हर गमे चादर ,अपनी वारिश की सिनाक्थ करती है
वो धुन्दलको में भी ,इन्साफ की बात करती है
तोड़ देते है जब हुक्मरान होसला इंसान का
तब टूटती एक आश, बड़ी वारदात करती है
उन अफसरी दस्तावेजो में .चीख़ों का हिसाब नहीं होता
वो नुमाइंदे रोते नहीं ,उन मांस के लोथड़ो को देख कर
क्यूंकि उनकी पोथीइयों का रंग लाल नहीं होता
खाली हैं बस्तियां , अब सन्नाटे रहते हैं खंडरों में
ये बड़ी अच्छी बात है की अब कोई वारदात नहीं होती
अब डरती हैं फिजायें यहाँ की ,इंसानों से
यहाँ अब इंसानों की बात नहीं होती
(मरे हैं जो लोग दंगो में उनकी कोई न जात थी .......बेवक्त रोते हैं अंधेरों में अपनों के लिए वो आज भी)
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