जीने के बहाने....
सुबह सुबह अलार्म की घंटी बजी है....में बंद करने के लिए उठता हु.....पर उठ नहीं पाता .अपना ही सर का बोझ नहीं उठाया जा रहा है......लगता है गर्दन ने रात भर किसी के साथ कुस्ती की है....माँ.... में चीखता हु ...मगर आवाज़ भी हलक के अंदर ही मरे जा रही है...में खुद ही उठ कर कोई क्रिम ढूंड रहा हु ....क्रिम लेता हु और गर्दन पर मल देता हु....इस क्रिम की खुसबू मुझे काफी अच्छी लगती है ऐसा में अपने आप से कई बार कह चूका हु ...सुबह के साथ बजे हैं ...आज कॉलेज की छूटटी समझो....मन में ये ख्याल बड़े ही धीमे से बोल रहा है ,मै रजाई के अंदर मुह दबा कर एक और सपना देखने की कोशिश में हु ....घडी का दूसरा सेट किया अलार्म भी बज चूका है....में अपने बिस्तर को संभालता धीमे से बाथरूम की ओर हो लेता हु.....नीद में झूमती मेरी आँखे और सुसताते मेरे हाथ टूथ ब्रुश को नजाने मेरे मुह पर कहाँ कहाँ भीड़ा रहे हैं ..सब निबटाते मुझे 11 बज ही जाते हैं.....फ़ोन की घंटी बजी है ....महेश है..... कॉलेज के फर्स्ट इयर में मिला था मुझे .....मुझे अस्पताल जाना है सर्टिफिकेट लेने....जल्दी पहुँच......वो कहते साथ ही फ़ोन काट देता है ....महेश का अभी आर्मी में सेलेक्शन हुआ है....में फटा फट थाली में भीगाये दो मुठठी काले चने उठा चल देता हु.......में रास्ते में हु...महेश कई बार फ़ोन कर चूका है.....में ठीक 12 बजे उस तक पहुँचता हु...वो मेरा सरकारी अस्पताल की पुरानी बिल्डिंग के बहार इंतज़ार कर रहा है ...अपना बैग मेरे हाथ में थमा वो ......लम्बी लाइन में लग जाता है......साला सुबह सुबह कहा ले आया.....अस्पताल से आती सैकड़ो तरह की बदबुओं से तो दम निकला जा रहा है...में महेश को मन में कोस रहा हु.......ताज़ी हवा लेने में बिल्डिंग से बहार लॉन की तरफ हो लेता हु.......उफ़ ये गर्दन का दर्द तो मेरी मुलाक़ात आज यमराज से करा ही देगा ..आधा पौन घंटा हर चीज़ को कोसता में चहल कदमी कर अपनी कोफ्त हर चीज़ पर निकालता रहा....अपने हाथ में रखे उस बैग को तकरीबन मेने फाड़ ही दिया है..........में अपनी नज़रो को ज़बरदस्ती अनज़ाने चेहरे पर केन्द्रीत कर रहा हु......सायद कोई जाना पहचाना मिल जाए.......वैसे भी अपने ही सहर में जब सब चेहरे नए हो तो सहर भी अपना कोई दूर का रीसतेदार लगता है......आडी तीर्छी घुमती मेरी नज़र एक चेहरे पर आकर रुक गयी .....dermatalogist डिपार्टमेंट के बहार खडी पीले suit में वो लड़की वहीँ लगे किसी पोस्टर को बड़े गौर से पड़े जा रही थी....
