कि भैया पीछले कुछ हफ्ते व्यस्तता का बहुत भारी आलम रहा ,वो क्या है न बड़की दीदी कि शादी हुई और वो चली गयी परदेश … पर जाते जाते हमका दे गयी सन्देश कि " मे वापस आउंगी " एकदम कड़क लहजे में .... और हुआ भी ऐसे ही .... ऊ अगले ही रोज़ वापस घर चली आयी … बोले तो मायेके …। कुछ बाकी रह गयी रश्मो रिवाज़ों को पूरा करने .... और उनके साथ मे थे चमचमाते सूट मे हमरे जीजाजी। ,,मतलब भूतपूर्व दुल्हे राजा ,जो एक रोज़ पूर्व किसी बहुत बड़ी रियासत के राजा न सही …पर एक शादी के दालान के भूपति नज़र आते थे वो आज मात्र पति की भुमिका में थे। हाँ इस बात का एक अनकहा सुकून उनके चेहरे पर ज़रूर था कि उपहार स्वरुप आज उनके साथ उनकी धरमपत्नी थी। ख़ैर जो भी हो वर वधु पहली रोज़ हमरे घर पधारे तो उनका अपेक्षित स्वागत सत्कार हुआ। नज़ाकत के साथ दोनों घर में परविस्ट हुए।
अजी आप सोच रहे होंगे हम इतनी भुमिका बाँध बेठे हैं वर वधु के इर्द गिर्द तो हमारी कहानी के मुख्य पात्र ये नव विवाहित जोड़ा होगा …पर नहीं जनाब ऐसा बिलकुल भी नहीं है ,,, इस कहानी के मुख्य पात्र हैं "हम '… अजी हाँ ठीक सुना आपने हम।
शादी के अगले दिन सुबह १० बजे …
बहार झमा झम बारिश का पोल डांस अंगड़ाइयां भर रहा है। सबकी निगांहे घडी पर एक टक साधी हुई … इंतज़ार मे हैं तो बस उनके …,,,,,, और लो नाम लिया और वो भी हाज़िर .....दूर से एकदम छर छरी कद कांठी ,छुआरे जैसी शक्ल ,हाथ मे छतरी और काँधे पर झोला लिए विष्णु जी का वामन अवतार अवतरित हुआ ,,,,, अजी हुआ क्या जबर्दस्ती बुला लिया गया "राधेश्याम पंडित जी" . जैसे ही पंडित जी द्वार तक पहुंचे सभी ने एकमत होते हुए अपनी बलखाती कमरों को चरण स्पर्श कि मुद्रा मे झुका दिया। ओरतों के इस खूबसरत समूह ने गजब कि कला का अनूठा नमूना पेश किया … श्यामक डाबर भी उस वक़्त होते तो सर्टिफिकेट थमा जाते इस ग्रुप को. । अजी घबड़ाने का नहीं पंडित जी कहीं नहीं गए ....... वो लगातार बने हुए इस कहानी में ठीक हमारे बगल में खड़े धोती संभाल रहे हैं. ।वो भी अंदर घुसने कि फिराक में हैं। . लो धक्का लगा और वो अंदर …। सभी के साथ पंडित जी ने अपने चिर परचित अंदाज़ में फुर्ती के साथ स्थान ग्रहण किया … दे तपाक से सारी पूजा सामग्री ज़मीन पर बिखेर दी फिर शुरू हुआ उनकी कथावाचक कि भूमिका का सिलसिलेवार क्रम। सबने हौले से अपने अपने आसान ग्रहण किये और भगवान् कि ओजस्वी तस्वीर को ( लड़ी वाली तस्वीर थी इसलिए फ़ोटो में ओज कुछ ज्यादा था ) यथा स्थान स्थापित कर शुरुवात मे ही भगवान् को दर्ज़न भर केले का भोग लगा दिया। पिताजी ने भी प्रभु को सहानभुति स्वरुप सो रूपए बेहिचक ठेल दिए. हमारा तो कलेजा गले तक आ गया और हाथ सीधे अपने पतलून में पड़े मात्र २० रूपए पर जा टकराया। हम जानते थे ये मात्र शुरुवात भर है ,,,, पिताजी के जैब में खनकते आखरी सिक्के कि गूंज तक पंडित जी का मंत्रो उच्चारण जारी रहेगा। …....... खैर इस दौरान एक घटना और घटी …… ज्यूँ ज्यूँ पंडित जी का मन्त्रों का स्वर त्वरित और भावपूर्ण होता गया मुझे नज़ाने क्यूँ अपनी औनी पोनी सारी डिग्रीयां कूड़े का ढेर प्रतीत होने लगी। . या यूँ कह लो बेज़ज़ती के घूंट दना दन हलाहल ज़हर कि भाँती हमारे गले में उतारे ज़ाने लगे. … पंडित जी संस्कृत में हमारा गला घोंटने पर आमादा थे। वहाँ मौज़ूद बेठा हर एक व्यक्ति हर मंत्रो उच्चारण पर पेहले तो आध पोन किलो थूक गले मे उतारता फिर पंडित जी के आगे गर्दन शुतुरमुर्ग कि भाँती झुका देता अजी इतनी इज़ज़त तो गवर्नर को भी नहीं मिलती। बेकार इतना ज्ञान जमाल घोंटे कि तरह पी गए हम । कुछ लोग तो ये भी कहते है तुम्हारा कद उसी का साइड इफ़ेक्ट है। पर ये सब घटा घटनाक्रम अभी मात्र अंश भर था ,कार्यक्रम का ये अभी शुरुवाती भाग था। कार्यक्रम के अगले भाग के प्रायोजक स्वंयं पंडित जी थे.
