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Friday, April 10, 2015

कलकत्ता ....मेरी जान

गरीबी को पुनः परिभाषित करना है तो बंगाल चले आएये....एक समय हिन्दुस्तान के विकास का ध्वज़वाहक कहे जाने वाला ,अब विकास की पिछली पंक्ति में कही पालती मार के बैठ गया है । देहरादून से हावड़ा जंक्शन पर पहुंचने पर बंगाल के पिछड़ेपन का इल्म बामुश्किल होता है । स्टेशन की भव्यता देख आप उस से मंत्रमुग्ध हुए बिना रह नहीं सकते । हावड़ा और हुगली का मेल निसंदेह कोलकत्ता में आज भी आकृषण का केंद्र है । कतारों में हंसी ठीठोलि करती पीली एम्बसडर टैक्सी दृश्य मे कुछ और चाँदनी बिखेरती हैं ।कुछ कुछ हिस्से तो चंद रोज़ पहले आज़ाद हुए भारत की जीवंत तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। हलाकि, और महानगरो के मुकाबले कोलकत्ता रेस में कुछ पीछे सरकता नज़र आता है । पर फिर भी यहाँ बहुत कुछ है जो आपके तेज़ कदमो को ठिठकने कर मज़बूर कर देगा । अंग्रेजों की राजशाही ज़िन्दगी का सजीव चित्रण अगर आपको देखना है तो सीधे रुख कीजिये विक्टोरिया हाउस का। अगर जानने का मन हो की इतिहास कहा जाके दुबग गया है तो इंडियन म्यूजियम आपको आकर्षित कर सकता है । स्पोर्ट्स लवर हैं तो इडेन गार्डन और खरीदारी के शौक़ीन हैं तो पार्क स्ट्रीट एक लुभावनी जगह है ।पर ज्यूँ ज्यूँ आप सिटी ऑफ़ जॉय को छोड बंगाल के ग्रामीण इलाकों में जाएंगे गरीबी और पिछड़ेपन का जीवन के साथ संघर्ष आपको तक्लीफ़ देह लग सकता है । ऐसा ही एक इलाका है murrarai ...झारखंडः बॉर्डर से सटा होने के कारण कोयले का खूब इस्तमाल होता है । हवा मे धुंध है ,कोल डस्ट की वजह से सुरज पूरी धमक के साथ यहाँ दस्तक नहीं देता । स्वास्थ सेवाओं का भी कुछ ख़ास अच्छा हाल नहीं है । पर जगह जगह तालाब बना पानी संग्रक्षित करने की कला मुझे बेहद पसंद आई । मेरा कुल मिला कर बंगाल परवाश यादगार रहा ।बंगाल के बारे में अभी बहुत कुछ है जो लिखना है अपनी नज़र से ,पर फिलहाल ट्रेन अपने गन्त्तव तक पहुँच चुकी है ,यानी की दिल्ली।बाकी बातें बाद में । जनाब हठीयेगा... थोडा उतरना है .।