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Tuesday, October 4, 2011

शर्म



कांच का बड़ा सा दरवाजा जब चौकीदार ने खोला और हाथ को अपने  माथे   पर रखते हुए कहा " सलाम मैम साहब ". मैम साहब सुन कर महिला के चेहरे  पर एक तीखी मुस्कान बिखर गयी .उसको अपनी अमीरी पर फक्र होने लगा ...रोबीला चेहरा लिए वो अपनी  ६ साल की बेटी को ले दुकान में दाखिल हुई .दुकान के चमचमाते सीसों से टकराते हुए उस ६ साल के लड़की की  नज़र दूर बाहर खडी एक लड़की पर पड़ी .......कमजोर चेहरा ,दुबली पतली कद काठी की  वो करीब १६ साल की  लड़की उन्हें लगातार घूरे जा रही थी. " माँ देखो न उस लड़की को कितने गंदे और फटे कपडे पहने हैं उसने ....अपनी माँ के हाथ को कई बार झटकते हुए . ६ साल की पिंकी ने उस लड़की की लाचारी से झाकते उसके बदन की ओर इशारा करते हुए कहा .........वो बेहद कमज़ोर थी ओरे हर वक़्त अपने कपडे पर लगे लाचारी के चीथडों को संभाल रही थी ...पिंकी की माँ नै अपने हाल्फ स्लीव ब्लाउस को थोडा व्यवस्थित करते हुए पिंकी को झीडकी लगाई ....वो तो बेशरम लड़की है ..शर्म तो बेचने के लिए होती है इनके पास ...वो मन ही मन बुदबुदाई ...."कौन सी  ड्रेस दिखाऊँ बच्ची के लिए" ...दूकानदार अपनी जगह को छोड़ते हुए अभिनन्दन की मुद्रा में आ गया ...फरोक दिखाऊ बच्ची के लिए बहुत प्यारी लगेगी ...दुकानदार ने बात को ज़ारी रखते हुए कहा .......पिंकी की माँ उचक  पड़ी.....अंग्रेजी में कुछ तीखे प्रहार दुकानदार पर दिए......आप कैसी बात करते हैं इस नए ज़माने में फरोक पहनेगी मेरी बेटी.....वो दीखाइये ऊँगली से एक मिनी स्किर्ट की ओर इशारा करते हुए वो बोली ......दुकानदार ने एक बार उस बच्ची की और देखा और एक झुकी नजरो से उस महिला की ओर ...और जोर से चिलाया छोटू......वो तीसरे माले पर रखी ड्रेस दिखाना ........ .उधर वो दुबली लड़की अभी भी अपने कपड़ो को खींचकर कुछ बड़ा करने की कोशिश कर रही है..........शायद कुछ लाज बच जाए...


"हर बार मेने अपनी शर्म की चादर को कई बार सिया है
  मगर इस कम्बक्त बादल   ने बहाने से मुझे बेसरमी की  बारिश में फिर भिगो दिया है "

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