काली चमड़ी ,लठ हाथ में,
मरघट में हूँ , में जीता ,
लाशो के अम्बार, के ऊपर ,
छाती ठोक हूँ , में कहता ,
में मरघट का जल्लाद, में मरघट का ज़ल्लाद
लोगो के संताप के उपर
जलती हुई चिता के आग के उपर,
में अपनी किस्मत पर हसंता ,
आज कई दिनों के पश्चताप,
मिलेगा भर पेट भोजन आज
में मरघट का जल्लाद, में मरघट का ज़ल्लाद
आग तपन से काली चमड़ी ,
एक लाश में मिलती दमड़ी
में जानू में कैसे सो पाऊ,
मुर्दे की ओडन को ,अपना वस्त्र बनाउएँ
अपने घर मिर्तु हुई तो ,में किसको बत्लाउइन
चिता जलानी अपने घर में
कैसे में खुद को बुलाउएँ
लाशो को जला जलाकर
मृत शारीर को राख बनाकर
आंसू सब में सुखा चुका हूँ
भावनाओ को मिटा चुका हूँ १,
प्रस्न खुदा से हूँ पूछता,
अंत समय कौन करेगा मेरा संस्कार,
किसी नाली में और कीचड़ में ,
या कीड़ो का हूँगा आहार ,
एए खुदा तेरी धरती से ,
पूछता है ,यह ज़ल्लाद
में मरघट का ज़ल्लाद, में मरघट का ज़ल्लाद
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