मेरी नज़र बहुत देर तक उस पर टिकी रही ...... मै उसे लगातार पहचान नै की कोशिश कर रहा हु ......ये मुई याद दाश को भी क्या हो गया है में अपने हाथ पर रखे बैग को खुद के सर पर मार देता हु ......काफी देर से खडी उस लड़की को देख मन ठहर सा गया ....वो अब फ़ोन पर किसी से
बात कर रही है ......नजाने कौन है .में उस पर ध्यान हटाकर मुड़ने की
कोशिश में हु......उस धुंदली याद ने मेरे दिमाग पर फिर से एक ज़ोरदार प्रहार किया है..........प्रेयर के वक़्त लड़कियों की लाइन में तीसरे नंबर पर खडी होने वाली लड़की थी वो ...उसका चेहरा मुझे मेरे दिमाग के तहखाने से मिले किसे अधूरे अभिलेखों के तरह लगा जिसमे कुछ फटे पुराने कागज़ के टुकडे रखे हैं अधुरी सुचना के साथ ...नाम के साथ मेरा मन अभी भी खिलवाड़ कर रहा
है...."साक्षी"......."संध्या".या ..."सुरभि'.... अपनी यादों के अखाडे में कई पुरानी यादों को पठ खनी देने के बाद आखिर कार मुझे उसका नाम याद आ ही गया सुरभि था उसका नाम
.......पहली बार मेरी मुलाक़ात उससे नवी क्लास में हुई .......वो हमारी क्लास में नयी थी ...फ्रेश मुर्गा आया है ...किसी भी नए बच्चे के आने पर हम चुटकी लेते थे .....गर्मी की छुटीयों के बाद एक नए चेहरे ने ज्यों ही क्लास में परवेश किया तो पीछे से एक जानी पहचानी आवाज़ ने अपने अंदाज़ में कहा.........सुरभि जाओ वहा बैठ जाओ क्लास teacher ने मेरी ओर इशारा करते हुए कहा था .....वो मेरी row में मेरी ओर बड़ते हुए ठीक मेरे पीछे वाली सीट पर एक बहुत ही वज़नदार शरीर वाली लड़की के साथ बैठी थी ....मेरे चेहरे पर एक बचपन वाली हंसी छूट आयी थी...वो खुशकिस्मत थी ..ऐसा मै नहीं मेरे साथ के सब उत्पाती बच्चे जानते थे ......आखिर वो हमारी क्लास की मोनिटर के साथ बेठी थी ...........मोनिटर की कैमरे जैसे निगाहों ने एक बार हम सब उतपाती बचचौं पर नज़रे फिरआयी हैं ..और बिना कुछ बोले ही सख्त हिदायतओं के फरमान ज़ारी कर दिए ..." अब आप मोनिटर की होने वाली दोस्त को देख भी नहीं सकते ऐसा वो अपनी छोटी आँखों को बड़ा कर कह रही थी ..... पर उस दिन हम सब विद्रोही थे हम सबने उसे पहले से ज्यादा गौर से देखा खूबसूरत और सौम्य चेहरे वाली उस लड़की की आँखे जिस जिस पर टकराई उन सब की दोस्ती को उसने मूक सहमती दी ...बहुत जल्द ही उन दिनों वो teachers की चहेती बन गयी ...अब तो क्लास को चुप करना का ज़िम्मा भी कभी कभी उसे मिल जाता था....
इस बार साइंस एक्सिबिशन में तुम जाओगी ...हमारी साइंस टीचर ने अचानक से ब्लैक बोर्ड पर कुछ लिखते हुए पलट कर ये बात कही थी ......हम सब पहले की तरह ही अपनी बत्तीस्सी दिखाए हंस रहे थे....प्रतीक ने मुझे एस बात पर जोर से कोहनी मारी है.....वो इस बात से बेहद नाराज़ था ..वो हमारी क्लास का स्कॉलर था ।और हर कॉम्पिटिशन में उसका नाम लिया जाए उस को ये आदत डलवा दी गयी थी ..उस दिन वो मुझ पर बहुत बीफरा ,,तू बता यार कौन डीसर्व करता है इस कॉम्पिटिशन के लिए वो मशीन गन की तरह मुझ पर सवाल दाग रहा था....में नहीं करता क्या?.... वो ऐसा कई बार बोल चूका है ......... में उसकी बात अनसुना कर चल देता हु .......महीने चन्द मिनटों की तरह .ऐसे ही देखते देखते निबट गए और हमारे मिड टर्म भी निकल गए ........प्रतीक ने एस बार भी टॉप मारा है वो खुश है ......में ठीक ठाक नम्बरों से पास हो गया हु ........ऐसा मुझे लगता है ......सुरभी हमारी क्लास में सेकंड आयी है वो भी हमेसा की तरह हंस रही है ......छोटी मोटी नोक झोंक के बीच हमारे ज़ल्द ही हाफ इयरली एक्साम भी निबट गए पता ही नहीं चला दो दिन बाद रिजल्ट है .....में पास हो जाऊँगा में रोज़ सुबह उठ कर गायत्री मंत्र का जाप कर अपने आप को तसली देता हु ........आज रिजल्ट आया है......पिताजी को में रिजल्ट देखने को बोलता हु ...खुद टीचर की डांट के डर से बाहर ही खड़ा हु ....सुरभी कौन है पिताजी पूछते है ......क्लासमेट है में हलके से बोल देता हु ......वो फर्स्ट आयी है अगली बार उस की तरह नम्बर लाना ....मुझे बड़ी हेरानी है अब प्रतीक का क्या होगा ......प्रतीक ने मुझ से अब बात करना तकरीबन बंद कर दिया है ,वो अब किताबों में ज्यादा समय गुज़ारता है ......उसको लगता है उसके किले में किसी ने सेंघ लगाई है......वो किसी जंगली शैर की तरह किताबों का बड़ी ही बेहरहमी से शीकार करता है .....किसी के हाथ में दीखती कोई नयी refrence book ...को ...वो उधार मांग लेता था ......मेरे नाइन्थ स्टैण्डर्ड के चार मौसम कैसे गुज़र गए पता ही नहीं चला .....हमारे final एक्साम होने वाले थे हम सब बड़ी जोर शोर से मेहनत पर लग गए .......सबने अपना अपना बेस्ट दिया.......एक्साम ख़तम हुए तो रेस्ट के लिए कुछ दिन की छुटियाँ मिली ....इन छूटीयों में ......में केवल भगवान् की पूजा करता रहा ......कुछ दिनों बाद रिजल्ट भी आ गया ......हमारे क्लास मे फर्स्ट के नाम की घोषाडा हुई तो सबसे पहला नाम प्रतीक का लिया गया आखिर उसका रोब लोट आया था .......सुरभी एक बार फिर सेकंड आयी.....वो उस दिन भी मौजूद नहीं थी ...हम सब खुश थे पास होने से ज्यादा हमे गर्मीयों की छूटियों की परवा थी.......लम्बी गर्मीयों की छूटियों के बाद हम सब लोटे सिवाय एक के ....
