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Friday, January 6, 2012

कबाड़ से मिला कुछ कीमती सामान...




 सर्दी ने खुद अपने कसीदे पड़े हैं
लिफाफे में पडी कुछ रूठी और बेतरतीब बेठी यादें जिन्हें मेने तह कर के रखा था .... 
उस दवात में ज़मी वो गाढी अधूरी स्याह्ही
 उस रोज़ मेरे गुस्से का शीकार हुई कलम की निब
मेरे हाथो पर खरूंचे मार कर अपने होने का  अहसाह कराती वो मेज़ की  आवारा कीलें
वो बेसुद पड़ी क्रांती की  कुछ किताबे
झूट फरेब से टकराने को मेरे वो   कुछ अल्हड मिजजाज़ी ख़याल
मेरे मासूम खयालों का  चालाकी का  वो जादूगरी   चोगा
गुम होता कोई मेरे याद का  ज़रूरी दस्तावेज़
कई ज़ेबों वाली   वो मेरे जे कट   में खोई मेरे किसी नए नन्हे पेन की याद
 दू धिया रोशिनी वाला सुनसान खाली  पेन का होल्डर ,
जो बड़ा बवंडर लिए फिरता था नए लाल , नीली कलमों का
उसकी चुपी ,ओर
  मेरी हाल्फ   आस्तीनों की शर्ट का  झगडा आज भी मेरे पुरानी बाजुबंदू के साथ
घर में बीछायी  पुरानी पायदानों का झुक चुका कन्धा ,,
हरी भरी याद की सूख चुकी   झाडियों में मिला मेरा पुराना क्रिकेट बाल  
खिडकियों   पर  ज़मी  वो पुरानी  आवारा धुल
खुद से छुपाया मेरा कोई राज़  
उस रोज़ की आख़री शाम में अपनी ही याद के छुटे किसी धागे से खुद ही उलहज जाता सूरज 
ये सब बाट जो रहे थे किसी कलम की और एक यादो के किसी  उजले कागज़  की
पुराने साल के  कई धुल  भरे पैरों ने जैसे अपने सभी निसानो को खुद  ही साफ़ किया है

सायद नया साल आया है मेरे बागीचे में



 



 

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