हाथ डाल जेब में सिकका टटोलता हु मै
है फटी जैबे मेरी एक अरसे से
हाथ फैलाए भिखारी को एक इज्ज़त का झूठ बोलता हु में
क्यूँ रोऊँ में तेरे हालात पर
हालात तो मेरे तेरे ही जैसे हैं
मेरे पतलून के जैबे फटी हुई
और तेरे फटे कुरते में पैसे हैं
कंगालियत से यूँ मुझे न देखा कर
मुफलिसी के दिन है बेटा ,हम भिखारी तेरे ही जैसे हैं
बहुत खूब विनोद भाई...........
ReplyDeleteऐसा ही कुछ मैंने काफी पहले लिखा था परन्तु भाव थोडा अलग थे.....
इस महंगाई मे अपनी औकाद जानकर,
एक सिक्का था कतराया सा .....
मेरी ही जेब से निकला था वो ,
सहमा और घबराया सा ....
मैंने भी कभी उसकी कीमत ,
इतनी ज्यादा न जानी थी.....
एक पल मे वो अनमोल हुआ ,
इसकी भी एक कहानी थी......
सिक्का पाकर उस चेहरे पर,
कई रंग खिल आये थे....
जिस भूखी बच्ची ने मेरे आगे,
दोनों हाथ फैलाए थे.