घर
उनको नजाने क्यों लगा की सब कुछ बदल जाएगा । मेरी मौजूदगी उनको हर बार अहसास कराती की उम्र भर समेटी उनकी ढेरों कहानियों का अब में अहम् किरदार बन जाऊँगा।वो किरदार जो उसे कभी छलेगा नहीं ,खीज पैदा नहीं करेगा ।बचपन मे गुल्लक में डाली उसकी किसी छुटपन के सपने की जर्द पर्ची की याद साझा करेगा । । जो ताउम्र उसने खुद से , और अपने परिवार से छुपाई। अकेलेपन में खुद को टटोलना सायद और मुश्किल होता होगा ।ऐसा मुझे पिछले दिनों अहसास हुआ । घर ढूंढने की प्रक्रिया में जब नजाने कितनी शामों को ठोकर मारी और कितनी रातों को अगली सुबह की लिए सरका दिया । जब किवाड़ और बालकनी पर सर पटकता चाँद रोज़ अलसाया सा फिर आसमान पर टिक जाता ।।तब भी वो चेहरे ,जिनकी भाव शून्यता मे ऐसा कुछ नहीं था ,मुझे रह रह कर जगाते रहे । मुझे हमेसा लगता था की एक घर ,घर तब तक है जब तक उसमे कहानियां उपजती रहे । जब कहानियां खत्म होने लगती है ,तो स्वतः ही किरदार भी मरने लगते हैं । घर ढूंढने के दौरान ऐसे ही एक घर से मेरी सुबह जा टकराई । मुझे कतई अंदाजा नहीं था उस घर मे ऐसा कुछ नहीं होगा ,जिसका सब कुछ मेरे अंदर रह जाएगा ।ढेर सारा खालीपन ,नीरसता ,और मकान मालिक की अनचाही विवशता जो उनकी उम्र और जीवटता हमारे सामने छुपा तो गयी । पर अंदर एक बहुत बड़ा वैक्यूम था ,जो उनकी बीवी के कुछ रोज़ पूर्व हुई अचानक मृतयु से आ बना था । घर दुमंजिला था ,पर मालुम होता जैसे जीवन वहां से खुद को समेट रहा है । अकेले किसी आराम चेयर पर बैठ अपनी तह की गयी पुरानी यादों को वो चाय की चुस्कियों के सहारे हमारे सामने खोलते गए । बेटा सरकारी महकमे में बड़ा अधिकारी है ,दूसरे सेहर में रहता है । पूछा आप क्यों नहीं रहते उनके साथ ,तो बात टाल गए । अपने घर का कोना कोना उन्होंने बड़े उत्साह के साथ दिखाया । हालांकि घर पर ज्यादातर मकड़ी के जाले थे । पर यूँ लगा जैसे अपनी जवानी के दिनों की धुल को अपने उत्साह से झाड़ देना चाहते थे।
(जारी है)
उनको नजाने क्यों लगा की सब कुछ बदल जाएगा । मेरी मौजूदगी उनको हर बार अहसास कराती की उम्र भर समेटी उनकी ढेरों कहानियों का अब में अहम् किरदार बन जाऊँगा।वो किरदार जो उसे कभी छलेगा नहीं ,खीज पैदा नहीं करेगा ।बचपन मे गुल्लक में डाली उसकी किसी छुटपन के सपने की जर्द पर्ची की याद साझा करेगा । । जो ताउम्र उसने खुद से , और अपने परिवार से छुपाई। अकेलेपन में खुद को टटोलना सायद और मुश्किल होता होगा ।ऐसा मुझे पिछले दिनों अहसास हुआ । घर ढूंढने की प्रक्रिया में जब नजाने कितनी शामों को ठोकर मारी और कितनी रातों को अगली सुबह की लिए सरका दिया । जब किवाड़ और बालकनी पर सर पटकता चाँद रोज़ अलसाया सा फिर आसमान पर टिक जाता ।।तब भी वो चेहरे ,जिनकी भाव शून्यता मे ऐसा कुछ नहीं था ,मुझे रह रह कर जगाते रहे । मुझे हमेसा लगता था की एक घर ,घर तब तक है जब तक उसमे कहानियां उपजती रहे । जब कहानियां खत्म होने लगती है ,तो स्वतः ही किरदार भी मरने लगते हैं । घर ढूंढने के दौरान ऐसे ही एक घर से मेरी सुबह जा टकराई । मुझे कतई अंदाजा नहीं था उस घर मे ऐसा कुछ नहीं होगा ,जिसका सब कुछ मेरे अंदर रह जाएगा ।ढेर सारा खालीपन ,नीरसता ,और मकान मालिक की अनचाही विवशता जो उनकी उम्र और जीवटता हमारे सामने छुपा तो गयी । पर अंदर एक बहुत बड़ा वैक्यूम था ,जो उनकी बीवी के कुछ रोज़ पूर्व हुई अचानक मृतयु से आ बना था । घर दुमंजिला था ,पर मालुम होता जैसे जीवन वहां से खुद को समेट रहा है । अकेले किसी आराम चेयर पर बैठ अपनी तह की गयी पुरानी यादों को वो चाय की चुस्कियों के सहारे हमारे सामने खोलते गए । बेटा सरकारी महकमे में बड़ा अधिकारी है ,दूसरे सेहर में रहता है । पूछा आप क्यों नहीं रहते उनके साथ ,तो बात टाल गए । अपने घर का कोना कोना उन्होंने बड़े उत्साह के साथ दिखाया । हालांकि घर पर ज्यादातर मकड़ी के जाले थे । पर यूँ लगा जैसे अपनी जवानी के दिनों की धुल को अपने उत्साह से झाड़ देना चाहते थे।
(जारी है)
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