उस रोज़ गर्मी अपने चरम पर थी ...सूरज धरती को निगल जाने की फिराक में बैठा था ....दूर कही मरीचिका से ज़िन्दगी के कैनवस पर बनते बिगडते कुछ स्याह सफ़ेद चित्र हैं .. धुल के गुबार आसमान से दुश्मनी पाल बेठे हैं ...आसमान अब मटमैला सा है .......फूल और पत्तीयों ने हवाओं के खिलाफ के जाके चुप्पी साध ली है ...मुआ कल का खरीदा हुआ जूता मुझे कई बार न्यू पिंच की चूटियाँ काट चूका है .....इतना की पैर में अब पानी से भरे फफोले हैं ......
...संगम विहार की तंग गलियाँ चकर घिन्नी की तरह दिमाग में कही फिट ही नहीं होती ....इतनी अँधेरी की बस काले नाग सी डसने को तैयार ...पेसाब की तेज़
गंध और खुलीं
नालियों में रेंगते
वो लिसलिसाते कीड़े.....उनको देख अक्सर बेवक्त आये राहगीर के मुह
में गश्याला सा पानी जमा होने लगता
है ..,,,,गली सकरी है तो सरीफो को घुटन होती है
पर मौका परस्तों के लिए गली
. एक मौका है....... सुनेहरा मौका, किसी राह चलती की चींखो को कैद कर देने
का ...
फोटो स्टेट की एक गर्द गुबार भरी दूकान में टकटकी साधे वो बड़े डील डॉल वाले बेरोजगार लड़के हैं ..जिनकी निगाह बस राह गुजरती लड़की के शरीर के चीथडे उड़ा देना चाहती है ......वहां चलती हर लड़की एक अलग सा.protective कवर लिए चलती है .....नज़रे झुकाए रखने का ......गिद्दो से नज़रे मिलना अच्छा नहीं मानते ऐसा वहाँ की लड़कियों ने पड़ा है......... वो इतनी .protective होती हैं की अपनी निर्वस्त्र हथेलियों को देख शर्म से अंदर गड़े जा रही हैं .....दुप्पटे से अपनी खुली हथेलियों को छुपाने का निरंतर कोशिश में हैं ....की उन घूरती निगाहों से पार पा सके ....... प्रयास ज़ारी है ....
***********************
वहीँ संगम विहार की एक गली में सोनू अपना रेडा लगता है ......उसने उन सकरी गलियोँ में इक मुफीद जगह तलाश ली है .... कुछ हफ्तों पहले ही उसने अपनी गोला बेचने की दूकान खोली है...... सुबह से श्याम तक ,जब तक की संगम विहार की स्याह श्यामें काली नहीं हो जाती तब तक वो वहां से नहीं हिलता ...... हालाकी कमाई के नाम पर सोनू के पास....कुछ खास नहीं है ....ग्रहाक ज्यादा नहीं आते पर महीने का 2500 तक कमा लेता है ........पुलिस वालों के हाथ से कुछ बच पाया तो वो अलग...सोनू को तकरीबन एक साल हो गया दिल्ली आये हुए .... घर में तीन बड़ी बहने हैं ..पिताजी की हैजा से मौत हुई तो सोनू ने घर की जिमेदारी संभाल ली .....एक साल पहले जब दिल्ली आने का फैसला किया तो माँ ने सब पूंजी जोड़ कर सोनू के हाथ में रख दिए .......रोते हुए माँ को बोला था "माँ तू चिंता मत करना "...बस उसके बाद सीधा चला आया ।दिल्ली ,कुछ महीने तक तो सब ठीक चला पर जब घर से लाये पैसे खत्म होने को आये तो वहीँ किसी दूकान पर बर्तन धोने का काम पकड़ लिया ....धीरे धीरे दूकान वाले से सोनू की अच्छी बन पड़ी तो उसी ने कहीं जुगत लगा उसको रेडा दिलवा दिया ...
