उसे तब प्यार का अहसास नहीं हुआ जब माहोल में प्यार के वो सारे मूल तत्व मौज़ूद थे । हवा में जब मदहोश करने वाला सिग्रेट के धुऐं का उपस्थित होना अनिवार्य था । जब जाम थे ,सेंटीमेंटल कहानियां थी ,जटिल प्रेम कथ्यों को सुलझाने को गुरुदत्त थे ,उलटी और आंसुओं की गंध मे कई प्यार की कहानियों को ज़मीनो दंज़ करने का इतिहास था । वो वक़्त मुफीद था ,पर नजाने उसे प्यार के कीड़े संक्रमित क्यों नहीं कर पाये । कॉलेज उसके लिए वो लॉन्चिंग पैड नहीं निकला। या निकला भी हो और उसने भूरी भूरी किसी नव युवती की पृशंसा भी की हो ,पर हमारे पल्ले कुछ न पड़ा।
सायं 8 बजे
ट्रेन निकलने की आखरी घोषणा , उसके हृदय गति लगभग दोगुनी रफ़्तार से दौड़ रही है । दून एक्सप्रेक्स प्लेटफार्म नंबर 1 पर खडी है । ट्रेन का नंबर उसे अपनी बढ़ती का उम्र का अहसास करता है ।एनाउंसर फिर से घोषड़ा करता है ,उसके जेहन में बस एक ही ख्याल है जल्द से जल्द होवरह पहुंचना । मन ट्रेन की गति से तेज़ हवारह पहुँच जाना चाहता है । उठते विचार दिमाग के खांचे में फिट नहीं होते । ट्रेन के दरवाज़े खुलते साथ ही मयंक ने अपना कोना पकड़ लिया ।नौकरी के बाद ये पहली लोंग जर्नी थी उसकी ....अब काम का दबाव भी तो पहले से बेहद ज्यादा था । , फिलहाल तो यही काफी था ईश्वर को शुक्रिया कहने को .की उसकी छूटी की अर्ज़ी लग गयी थी .... किस्मत साथ थी आज उसके , सीट भी एकदम पसंद की मिली .थर्ड ऐ सी मे अपनी पसंद की सीट मिल पाना यूँ भी इतना आसान नहीं होता ।
एक साल के दौरान उसे खुशनुमा अहसास बस तब ही हुआ था ,जब उसकी मुलाक़ात रूपाली से हुई थी । लाल iimc की बिल्डिंग के बहार वो पहली थी जिसे देख उसको बस यूँ लगा की नयी स्फूर्ति का ठंढा झौंक । वरना दोस्त तो सारे मातम मण्डली अपनें चेहरे पर जमाये रहते थे । नौकरी ज्वाइन करते साथ ट्रेनीस को जब iimc में बेझा गया तो तकरीबन सबके मुह इस मुद्रा में खुल गए जैसे ये बस सपना भर है और कुछ देर बाद उनसे छिन जाने वाला था । बस एक वो ही थी जिसे देख लगा की वो इस चीज़ की हक़दार है । बहरहाल 40 दिनों तक रूपाली के साथ एक सुखद अहसास की अनुभूति हुई । चटख धुप और कोरी सड़को पर भी उसकी मौजूदगी की खनक उसे पहली बसंती धुप जैसे लगती । जनाब अपने को हर कोण से वैसे भी कमतर ही आंकते थे .......सरकारी स्कूल की बैत से शूत शूत कर पढ़ाई का ककहरा जो सीखे थे । आत्मविश्वास पर तो मास्टर जी का पेटेंट था ..कभी बढ़ने नहीं दिया ..जब कोशिश की ....बस दे दना दन सूत दिया करते थे ........एक बार की बात है भाषण प्रतियोगिता में भाग लिया ....इण्टर स्कूल प्रतियोगिता थी ...हमारे स्कूल को भी आमंत्रण मिला .......