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Sunday, March 4, 2012

कोहरा






 रात के साडे तीन बजे थे ..बस ने आचानक मारे ब्रेक से मेरी नींद को बड़े ही गैर जीमे दारं अंदाज़ में तोडा है....

.३.३० बजे बस अड्डे में सभी passengers  ने अपनी आँखों को मलते हुए ये बात कही थी .." पहुँच गए क्या "...पीछे बेठे किसी साथी passenger ने अपने रात भर जगे होने का परिचय देने के लिए  बड़े  ही भारी अंदाज़  में कहा था 'हाँ जी पहुँच गए"सभी लोग अपने झोले खाकड़ उठाये और बस से एकएक कर उतरने या उतारे जाने लगे .......में भी होलिया अपने रास्ते ....सबसे पहले ठंडी होती उन्ग्लीयूं ने मेरे जैकेट में पड़े गरम फ़ोन को ढूंडा .....हेल्लो हाँ में पहुँच गया हु" लेने आ जाना' ....मेने घर में फ़ोन मिला ये एकताला कर दी ......मोसम बहुत सर्द था और जूते के अंदर घुसती हवा  मेरे पेरों को लगातार चलने को मजबूर कर रही थी......हौले हौले   तकरीबन पूरा बस अड्डा खाली हो लिया था ......नजाने कितना टाइम लगेगा नवाब साहब को  पहुँचने में .... खड़े खड़े हम तो  यहाँ कुल्फी हुए जा रहे है  ........ मेने भाई को मन में ही थोडा झिडकी लगाई है

पैर चहलकदमी करना सुरु हो गए ..और धीरे धीरे में बस  अड्डे से बहार हो लिया .. .....वो पूरी सड़क में बिखरी सुनहरे रंग की पीली रौशनी .......दूर कहीं दिखती आम के ठूंठ पर पड़ी गांठे ........कोहरे में लिपटी हर इमारत ने ...मुझे  कभी डराया तो कभी बड़ा अच्छा सा महसूस कराया .............मेरे चलने का क्रम अभी अभी भी ज़ारी है ...बस अड्डा  अब धुंध में कहीं खो सा गया है......जैसे कभी वहां  था ही नहीं......
अकेले सुनसान सर्द रातों में वो लम्बे होते रास्ते बड़ा देहसत का अहसास कराते हैं .....बस पोल लाइट तय हैं जो की मेरे साथ अब तक चल रही हैं .....जो जरा ढा डस बंधा देती  हैं ........वो भी  अकेले खडी हैं बिना किसी  के इंतज़ार के .......कोहरा मेरा  लगातार पीछा कर रहा  है ...  सर पर रखा गरम  टोपा मुझे  नजाने क्यूँ माँ के गरम हाथो सा लगता है ....हठ ये प्रेत आत्मा कुछ नहीं होती मेरे  अपने ही  तर्क  जैसे डर के समुंदर में अंदर   गोता लगाते हुए खुद ही दम छोड़ रहे हैं .......मेरे पैरों की गती तेज़ हो गयी  है ...अक्सर लाइट चले जाने पर अँधेरे में ....मेरे पिताजी की सुनायी किसी  बहादुर बच्चे की  कहानी .....जिसमे में कहीं नहीं हु पर फिर भी खुद को वो बाहदुर बच्चा मानता हु याद आयी है... ....में अपने पैरों को सड़क पर बड़े सलीके से रखता हु ...मेरे हाथ मेरे जेबों में गैर इरादतन कई बार अंदर बहार हो चुके हैं ........फ़ोन को में silent  मोड में डालता हु.....ताकि रात में पसरे सन्नाटे की नींद न टूटे ...वो धीमी पीली रौशनी में जलती स्ट्रीट लाइट के नीचे  दिन भर से थकी एक पागल ......फटे बीछोने पर लेटी है ......जैसे अपना किरदार सीदत  से निभा के सोयी हो ....उसकी टाँगे ठण्ड से सिकुड़ कर उसकी छाती में गड़ जाना चाहती हैं .....,मेरे कदमो ने  उस पागल को देख और गति पकड़ ली है .......में उसे जल्द से जल्द पीछे छोड़ देना चाहता हु .वो पागल अब पीछे है में एक लम्बी सांस लेता हु ......मेने पीछे मुड़कर उस को  एक बार फिर देखा है ...वो पगली बड़ी जोर से हिली है ...मेरे दिल ने बहुत नीचे तक गोता खाया है और सर दूगुना भारी हो गया है ...जैसे किसी ने सांस रोकी हो ........ऐसा लगा वो पगली अपनी किसी  पुरानी याद से झगड़ रही है .....मेने  घडी की और  देखा है ......घडी की सुई अभी चार पर जाने को दस कदम दूर हैं ....कहीं दूर कुत्तो का भौकना जारी है ...


वो पगली दौड़ कर चिल्लाते हुए मेरे सामने आती है ...'सुन मेरे काहानी ...सुन ' ....मेरे आँखों में अजीब सी जलन और भयंकर गर्मी सवार हो गयी है  ...डर सरक के मेरे सामने आ गया ....मेने कश के अपनी दोनों आँखों को भींचा है ...आँखे धीमे से खोलता हु ......मुझे दूर  जलती स्ट्रीट लाइट पर मुडती मोड़ दिखाई देती है ...पीछे मुड कर देखता हु पगली अपनी जगह पर बेसुद लेटी है ...उसकी खराटे हवा में शोर मचा रहे हैं ...मेरे अंदर के डर ने जैसे हल्की  सी  नींद की झपकी ली है ....मुझे अब हल्का सा लग रहा है ...आँख से ठन्डे आंसू पिघल कर निकले हैं ...में अपने घर की गली में हु .....दूर से मेरे और आता एक couple  है ...कान में दोनों के एअर फ़ोन  चड़ा है ...हाफ्ते हुए अंग्रेज़ी में बतिया रहे हैं .....मेरा डर अब पूरी नींद ले चूका है  ......मेने फ़ोन पर टाइम देखा है 4.१५ बजे हैं ..में मुडके एक बार फिर उस सड़क को देखता हु ...वो पगली दूर तक कहीं नहीं दीखती ..मेरे पसीने से भीगी   मुठ ठी  अब खुल चुकी है ..........सामने मुझे मेरा घर दिख रहा है .........सर दिमागी उहा पटक से काफी थका हु आ है....
."किसने सुनी होगी उस पगली की कहानी .........मेने तो नहीं सुनी ......वो  सड़क में दौडते हुए couple  ने सुनी होगी क्या....सुबह की पहली किरण के साथ ही कहा जाती होगी वो  ...किसी दफ्तर या किसी   बड़ी गाडी की पीछे दौड़ती होगी क्या " ....नजाने क्यूँ अजीब से उठ्पटांग मगर वाजिब सवाल दिमाग में हल्की सी हंसी हंस रहे हैं .....


                                      "किसी की चोट गहरी है 
                             किसी का दर्द गहरा है 
                              किसी की चीख गूंगी है 
                              कोई कानो से बहरा है " 


1 comment:

  1. bahut khub thang se sadak pe pade pagal ko samjhane ka sahas kia hai jo shayad hum se kai log bhul jana jate hai. aise kai pagal sadak pe hai jo hamare dilo dimag pe ghar nahi kar pate par vo hai

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