घडी में सुबह ११. ३० बजे कि उपस्थिति है
और ये शुरु हो गयी सत्य नारायण जी कि कथा। कथा का स्थान सुनियोजित तरीके से सजाया गया था ,इसके रण नीतिकार भी स्वयं पंडित जी थे। . पहली पंक्ति में मौज़ूद थी दीदी और जीजा जी ,,,,उनके ठीक बगल में थे बड़ी दीदी और बड़े जीजा जी ,दूसरी पंक्ति कि कमान माँ और उनकी कुछ कट्टर भगवान् भक्त महिलाओं ने थाम रखी थी ,,,,,,,,, सर मे पल्ला और हांथो में अपने घर का पूरा गल्ला रखा हुआ था ,,,,,पंडित जी का चाँद जैसा मुह महिलाओं के हाथो में रखे चंदे को देख तारों कि तरह टिमटिमाने लगता ,,,,,,,,,,……ओर तीसरी पंगति में मौज़ूद थे हम और हमारे पूजनीय पिताजी जो अब तक भगवान को उनकी छाती तक फलों और पैसों का मचान खड़ा कर चुके थे. (इससे ये कत्तई अंदाजा मत लगयाये कि पिताजी हमारी किसी अकूत सम्पदा के मालिक हैं ).
बेटा ये कलयुग है घोर कलयुग …,,,,,,,, पंडितजी ओजस्वी स्वर में
जब कलयुग का वर्षफल पूरा हो जाएगा जो कि एक लाख साल है तो पृथ्वी का विनाश होगा और सभी लोग (हिंदुओं पर जोर देते हुए )उस गाँव कि और रवाना होंगे जहाँ वो सुरक्षित रहेंगे ( गाँव का नाम भूल गए वरना अब तक प्लाट कटवा चुके होते अपने नाम का).
पंडित जी बाकी लोग , मेरा मतलब मुस्लिम, सिख, ईसाई समुदाय के लोग कहाँ जायेंगे …… हम बोले
वो कुछ देर निरुत्तर हो गए .... और फिर संभलते स्वर में बोले ……वो भी वहीँ जायेंगे ....
पर वो लोग सायद ऐसा नहीं मानते ।..हमने अल्फाज़ टपकाए
पंडित जी ने इस बार घोर अपमान का घूंट पिया और बात दूसरी दिशा में पलट दी … माँ ने मुझे आँखों ही आँखों में चुप रहने का इशारा किया
अगली कहानी भय के ऊपर थी ,,,.... पर हमे भय से ज्यादा ख़ुशी हो रही थी कि अब तक प्रभु को लगाया भोग प्रभु ने चख लिया होगा क्यूंकि फलों का मचान अब भगवान कि छाती से मुह तक आ टकराया था.