गहन खोज बिन के बाद तय हुआ की हमारा मित्र स्कूल का प्रतिनिधित्व करेगा । क्योंकि दिखने में वो थोडा ओरो से धाँसु लुक का था ,तो उसका नाम सुझाया गया ।नस्ल बेध का पहला पाठ भी हम यहीं सीखे भाषण प्रतियोगिता में सम्मलित होने को मित्र ने नयी बुसट और पतलून भी सिल्वा ली ...टीचर को हमारे नाम का सिफारशि लैटर भी थमा दिया .ताकि हम भी सम्मलित हो सके प्रतियोगिता देखने को ...भैये टक्कर कोई औने पौने स्कूल से तो थी नहीं .......एक से एक धांसू स्कूल थे ..... । चमचमाते गाड़ियों से निकलते एकदम मलाई नुमा बच्चे , खासतौर पर कान्वेंट छोकरियों को देख कर तो दिल भक हुआ जा रहा था । मित्र भी माँ का आशिर्वाद ले दही पैल कर आया था । वैसे भी मालूम था वहां मौज़ूद श्रोताओं को हमारी स्कूल की ओर से छांछ ही बटेगी । पर हमारी जमात के एक आत स्कूलों की उपस्थति ने हमारा आत्म विश्वास में थोड़ी बढ़ोतरी कर दी । प्रतियोगिता बस शुरु होने से पूर्व ही अपनी जमात के स्कूल के वक्ताओं से हमारी अच्छी जान पहचान हो गयी ।वो भी हम जैसे ही घोड़ो की तरह कभी स्कूल के सभागार को तो कभी छोकरियों को निहारे जा रहे थे ।और ऐसा निहारना बनता भी था। खैर हम तो जानते ही थे ये भाषण प्रतियोगिता से ज्यादा भसड प्रतियोगिता होने वाली थी । पर मैदान में कूद चुके थे तो अब मोर्चा संभालना अनिवार्य हो गया था ।प्रतियोगिता आरम्भ हुई, पहली वक्ता स्टेज पर उपस्थित हुई ,उसकी चेहरे की कांति मंच की शोभा को चार चाँद लगा रही थी ।पहली वक़्ता अपनी बात रख लौटी तो हवा मे तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी ,मित्र की हतेली पसीने से तर गयी ।अब बारी थी दूसरे छात्र की जो कोई आर्मी स्कूल से था । बलज़्ज़ेर्स वगरह चढ़ा के आया था ।हमारे हाथ आनायस ही अपनी हैण्ड मेड स्वेटर की शोभा यात्रा कर आया । यूँ तो एक एक कर सारे वक़्ता बड़ा ओजपूर्ण भाषण दे रहे थे ,सिवाय कुछ वक्ताओं के जिनके भाव उनकी भाव भंगिमा का साथ छोडते नज़र आ रहे थे । वो मेज़ पहले पटक दे देते और उग्र भाव मेज़ की आवाज़ मंद पड़ने के बाद प्रकट होते ।परंतु ये भी हतप्रभ करने की अपनी एक विधा होती है ।ऐसा दाव हमारी जमात वाले स्कूल के वक्ताओं न ज्यादा आज़माया ,ज्यादा क्या मल्लब हमी लोगो ने किया ,पर जो ख़ास बात थी वो तीसरी वक्ता में थी । और वही थी जो अपनी वाक् शैली से हमारे मित्र के दिल में घर कर गयी थी ,अपना मारा रट्टा तो हमारा मित्र तकरीबन भूल ही चूका था । अब सब कुछ राम भरोसे था और कुछ हाथ भरोसे ,जिसमे हमारा मित्र कुछ मुख्य अंश अंकित किये बेठा था ।ये आईडिया मास्टर साहब का ही था ।