सलीम .....53 नम्बर है क्या.........किसी ने डॉक्टर के केबिन से बड़े ही रूखे अंदाज़ में नाम पुकारा है.....में दुबारा सुरभी को देखता हु ....वो कुछ बदली बदली सी लगी है..उसका पूरा चेहरा तकरीबन सफ़ेद हो चूका है ........में उसके पास तक जाता हु.....उसने मेरी और देखा ..वो मुझे एक दम पहचान लेती है...तू यहाँ कैसे .....और क्या कर रहा है.....दोस्त के साथ आया हु में उसे कहता हु ....वो आज भी नहीं बदली....उसकी जीवटता देखकर बड़ी हेरानी होती है.......में ना चाहते हुए भी नजाने क्यूँ उससे बैवकूफी भरा सवाल पूछ लेता हु ......यहाँ कैसे ...और ये क्या हुआ है तुम्हे .......वो थोड़ा हिचक जाती है .......leukoderma वो हलके से बोलती है.......
इस बीमारी ने उसके चहेरे की चमक फीकी कर दी है ...पर उसके जीजीविशा उसे अभी भी एक आकर्षक व्यक्तित्वव देती हैं ......."leukoderma" एक अनुवांसिक रोग है ऐसा मेने किसी अखबार में पडा था....हमने स्कूल की कुछ पुरानी बातें की ...जब तक उसे अंदर से डॉक्टर ने नहीं बुलाया ......अच्छा में चलता हु में उससे कहता हु.....वो फिर हंसती है और bye कहती है.......में अपने कानो पर अपने mobile के ear फ़ोन लगाता हु.......हम सब अपने अपने मौसम का इंतजार करते हैं और मौसम यादों का हो तो उसके साथ खेलने का मजा ही कुछ और है.......में F M की आवाज़ को बढ़ाते हुए इन लाइन्स को रटने की कोशिश में हु .....किसी ने गाने के फरमाँश की है ......समवेदनाव के तार को झनझनाता संगीत एक बार फिर मुझे उसकी ओर देखने को मजबूर करता है ..उसकी जीजीविशा देख मेरे मन के अंधेरे कमरे में बुझा दिया एक बार फिर जल उठा है....आज पांच साल हो गए पर वो मुझे नहीं मिली में डेल्ही में हु और मुझ जैसे कई लोगो के दिल में ........जो maths science से इतर .ज़िन्दगी में हँसते रहने का एक नया लेससन पड़ा रही है. कही पड़ा था मेने ".
जिंदगी जीने की कोई उम्र नहीं होती ... कुछ फैसले गज फीते से नाप -जोख कर तय नहीं किये जाते….....उसकी वजह से मेरे ज़िन्दगी में नए सुबह आयी है तो ......मेरे तरफ से good morning teacher ..
"फ़ोन की घंटी ने मेरी नींद को एक बार फिर तोडा है...में घड़ी की और देखता हु ....9 बजे हैं......फ़ोन उठाता हु.....अबे कॉलेज नहीं आना क्या....गौरव का फ़ोन है ....मुझे अभी भी नहीं लग रहा है की मेने सपना देखा है"
"कभी खोजीयेगा उमीदों के खोल.......
सिराने पड़े मिल जाएंगे आपको ...
बस पलक बंद करने की देर है"
"कुछ सच्चे पात्र और खयालों के धागे हैं ..मेंने अपने तानाशाही दिमाग से अपने विचारों को आजाद किया है...
"मगर कुछ सचची कहानी भी है जो हमे हर वक़्त जीने की उम्मीद देती है ... सिखा नाम की वो लडकी जो ज़िन्दगी के मंच पर herione है .....जो अपने चेहरे और टांगो से विकलांग होते हुए भी ज़िन्दगी के मंच पर बखूबी नाच रही है .....वो अपने छोटे भाई को खूब हंसाती है और नौकरी कर अपने माँ बाप का सहारा बनी हुई है ..........रावत जी की मिठाई की दूकान में काम करने वाला 12 साल का सुनील ...बर्तन धोते हुए भी पहाड़े याद करना नहीं भूलता ....है ना ये ज़िन्दगी मज़ेदार
No comments:
Post a Comment