हाथ में थामे पत्थर जो तोड़ता सीश महल को
बोल देता है हर कोई ,पागल मेरी उस पहल को
हाथ ज़ख़्मी है ,या वो पत्थर हुआ ज़ख़्मी
रो पड़ा पत्थर ,जब तलक देखा खून से सने सहर को
टूटती है आस जब ,मंदिर और मस्जिदों में
इन्कलाब की बात अब छोड़िये ज़नाब ,,,
रोटी मिले तो बात करे आज इस पहर को
जो मिटा दै आंसू ये कविता हर एक आँख के
तो कोई बात बने , की तुमने काट दिया ज़हर को
बोल देता है हर कोई ,पागल मेरी उस पहल को
हाथ ज़ख़्मी है ,या वो पत्थर हुआ ज़ख़्मी
रो पड़ा पत्थर ,जब तलक देखा खून से सने सहर को
टूटती है आस जब ,मंदिर और मस्जिदों में
तब हैं अर्ज़ियाँ सेकड़ो ,उस गाँव वाली नहर को
इन्कलाब की बात अब छोड़िये ज़नाब ,,,
रोटी मिले तो बात करे आज इस पहर को
जो मिटा दै आंसू ये कविता हर एक आँख के
तो कोई बात बने , की तुमने काट दिया ज़हर को
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