जिसमे वो सतरंगी बर्फ के गोले बेचता है ..हालाकि उसको खुद की ज़िन्दगी कभी भी सतरंगी नहीं लगती ...जब से सोनू दिल्ली आया लगातार गिर सा रहा है। मन से और तन से भी ....ठीक से ना कभी खाना हो पाया न .....सोना ..वो इतना कमज़ोर हो चला है की छाती की पसलियाँ एक बालिश बहार आ गयी हैं।...तीन कमीज़ जो वो गाँव से लेकर चला था अब बस कुछ ही दिन और उसके शरीर पर चस्पा होंगी .....अब तक कमाए पैसों का ज्यादा तर हिस्सा वो घर बेझ दिया करता था ...अपने ऊपर सोनू का खर्चा ना के बराबर था ... पर आज उसका ज़नम्दीन .... है उसने आज अपना खुद का ज़न्म्दीन मनाने का फैसला किया... अब तक बचाये अपनी सारी जामा पूंजी का हिसाब लगाया..अपने कमीज़ के खानों को टटोलने के बाद कुल पैसे उसके पास थे 30 रूपए ..जो वो सब खर्चा होने के बाद बचा पाया था ....वहीँ गली में ख डी एक कार में बेठे बच्चे के हाथ में paistrees देख कर उसने भी खाने का मन बना लिया ..वो उस चीज़ का नाम नहीं जानता था ....पर उसने पास वाली दूकान में वो चीज़ देखी थी .....उस ..शाम उसने अपनी सा री हिम्मत को सकेरा और दूकान के पास पहुंचा ......
************************
उस रोज़ अनुपमा का भी संगम विहार आना हुआ ... उन सँकरी अँधेरी गलियों को देख वो घबरा सी गयी थी ..उसने कभी कोठा नहीं .देखा था ..पर यहाँ दिखता वही माहोल उसके अंदर एक अलग सी छवि उकेर रहे थे .......... जोर जोर से आती आवाजें ..वहीँ दूकान मे खड़े वो बिगडैल छोकरे , जो हर वक़्त एक घीनोनी हंसी छोड़ रहे हैं ....जो शायद किसी भी लड़की को पसंद ना आये .........हर वक़्त .गलियों से निकलते वो अद्रिसिये हाथ.... वो निगाहें जो किसी भी नवयुवती की महक को दबोच लेना चाहती हैं ...उन मलीच हाथो के निशान जो धुलने के बाद भी किसी की आत्मा से नहीं मिटते .....एक डर उसके दिमाग में कहीं घर सा कर गया है। इस जगह को देख कर अनुपमा बहुत सहमी हुई सी है ....उपर की छ त पर एक महीन परदे से झांकती कुछ लडकियां हैं ।......उसका जेहन हिल सा गया है .... हालाकि यहाँ कोई कोठा नहीं है .....पर माहोल डरा देने वाला है ...दूकान पर खड़े उन लडको की गिद्ध जैसी निगाह अनुपमा के शरीर का सारा मुआयना कर चुकी हैं ... वो जैसे उनके जेहन को भांप सी गयी थी
लडको की फब्तियां अब लगातार बढ़ती जा रही हैं, उसने पुरे जोर से अपने पैरो को बढ़ाया ।..और एक हाथ से अपने दुपपट्टे पर लगी पिन को निकाल लिया ..उसके पास अपने आप को बचाने के किये केवल ये पिन ही था ....वो आचानक लड़ खड़ा कर गिर पड़ी ..... गिरने से पैरो का एक तरफ मांस का हिस्सा निकल गया । काफी खून बह रहा था......उसके हाथ से पिन छुट गयी थी ....इस से पहले की दिमाग में और कोई उथल पुथल होती और वो फट जाता...सोनू वहां आया, और बड़े सलीके से बोला .....मैडम आपको लगी तो नहीं .. .. ..पर अनुपमा . ने उसको झूट बोल दिया.... नहीं। सोनू ने उसको उठाने का प्रयास किया ... अब तक वहां पर वो छोकरे भी ज़मघट लगा चुके थे ........ उन्ही में से एक ने अपना हाथ ब ढ़ा ....मदद की पेशकश की .......पर पेशकश केवल बहाना भर था ... उसका मकसद अपने मलीच हाथो को उसके शरीर तक पहुँचाना था .....अनुपमा . ने झट से मना कर दिया ...
