कमरे में एक ज़ोरदार आवाज़ से नियति चौंक कर उठ खड़ी हुई। दौड़कर वो दूसरे कमरे के पास पहुंची। कमरे में परविषट करते ही नियति एकदम आवक रह गयी. अपने अंदर उठती उथल पुथल को कुछ देर थामे वो शांत खड़ी रही ,उसकी चुप्पी ने कमरे में मौजूद शान्ति में कुछ और इज़ाफ़ा सा कर दिया था था। सामने फर्स पर बैठी माँ अपने गाल पर पड़े तमाचे के निसान को आंसुओं से अब काफी हद तक धो चुकी थी। १२ साल की नियति ने बीते एक साल में ऐसा होते कई बार देखा था. दादी का तो ये अब रोज़ का सिलसिला हो चला था। हलाकि माँ पर होते इस शारीरिक शोषण को लेकर ,,,उसे अपनी माँ से सहानभूति कितनी थी इस बात का आभास तो नियति को भी नहीं था ,,उसे कोई सहानुभूति ,थी भी या नहीं, इस पर भी उसे संसय था। । यूँ तो उसे कभी कभी लगता जैसे माँ को अब इन चीज़ों की आदत सी हो गयी है। उसको ना ही अपनी माँ और न ही अपने पिता में कोई आदर्श दीखता। पिताजी के लिए तो उसके मन में सम्मान तक का भाव नहीं था। उसका बस चलता तो घर में मौजूद उनकी सारी तस्वीरों को बहार फेंक देती। पर वो ये बात अच्छी तरह जानती थी , की इस बिना सर पैर के गुस्से को पाल के भी उससे कुछ हासिल नहीं होने वाला था। वो भी गुस्सा उस व्यक्ति के लिए जो अब इस दुनिया में नहीं रहा। पिछले वर्ष तक जब पिताजी ज़िंदा थे तो माँ को वो रोज़ गरियाता और पीटते। माँ का सरीर उनके लिए बस एक पंचिंग बैग भर था। जब सब सो जाते तो माँ बस अपने घावों पर बिना आवाज़ किये मरहम लगाती। कुछ घावों तक तो यत्न कर मरहम लग जाता तो कुछ घाव उनके यत्न से भी परे होते और मरहम से भी। पिताजी का देहांत किडनी फ़ैल होने से हुआ। पर नियति हमेसा हैरान रही की इतनी शारीरक प्रतारणा झेलने के बाद भी माँ ने पापा को बचाने के लिए पूरी सिद्दत से सेवा क्यों की । वो तो आज़ाद हो रही थी. तिल तिल मरने से , पर वो फिर भी पूर्ण सेवाभाव से लगी रही। काफी ज़द्दोज़हद के बाद भी वो उन्हे बचा नहीं पायी।
पिताजी की मृत्यु के रोज़ भी जहाँ सब ग़मगीन थे पर नियति के चेहरे पर एक अजीब सी शान्ति थी।या फिर सुकून था की अब रोज़ रोज़ की मार पीट से तो ये घर मुक्ति पायेगा। पर उसे इस बात का जरा भी आभास नहीं था की पिताजी की निर्दय भूमिका मे अब उसकी दादी आ जाएंगी। उस रोज़ भी पिताजी की मौत का ठीकरा दादी ने माँ पर फोड़ा। बोली मनहूस है। तीन साल पहले जब पिताजी ने दूसरी शादी की थी तो,,,,, ये दादी ही थी जो ये कई बार कह चुकी थी. की सुशील और खूबसूरत बहु है ,पहले वाली से तो लाख गुना अच्छी है। नियति की पहली माँ की मौत कैसे हुई ये तो वो कभी नहीं जान पायी पर बस अपनी पहली माँ की मौत के दिन उसे दूसरे कमरे मे जाने को बोला था। … और बाद मे दादी ने कहा की तेरी माँ जल गयी । उसे हमेसा लगता था उससे कुछ छुपाया गया। २ साल तक तो उसने अपनी नयी माँ से सीधे मुह बात तक नहीं की,,,,,,,,,पर उसकी माँ हर वक़्त और हर मुमकिन प्रयास करती उसके करीब आने का । उस रोज़ पिताजी की मौत के बाद उसने पहली बार अपनी माँ से कुछ आत्मीयता से बात की थी,,, वो भी स्कूल के किसी फारम में गार्ज़ियन के हस्ताकसर चाहिए थे। उसने धीमी से उनका नाम पूछा था । । बड़े ही ममतत्व से वो बोली "मनीषा" और फिर क्या था वो एक एक कर उन् से कई सवाल पूछ गयी. . उस रात वो काफी देर तक उनसे बतियाती रही। उसे अपनी नयी माँ अब भाने लगी थी। खासतौर पर ये जानने के पश्चात की उन्होने ये शादी किन हालातों मे की। मानसी बेहद ही गरीब परिवार से थी ,शादी से एक रोज़ पहले तक तो उसे इस बात का आभास तक नहीं था की अगले पल उसका जीवन पूरी तरह से किसी की गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ा जाने वाला था। .... कहा पहाड़ो की स्वछंद फ़िज़ाओं में विचरण करने वाली इक मासूम सी लड़की, जिसके सर पर अगले ही दिन ढेरों ज़िम्मेदारियों का अनचाहा बोझ डाल दिया जाने वाला था.. उस रात मनीषा माँ से खूब लड़ी बोली वो ये शादी नहीं करेगी। पर माँ की मज़बूरी और तीन बहनो के धूमिल होते भविस्य को फिर से उड़ान देने के लिए,,,,,, उसने माँ को इस रिश्ते के लिए मूक सहमति दे दी।
" नियति"" , एक टक मनीषा की बात सुनती रही। …
( अभी जारी है ) ( to be continued )