खैर तीसरी वक्ता ऐन मेरी स्कूल की थी ,जिसे देख बस डी डी एल जी जैसी फीलिंग आना सुरु हो गयी थी । यानी सीधे सब्दों में बोलू तो भैया लव बाईट था । उसके घुंगरेले बाल दूध में भीगे सेवैंय जैसे प्रतीत होते थे .......उस वक़्त खूबसूरती को दर्शाने हेतु ऐसे विषेशणो का इस्तमाल ज्यादा होता था । खैर जैसे तैसे अपनी बात रख मित्र अभिमान की मुद्रा में लौट आया । दोस्तों ने खूब होसला अफ़ज़ाई की ,पर मास्टर जी तो कुटाई करने की मुद्रा में नज़र आ रहे थे ।पर हमे इससे क्या ,हमारा सारा ध्यान तो उस तीसरी वक़्ता की जनम कुंडली निकालने में ज्यादा था ।तय हुआ की वही स्कूल के गार्डन में उजाड़ मारी कर कुछ फूल लाये जाएँ ,और लड़की को कुछ फ़िल्मी तरह से इप्रेस्स किया जाये । तो भैया फूल का गुलदस्ता तो हम एकदम टनाटन रेडी कर लिए ,अब तलाश थी सही समय और जगह की ,तो वो समय भी आया ,ज्यूँ ही प्रतियोगिता समाप्त हुई । मित्र और हम चल दिए प्यार का इज़हार करने , हमारे मित्र की तरह पुरुष्कार तो वो भी नहीं जीती थी बस एक चौकौर सा सर्टिफिकेट अपने हाथों में करीने से लिए आ रही थी । अपना वाले सर्टिफिकेट का तो अपन लोग कब का पंखा बना चुके था । मालुम था मास्टर जी पैदल ही रास्ता नापवाएंगे..... जब तक की हम सबका धाँसु लुक धुप में अपनी काया न छोड़ दे ,तो हम सोचे की तब तक थोड़ी ठंडी हवा ही खा ले । यूँ तो हमारे दीमाग में इश्क को इहज़ार रुपी किर्या तक ले जाने का पूरा खाका तैयार था पर ज्यूँ ही वो सामने मुखातिब हुई । मित्र की ठंडी आहें कब गहरी से गरम और फिर धड़ाम हो गयी हम खुद भी इस बात से अनभिज्ञ थे । अंग्रेजी में हम और हमारी मंडली वैसे भी सीले पटाके जैसे थे । किसी ने तिल्ली दिखाई नहीं की हम छुश बोल जाते थे ।और वो ठहरी कान्वेंट की ... । हमने हलकी सी बतीशी क्या बिखेरी वो सीधे हॉय बोल गयी और बोली ...यू स्पोक वेल । सर पर ठंठनाते हुए अंग्रेजी हवा में कही लुप्त हो गयी ,
अब मित्र और हम में इस बात को लेकर विवाद हो गया की बोले वाक्य में प्यार था या कड़वाहट।खैर तय हुआ की अगली सुबह अंग्रेजी की टीचर से समाधान ढूंढा जाएगा । और अपेक्षा अनुरूप सब्द का अर्थ वही निकला जो हम बोले थे । यानी की वाक्य प्यार की चाशनी में डूबा था ।पर अब देर हो चली थी ।पहला इश्क़ धड़ाम हो चला था, यानी की पूर्ण विराम ।उसके बाद हमारा कुछ चीजों को लेकर अपना मत बन गया ,जैसे की बड़ी बड़ी स्कूल के आहतों पर बंदरों की तरह लोट पोट करने वाले बच्चे भी हमे अपनी स्कूल में अव्वल दर्जे के छात्र लगत थे । और अपनी स्कूल के पहली पात के छात्र भी इन्ही स्कूलों में हमे अक्सर लंगूर नज़र आते ।सायद कुछ हद तक ये सत्य भी था ।जीवविज्ञान का सिद्धांत सुर्विअवल ऑफ़ टी फिट्टेस्ट हमारे दिमाग के कोस्टख में बाखुभी दर्ज़ था ।नवी दर्ज़े में चार्ल्स डार्विन से बायोलॉजी की पुस्तक में हमारी पहली भेंट हुई । बस वही दिन था जब हमने डार्विन काका को अपना गुरु मान लिया।
(अभी जारी है )