ऑफिस नामा भाग 4
तो जैसा की पिछली कड़ी में हुआ था ..दरवाज़े पर हुई बेवक़्त दस्तक ने हमारे ध्यान को तोडा और एक बलिष्ट व्यक्तित्व का धनी ..अंदर प्रविष्ट हुआ । हमने कछुए की तरह गर्दन घुमा दी । हमे यकीन था की उसने हमारी मौजूदगी को यूँ ही हलके में नहीं लिया होगा ।पर ठीक इसके उलट उसने रूई के फ़ायें की तरह हमारी मौजूदगी को अपने नथनों की हवा से उड़ा बहार किया । उसकी नज़र मास्टर जी के फीते की तरह सीधी लिफाफे की मुड़ी तुड़ी भुजाओं और उससे झांकते किसी पत्र पर थी । सामने बेठे मेनेजर साहब ने अफसरी अंदाज़ में पुछा क्या है ? बलिष्ट व्यक्ति के कंठ से फटी पीपरी जैसी आवाज़ निकली साहब चिठ्ठी ....उसी वक़्त उसकी बलिष्ठता हमारे सामने किसी फूटे मटके जैसी हो गयी । हमारा आत्म सम्मान लौट आया था । अच्छा इस व्यक्ति का बात निकली है तो बताते चलें की वो सिक्यूरिटी गार्ड था ।यानी की आफिस का एक अहम् व्यक्ति , और आगे इस ऑफिस नामा का भी अहम् किरदार । खैर चिठ्ठी पर लौटते है , साहब ने अध फटी चिठिठ को अपने हाथों में तुरंत यूँ दबोज़ लिया जैसे उपवास पर बेठे किसी शेर को तौला भर मांस मिल जाए। तुरंत उसे फाड़ अंदर के जरूरी तत्व अपने अंदर समेट लिए । इस वक़्त तक चाय ने भी हमारे आगे हाज़री लगा दी थी । ए .सी की हवा में चाय गुलाब जल जैसी हो चली थी, अतः हम चाय को एक सांस में कोल्ड् ड्रिंक की भाँती सुड़क गए । सामने प्लेट पर रखे बिस्कुट पर भी हम कई बार किसी मझे हुए चोर की तरह हाथ साफ़ कर चुके थे। मेनेजर की गर्दन अब भी बगुले की तरह पत्र पर ही घिटी हुई थी । पत्र को देख उनका मुह किसी सूखे अमचूर की तरह हो गया था ।एकदम खट्टा, मेनेजर की नज़र अचानक मेरी ओर घुमी और फिर घडी की ओर,फिर थोडा नकली हंसी चेहरे पर टेलकम पाउडर की तरह पोत दी ।वो किसी चीते की फूर्ति के साथ कुर्सी से खड़े हुए ।और बोले ...यंग मैन ....टुडे यू आर गोइंग टु गेट सम न्यू एक्सपोज़र ....हैन्नन्नन्नन्न हमे याद है हमारे मुह से केवल इतना ही निकला ..। लेटस गो .....सर की आवाज़ फिर लुडक कर हमारे सामने आ गयी .....दिमाग बस ट्रैम्पोलिन पर उछल रहा था ।।।।आखिर चलना कहाँ है ...।।(जारी है)
तो जैसा की पिछली कड़ी में हुआ था ..दरवाज़े पर हुई बेवक़्त दस्तक ने हमारे ध्यान को तोडा और एक बलिष्ट व्यक्तित्व का धनी ..अंदर प्रविष्ट हुआ । हमने कछुए की तरह गर्दन घुमा दी । हमे यकीन था की उसने हमारी मौजूदगी को यूँ ही हलके में नहीं लिया होगा ।पर ठीक इसके उलट उसने रूई के फ़ायें की तरह हमारी मौजूदगी को अपने नथनों की हवा से उड़ा बहार किया । उसकी नज़र मास्टर जी के फीते की तरह सीधी लिफाफे की मुड़ी तुड़ी भुजाओं और उससे झांकते किसी पत्र पर थी । सामने बेठे मेनेजर साहब ने अफसरी अंदाज़ में पुछा क्या है ? बलिष्ट व्यक्ति के कंठ से फटी पीपरी जैसी आवाज़ निकली साहब चिठ्ठी ....उसी वक़्त उसकी बलिष्ठता हमारे सामने किसी फूटे मटके जैसी हो गयी । हमारा आत्म सम्मान लौट आया था । अच्छा इस व्यक्ति का बात निकली है तो बताते चलें की वो सिक्यूरिटी गार्ड था ।यानी की आफिस का एक अहम् व्यक्ति , और आगे इस ऑफिस नामा का भी अहम् किरदार । खैर चिठ्ठी पर लौटते है , साहब ने अध फटी चिठिठ को अपने हाथों में तुरंत यूँ दबोज़ लिया जैसे उपवास पर बेठे किसी शेर को तौला भर मांस मिल जाए। तुरंत उसे फाड़ अंदर के जरूरी तत्व अपने अंदर समेट लिए । इस वक़्त तक चाय ने भी हमारे आगे हाज़री लगा दी थी । ए .सी की हवा में चाय गुलाब जल जैसी हो चली थी, अतः हम चाय को एक सांस में कोल्ड् ड्रिंक की भाँती सुड़क गए । सामने प्लेट पर रखे बिस्कुट पर भी हम कई बार किसी मझे हुए चोर की तरह हाथ साफ़ कर चुके थे। मेनेजर की गर्दन अब भी बगुले की तरह पत्र पर ही घिटी हुई थी । पत्र को देख उनका मुह किसी सूखे अमचूर की तरह हो गया था ।एकदम खट्टा, मेनेजर की नज़र अचानक मेरी ओर घुमी और फिर घडी की ओर,फिर थोडा नकली हंसी चेहरे पर टेलकम पाउडर की तरह पोत दी ।वो किसी चीते की फूर्ति के साथ कुर्सी से खड़े हुए ।और बोले ...यंग मैन ....टुडे यू आर गोइंग टु गेट सम न्यू एक्सपोज़र ....हैन्नन्नन्नन्न हमे याद है हमारे मुह से केवल इतना ही निकला ..। लेटस गो .....सर की आवाज़ फिर लुडक कर हमारे सामने आ गयी .....दिमाग बस ट्रैम्पोलिन पर उछल रहा था ।।।।आखिर चलना कहाँ है ...।।(जारी है)