में जैसे रोता है कोई चीख कर
अपने हिस्से के आसमान पर छाई है मटियाली सी बदली
जैसे मिली हो भीख पर।
विश्व युद्ध की अनगिनत आवाजें
संगलों में फसे कठघरे में खड़े बेगुनाह सवाल ,और उन पर चलते मुकदमे
बेवक्त मरे बेगहुनाहों का अद्रीसय झुण्ड। आन्दोलन को तैयार
दोनों बाहें फैलाए अपनी चुनरी पर दिखाती अपनों के राख के कुछ छी टे
हिटलर से पूछती एक वाजिब सवाल
किताबों से बतियाता एक पगला विचार
की नहीं होता इन गठीली सी किताबों में सच का प्रतिबिम्ब
गहरे शोर में छुटती आखरी सांस ..अहसास करती है
की मंदिर की घंटियों के बीच कटे पड़े मेमने मे भी होते है प्राण।
जीना इसी का नाम है