जिस दिल में भय होता है वहाँ प्रभु का वास नहीं होता …… भयमुक्त पंडित जी गुर्राए
हम ये पूजा क्यों कर रहे हैं …लो फिर बीच में ऊँगली कर गए हम
बेटा सारे दुखों से मुक्ति के लिए …… अतिआत्म विश्वाशी पंडित जी अगले सवाल से बेखबर
आपको दुखों का भय है और इसमे भगवन क्या करेगा ,,,,, ऐसा नहीं कहते बेटा भगवन का पाप लगेगा ,,सभी लोगों कि नज़र मेरे ऊपर आकर गड़ गयी मतलब आपको भगवान् का डर है ? …।
वह सर्व शक्तिमान है हमे उससे डरना भी चाहिए और भक्ति भी करनी चहिये … वह बोले
तो अभी तो आपने कहा जिस ह्रदय में डर कि चिड़िया बेठ गयी वहाँ प्रभु का पक्षी कभी वास नहीं करता। . पण्डित जी के चेहरे पर पड़ी झुरियों से इस बार डर कि गंगा जमुना ओवरफ्लो हो गयी ,,,। पिताजी हम पर गुर्राए जाओ चाय बना कर लाओ । हमने चाय बनाने के लिए किचन कि ओर प्रस्थान किया …सबने राहत कि सांस ली। पर चाय बनाने कि परक्रिया के दोरान भी हम पंडितजी के स्वर कुछ हद तक सुन सकते थे।
प्लेट प्यालों कि आवाज़ के बीच जो हुमने सुना वो कुछ यूँ था। . बेटा नास्तिक है इसका शनि चौथे स्थान पर है , और शुक्र दसवे पर है इसलिए कुबुद्धि हो गया है. बेटे को जल चढ़ाने को बोलना शिवलिंग पर। । तभी हम चाय लिए प्रस्तुत हुए। पंडित जी ने हमे तर्राई नज़रों से देखा और ठीक वैसे ही माँ कि प्रभु भक्त मीराओं ने। .पूजा अब अपने समापन कि ओर थी। पंडित जी अंतिम कथा कि और अग्र्सर हुए। बोले सतयुग और द्वापरयुग क्या युग थे उन युगों में लोग कथा करके थे तो बड़ा फल मिलता था। . ……
....... अब क्यूँ नहीं मिलता इस बार सवाल हमने नहीं दीदी ने पूछा था। वो बड़ी तल्लीनता से और सौम्यता से बोले क्यूंकि अब लोग दूषित हो चले हैं। धर्म ,कर्म के काम से विमुख हो रहे हैं. मीट ,मदिरा , धूम्रपान का सेवन कर रहे हैं इसलिए। ।बोलो सतयनारायण भगवन कि जय। …। और हवा में जय हो का नारा गूंज उठा।
कुछ हो न हो पंडित जी कि आखरी बात से हम बड़ा अभिभूत हुए और फिर उस होली वाटर (चरणा अमृत ) को हमने कई कई बार गटका और पूजा समाप्त। पूजा निर्धारित समय स पेहले समाप्त हो गयी यानि ३. ३० बजे.पर नज़ाने क्यूँ पंडित जी कि आँखों में मेरे लिए अपनत्व तैर गया ,अपने पास बुला कर बोले जरा माचिस ले आना … हम भी तुरंत ले आये बोले बेठ जाओ .... वह स्वंय कुर्सी पर विराज़े और हमे हाथों से ज़मीन पर बेठने का इशारा कर गए। हम बेठ गए। बेठते साथ ही बोले भगवन को नहीं मानते। मेने कहा मानता हु ऊपर वाले को …। पर चार हाथ और चार सर वाले को नहीं। अब तो पंडित जी बिलबिला उठे जैब में हाथ डाल बीड़ी का बंडल निकाला और बीड़ी तुरंत जला मुह में सटा दी। हमे तो कलयुग याद आ गया उनके ज्ञान का आखरी स्तम्भ भी धराशाही हो गया …बोले तुम कुतर्की हो
इस बार हमारी आवाज़ में तल्खी थी। …हर सवाल कि प्रासंगिगता होती है पंडित जी ओर ये कहते साथ ही हम वहाँ से उठ गए। अंतिम रूप से विदाई लेने के उपरान्त सभी ने उनके चरण स्पर्श किये सिवाय हमारे। उन्होने अपना झोला उठाया जो कि अब पहले से काफी भारी था ,फलों का मचान अब समतल ज़मीन हो चला था. वीरगति को प्राप्त एक आत फलों के अंश वहाँ हुए कृत के साक्षी थे। पैसें भी नदारद थे. .... शायद भगवान को भेट लग चुकी थी। …
खैर माँ ने खूब खरी खोटी सुनाई हमे बोली उम्रदराज़ थे वैसे ही चरण स्पर्श कर लेता …लगा सायद गलती हो गयी हमसे हमे पैर छू लेने चाहिए थे ,,,,,, … पर अचानक नज़र सेल्फ में पड़ी दारुओं कि बोटल पर लिखे स्लोगन पर पड़ी जो कुछ यूँ था " हैव आय मेड इट लार्ज " पर गोर करने वाली बात ये नहीं थी बात यह थी कि अब दारुओं कि बोटल मात्र आठ रह गयी थी। जो एक घंटे पूर्व दस थी।
हमारे मुह से प्रक्षेपात्र कि तरह तुरंत ये वाक्य निकला। …"यस आई हैव मेड इट लार्ज ". पंडितवा। ....
जय हो ऱाधे श्याम तिवारी। ....... (तनिक आइयेगा आप भी पंडित जी के दर्शन अभिलाषी )
ha ha ..vinod bht mazza aaaya....holy water (charnamrat) pe toh main akele baithe hue bhi jor jor se hans padi........Is kahani ke toh tum hi hero ho...
ReplyDeletesukriya bhumika di...haan wo holy water mey pandit ji itnee bar ungliyaan dubaayi ki .....wo paani sabun ka jhaag lag raha tha ....
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