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Saturday, May 5, 2012

बात बने

  हाथ में थामे पत्थर जो तोड़ता सीश महल को
बोल देता है हर कोई ,पागल  मेरी उस पहल को

 हाथ ज़ख़्मी है ,या वो पत्थर  हुआ  ज़ख़्मी
रो पड़ा पत्थर ,जब तलक देखा खून से  सने  सहर को

टूटती है आस जब ,मंदिर और मस्जिदों में
तब  हैं  अर्ज़ियाँ  सेकड़ो ,उस गाँव   वाली  नहर को

इन्कलाब की बात अब छोड़िये   ज़नाब ,,,
रोटी मिले तो बात करे आज इस  पहर को

जो  मिटा दै आंसू ये कविता हर एक   आँख के
तो कोई बात बने , की तुमने काट दिया ज़हर को 



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