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Monday, April 23, 2012

बड़ा भिखारी



हाथ डाल जेब में सिकका   टटोलता हु मै
है फटी जैबे मेरी एक अरसे से 
हाथ फैलाए  भिखारी को एक इज्ज़त का झूठ बोलता हु में 

क्यूँ रोऊँ में तेरे हालात पर 
हालात तो मेरे तेरे ही जैसे  हैं 
मेरे पतलून के जैबे फटी हुई 
और तेरे फटे कुरते में पैसे हैं 

कंगालियत से यूँ मुझे न देखा कर 
मुफलिसी के दिन है बेटा ,हम भिखारी तेरे ही जैसे हैं

 

1 comment:

  1. बहुत खूब विनोद भाई...........
    ऐसा ही कुछ मैंने काफी पहले लिखा था परन्तु भाव थोडा अलग थे.....



    इस महंगाई मे अपनी औकाद जानकर,
    एक सिक्का था कतराया सा .....
    मेरी ही जेब से निकला था वो ,
    सहमा और घबराया सा ....

    मैंने भी कभी उसकी कीमत ,
    इतनी ज्यादा न जानी थी.....
    एक पल मे वो अनमोल हुआ ,
    इसकी भी एक कहानी थी......

    सिक्का पाकर उस चेहरे पर,
    कई रंग खिल आये थे....
    जिस भूखी बच्ची ने मेरे आगे,
    दोनों हाथ फैलाए थे.

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