वो जनवरी की सबसे सर्द श्याम रही होगी ... कहीं किसी बंद केबिन में डॉक्टर ने अपने सफ़ेद कोट को पहन कर , मंत्री जी के हाथ में सिफारिशी पैकेट रख अपने ट्रान्सफर की दरखुवास्त है.....
गाँव के किसी 10×12 साइज़ के छोटे से अस्पताल में नए डॉक्टर की गैर मोजुदगी से रमेश बाबु की अस्थमा से असमय मोत हो गयी है .......रमेश बाबू गाँव में एक मेहनती शिख्सक थे ....गाँव में सूरज ढला है ....... सहर में सूरज उससे भी पहले ढल गया है ...शाम के पांच बजे हैं ...केबिन से निकलते ही डॉक्टर के चेहरे पर मुस्कान बिखर आयी है....डॉक्टर का ट्रान्सफर रोक दिया गया है ..उपर . वाले के दरबार में इंसानियत को फिर कुछ हफ्तों के लिए मुल्तवी किया गया है ............डॉक्टर साहब पुरे हॉस्पिटल को कार्ड बाँट रहे हैं। आज घर में मूर्ती स्थापना का आयोजन है ....... उनका पूरा थैला बड़े ही सजीले कार्डों से भरा है ....
रमेश बाबु की पत्नी ने घर में रखी सारी बैडोल सी मूर्तियों को गुस्से में तोड़ दिया है ..............गाँव में अब अँधेरा है ......रमेश बाबू का दू ध मुहा बच्चा ज़मीन से माटी चाट रहा है ...गाँव के उस छोटे से अस्पताल के रजिसटर् में चडे रमेश बाबू का नाम अब गहरी नीली स्याही से काट दिया गया है।......सब . तरफ अब बस लम्बा इंतज़ार है अगली सुबह का...और एक और रमेश और एक और अनाम .डॉक्टर का ......गाँव में केवल दो ही बस जाती हैं .........
"यूँ अगर पत्थरों में बसने लगता भगवान्
तो लोग न कोसते उन गुनाहगार चट्टानों को
उन टूटे मकानों को , जो यूँ ही ले गए सेकड़ो जानो को
"
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