******************************
सोनू ऑटो ..लेकर आ गया।.....अनुपमा संगम विहार से काफी दूर रहती थी यहाँ अपनी दोस्त से मिलने आयी थी .......वो बस से आयी थी उसके पास ऑटो के लिए पैसे नहीं थे ......उसने ऑटो वाले को मना किया ..और खड़े होने लगी ....पर गिर गयी।.....सोनू ने उसे सहारा दिया।. ..उन लडको में से एक लड़के ने फिर उससे छूने की कोशिश की...उसने उसका हाथ झट से झटक दिया ....अनुपमा अभी भी पैसों की चिंता में थी .......मैडम कहा जाना है आपको सोनू ने ......प्रशन किया....... "लक्ष्मीनगर ," अनुपमा बोली .......भाई लक्ष्मीनगर छोड़ देना मैडम को ........सोनू को थोडा सभ्य जान उसने अपने दुविधा सोनू के सामने रखी ...पैसे नहीं हैं मेरे ..पास केवल 100 ....रुपई हैं।......भाई कितना लगेगा लक्ष्मीनगर का ..सोनू ने प्रसन किया ...120 ....और कम कुछ नहीं करूँगा फिक्स रेट है ..ऑटो वाले की आवाज़ में तल्खी थी ........सोनू ने अपनी जेब पर नज़र फिराई .......तय किया की ये पैसे उस लड़की को दे दू ... पर फिर रुक गया .....उसने मना करने का मन बना लिया ........भाई साहब थोडा ठीक लगाओ ......सोनू ऑटो वाले को बोला .....फिक्स रेट है ....वो नहीं माना ......सोनू ने एक बार फिर अनुपमा की तरफ देखा ...और फिर उसके घाव को ......उसने जल्दी से 20 रुपये निकाल कर .अनुपमा की हाथ में रख दिया।.....
ऑटो निकल गया.......
भीड़ तितर बितर
हो गयी ...और सोनू का बहुत दिनों
के बाद बहार खाने का सपना भी
......सोनू की जेब में
केवल अब दस रुपये
हैं .......उसने पेस्ट्री खाने
का विचार त्याग दिया
...... उन दिनों पेस्ट्री 10 रूपए की
आ जाया करती थी
....पर अब सोनू हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था... उसे डर था की दूकान दार उससे धुत्कार देगा ।...उसने
महेंगे कपडे भी तो नहीं पहने
थे...जो की दूकान दार उसे
प्यार से उस चीज़ के बारे में बताये जैसा की
वो..अमीर बच्चो के साथ करता
था .....आज उसका ज़नाम्दीन था और
वो आज न किसे पुलिस वाले की
..और ना किसी और की डाट खाना
.चाहता था।आज उसका दिन था .......उसने तय किया की वो
दूकान में जाएगा
....वो हँसता हुआ दूकान में गया और दो पाव खरीद
लिए ....एक उसने वहीँ
गली में बेठे कुत्ते
को दिया ...और
..एक खुद .. खाया ......उसकी आँख
में आंसू थे।
कुत्ते ने थोडा करीब आकर सोनू
की पाँव को स्नेह से चाटा
..........रात .. हो चली
थी........कहीं दूर मधुर मय संगीत है
........ ज़िन्दगी का collarge कहीं टूटी हुए चित्रों को जोड़
कर कहानी गड़ना चाहता
है .........
No comments:
Post a Comment