आज आसमान कल से ज्यादा नीला है । . .एकदम नीला ..... पर इस नीले आसमान की रोशिनी नजाने क्यूँ मंगतू को चुभती सी है ....दिल्ली के एक रीहयाशी इलाके मे सडको पर दोड़ती गाड़ियों का शोर अचानक बढने लगता है। .......मंगतू को लोग ऐका एक अपने कद से बड़े नज़र आने लगते हैं ....बड़े चेहरे, बड़े बंगले ,बड़ी गाड़ियाँ सभी कुछ बड़ा सा ...मंगतू और डरने लगता है। ....वो अपनी टूटती सैंडल के फीते को दुरुस्त करता है ।....फीता दुरुस्त कर जैसे ही वो उठता है ... सामने एक भीमकाय होअर्डिंग जिस पर लिखा है आपके सपनो का घर महज़ चंद कदम दूर ,उसको अपने ऊपर गिरता प्रतीत होता है ..वो दौड़ कर सड़क के एक किनारे जाता है। ....अपने माथे पर टपकते पसीने को अपने अध फटे शर्ट के बाजूओं से पोंछ ते हुए जोर से अपनी आँखों को भींचता है। ..आँखों को खोल दुबारा होअर्डिंग की तरफ देखता है। ...होअर्डिंग अपनी जगह पर खड़ा है ...मंगतू अपने अन्दर उठते एक सवाल का जवाब तलाशने की बड़ी पुरजोर कोशिश कर रहा है ..क्या इतने बडे घर होते होंगे ? ....अबे देख कर चल मरेगा क्या ....मंगतू को बड़ी गाडी मे बेठा एक सख्स गरिया देता है। ....मंगतू को वो गाड़ी उलटी हवा मे चलती प्रतीत होती है। .....मे पागल तो नहीं हो गया वो अपनी बांह पर बड़ी जोर से चीगोटी काटता है। ... मगर सब कुछ सत्य है ....मंगतू के पैर आचानक हाथी पांव जितने मोटे हो जाते हैं ...वो दौड़ना चाहता है पर पाँव हिल नहीं रहे हैं ..वो पीछे मदद के लिए देखता है .. उसे कुछ लोग अपनी ओर आते दीखाई देते हैं ...वो जोर से चिल्ला कर उन्हे अपनी ओर बुलाने की कोशिश करता है। ...पर उसके गले मे नजाने क्या फंस गया है ...वो कुछ बोल नहीं पा रहा है ...वो लोग करीब आ जाते हैं ।.... उनके करीब आते ही मंगतू अब ओर घबरा उठा है ....वो लोग पागल प्रतीत होते हैं। उनके नाखून भूतों जितनी लंबे हैं ..वो हर आते जाते को लूट लेना चाहते हैं ...मंगतू पूरी ताकत से पांव को आगे बढाता है। पर उनकी गति उससे काफी तेज़ है ...मंगतू को दूर से अपनी बेटी आदी आती दिखाई देती है ..वो तेज़ी से बाबूजी बाबूजी कहते मंगतू की ओर बढ़ रही है। मंगतू को लगता है जैसे डर ने उस पर एक आचानक हमला किया है । वो सिहर उठा है । उसे लगता है की वो अब अपने प्राण त्याग देगा । उसे खुद की आंखे बंद होती महसूस होती है ....पर उससे पहले वो अपनी बेटी को एक महफूज़ जगह पर पहुंचा देना चाहता है ...वो पूरी जान लगा दोड़ता है ....उसके पैरो से खून जगह जगह फूट रहा है ...जिससे तेज़ गंध आ रही है। वो पागल अब मंगतू ओर उसकी बेटी के करीब पहुँचने वाले हैं।मंगतू और तेज़ दोड़ता है ..पहले से ज्याद तेज़ ...और आदी तक पहुँच जाता है। वो जैसे ही आदि को छूता है, उसको सब अँधेरा दिखने लगता है वो अपनी जेब से एक जर्द कागज़ का टुकड़ा निकाल आदि के हाथ में रखता है।वो कागज़ जो वो सुबह लेकर चला था आदी उस पर्ची को झट से खोल पड़ती है .. पढते साथ ही सब पागल गायब हो जाते हैं ...आवाजें धीमी हो ज़ाती है । आदी रोने लगती है .."उस पर्ची मे एक शब्द लिखा है "घर" लोगों की संवेदन सीलता वापस लोट रही है .... कुछ लोग मंगतू की नब्स टटोलते है ....एक कहता है ..कुछ नहीं बेहोश हो गया है। .. शायद कई दिनों से खाना नहीं खाया भीड़ मे खड़ा दूसरा व्यक्ति कहता है.... अजी सुबह से पड़ा हैं । यहाँ पर ...किसी चीज़ . से ठोकर खा कर गिर पड़ा था ..पैर से खून भी बह रहा है ...आदी मंगतू के कान मे कुछ बुदबुदाती है ..बाबूजी बाबूजी ..अप परेसान मत हो ..मेने घर ढूंड लिया है ..इसे कुछ खिलाओ बेटे। घर कहाँ है तुम्हारा .. यहीं पास मे आदी सुबकते हुए कहती है .
जाओ कुछ खाने को लेकर आओ ...इतना कहते साथ भीढ़ तितर बितर हो जाती है ।.......आदी दौड़ के घर जाती है। उसने नया घर तलाश लिया है। ..माँ घर को साफ़ कर रही है ..वहां नाके पर एक कूड़ाघर है। जिसे आदी और उसकी माँ ने सबह साफ़ कर रहने लायक बनाया है। आदी झट से कूडे दान मे कुछ तलाश ने लगती है .... वहीँ पास कूडे मे कुछ साबुत पडे bread के टुकडे मिल जाते हैं। वो जल्दी से एक लोटा पानी और कुछ ब्रेड के टुकडो के साथ वहीँ पहुँचती है ,जहाँ मंगतू बेहोश पड़ा था ...वहां से भीड़ अब जा चुकी है ... मंगतू को आदी वो ब्रेड खिलाती है ..कुछ देर बाद मंगतू को होश आ जाता है ....अपनी आदी को अपने करीब पा मंगतू के चेहरे पर बड़ी सी हंसी ओर प्रभु के लिए शुक्रिया है ...आदी उछलते हुए मंगतू को बताती है .... देखो बाबूजी हमारा नया घर ..मंगतू मंद मंद मुस्करता है और आदी की पीठ थप थपाता है ... अब नीला आसमान सुर्ख काला हो चूका है। वहीँ पास मे कुतों के बीच मे ज़मीनी संघर्ष जारी है ..और दूर सभी घरों मे बत्तियां टीम टिमा रही हैं ....
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