वो बाइस पस्लीयों वाला , जर्द चमड़ी लिए
अक्सर दिख जाता है ,टूटे मकानों पर .पुलों और गटर पर
उसके पीठों पर अब इतनी खराशें है उन रइस मकानों की
जो खड़ी हुई उसकी जिस्म की ढलानों पर
चेहरे पर इतनी मिट्टी है उन सुखे खलिहानों की
की अब उम्मीद नहीं दिखती उसको,
अपने बंद कमरों के ,छोटे रोशनदानो पर
अक्सर दिख जाता है ,टूटे मकानों पर .पुलों और गटर पर
उसके पीठों पर अब इतनी खराशें है उन रइस मकानों की
जो खड़ी हुई उसकी जिस्म की ढलानों पर
चेहरे पर इतनी मिट्टी है उन सुखे खलिहानों की
की अब उम्मीद नहीं दिखती उसको,
अपने बंद कमरों के ,छोटे रोशनदानो पर
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