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Wednesday, April 6, 2011

चादर से झाकता वो सख्स ........




"कैसे  हो" .... बड़ी हलकी से आवाज़ में उसने कहा था.......अपने घर के सबसे कसे हुए चोराहे   पर उनसे  मेरी   यूँ मुलाक़ात हो जायेगी  कभी सोचा नहीं था....आज भी  वो वैसे  ही  है पर  चहेरे की  रोनक अब गुजरे जमाने की  बात लगती है ...लगता है मानो  सिलवटे  पर पीस कर सारी हंसी को कहीं फैंक आयी हो...आज २ साल बाद उनका  यूँ मिल जाना ...मुझे  निशब्द कर देता है ...हमारी  चूप्पी  के फासले लगातार बड रहे है.........में चूप्पी  को तोड़ता हु और सर हिला के हामी भरता हु ठीक हु....आप कैसी है ....बड़े धीमे स्वर में .. मै  बोला।.....हाथो में चुडा और सर में सिंदूर देख..........शादी कर ली  आपने     मन में सोचता हु पर  कह नहीं पाता ।......

यहाँ कैसे...धीमे से बोलते हुए  ...  बड़ी ओप्प्चारिकता  मात्र मेने शब्दों  को अपने गले से  खीचा ....अपनी  टांगो  को दुसरी दिशा में हिलाते हुए में वहां से  निकलने की  कोशिश में हु...पर उसका ध्यान नहीं है उन इशारों  पर .....वो अपने पर्स के गुप्त खानों को खोलने बैठ    गयी शायद   कुछ ढूंड  रही है....


मुझे  याद है  आज भी जब मेरी  मुलाक़ात उनसे  पहली  बार हुई थी....अमित  ने मिलवाया था मुझे  उनसे ये कहते हु ... की ये है मेरी  सबसे प्यारी दीदी   ...आभा दी ....आज भी बस उनका निक्क नाम ही जानता हु........अमित मेरा कॉलेज का सबसे अच्छा  दोस्त था.....मेने पहली  बार कॉलेज की  लंका उसी  के साथ फतह की  थी......उस वक़्त मेरे लिए कॉलेज एक लंका की  तरह ही हुआ करता था........वो हर वक़्त मुझे  मेरे घर ठीक ९ बजे लेने पहुँचता ....और मेरे थोडा ना  नुकर करने पर पहला जुमला मारता .......अबे चल यार मस्ती करेंगे.......में भी उस पुरे जुमले में से सिर्फ एक शब्द  को पकड़ता मस्ती.....और बस चल देता उसके साथ......एक कमाल का प्राणी था वो जो रोते हुए को भी अपनी कई आवाजों से हंसाता .....और नहीं तो कम से कम कोशिश तो करता था........कॉलेज  में भी लड़कियों के बीच में ख़ासा फेमस   था वो अपनी हाज़िर ज़वाबी के लिए .......अपनी फॅमिली में दो बहनों का सबसे छोटा भाई   था.......उसे बस दो ही शोक   थे एक मिमिक्री और दूसरा आर्मी में जाने का .....हर वक़्त वो मुझे आर्मी क़ी  नई घटनाओ से अपडेट करता।.....मेरी  कुछ कुछ  चीजों को  लेकर उससे  ठन पड़ती थी ....वो भगवान् से ज्यादा  अपने पर भरोसा करता और ...में ठीक उसके उलट   ज्यादातर किस्मत का ढोल पीटता .......खैर में हर वक़्त जब भी उसके सामने बहस करने जाता  तो आपनी ढेर सारी आध्यात्मिक  बातो का जखीरा  उसके सामने खोल देता.....बहस लम्बी चलती ....एक घंटे बाद आभा दीदी चाय के प्यालो के साथ प्रकट होती ...और तब जाकर हमारी बातो की  तलवारे अपने अपने मयानो में वापस लौटती.......शाम ७ बजे में उसके घर से निकलता...कल फिर आना हारने  के लिए....वो फुस्फुस्सता .......और में हलकी सी  मुस्कान लिए चल देता....

यूँ तो अमित मेरे स्कूल में पड़ता था पर ७ साल एक ही स्कूल में होने के बावजूद भी मेरी  उससे कभी कोई ख़ास बात नहीं हुई .....वो स्कूल के  बड़े दबंग किसम के बच्चो  के साथ रहता...तो मेने भी कभी उसके करीब आने की  ज़हमत नहीं उठायी ....स्कूल छुटा तो सब यार दोस्त अलग अलग हो गए ...उसके भी और मेरे भी...कहते है दो अकेले  आदमी अक्सर करीब आ जाते है ....वही हमारे  साथ भी हुआ......दोनों ने कॉलेज में  सेम  सब्जेक्ट  लिए ताकि आगे के रास्तो में भी साथ चलना हो.....कॉलेज के दो साल कब कॉलेज की लेबो और लायेब्ररीयों के चक्कर  काटते काटते ख़तम हो गए पता ही नहीं चला.... हम घंटो सरवे  चौक पर बाते करते ...मुझे  आज भी याद है  c d S का फॉर्म खरीदते वक़्त उसने हाथ मेरे और करते हुआ कहा था .......अबे में एक दिन IMA में ट्रेनिंग ले रहा हूँगा और तू आएगा साला Salute   मारने मुझे ....अबे खयाल;इ पुलाव मत बना तो शायद हो भी जाये उसकी  बात काट ते  हुए मेने कहा....

फिर यूँ ही दिन आये और गए में  आपने थर्ड इयर के एक्साम में व्यस्त हो गया और न मेने उसकी  खबर ली  न उसने मेरी   .....एक दिन सुबह सुबह फ़ोन बजा  एक्साम से दो दिन पहले .....में एक्साम नहीं दूंगा ....अमित का फ़ोन था.....क्यूँ भाई..मेने कहा.....बस ऐसे ही बात को हंसी में टालते हुए  उसने  कहा......विश उ अल दी  बेस्ट फॉर यौर एक्साम बोला और फिर फ़ोन रख दिया....एक्साम खत्म  हुए तो मुझे  पता चला की अमित बहुत serious   है ICU  में भर्ती  है। ....मेने उससे कई बार contact   करने क़ी  कोशिश क़ी  पर हर बार फ़ोन स्विच ओफ्फ्फ।....एक दिन रात ९ बजे फ़ोन बजा दुसरे छोर पर अमित था......कैसा है ...बड़ी  सुस्त से आवाज़ में वो बोला .....अबे फ़ोन रखते क्यूँ हो तोड़ क्यूँ नहीं देते मेने बड़े बोख़लाहट  में उससे कहा ......उसने केवल हु में जवाब दिया...अपने गुस्से को शांत  कर मेने उसका हाल चाल  पूछा  ...ठीक हु........रोज injection खाता हु तीन। ........बड़े माज़किया अंदाज़ में उसने जावाब दिया........२० मिनट तक वो मुझे हंसाता रहा अपनी मिमिक्री से   उस रात में उसके  बातो  पर सारी रात   हँसता  रहा ......कुछ कुछ दिनों के अंतराल में अक्सर उससे फ़ोन  पर बात हो जाया  करती थी  ....वो  मुझे अपने ठीक होने के सामाचार देता.....एक दिन मेने उसे फ़ोन करने की  कोशिश की इस  बार फ़ोन फिर स्विच ओफ्फ्फ  ....तकरीबन में उसे १५ दिनों तक लागातार फ़ोन करने के कोशिश करता रहा मगर सब बेकार......कहीं से जुगत लगा मेने उसके पिताजी का नंबर हासिल कर लिया....उस पर   फ़ोन किया ... तो दुसरे और से एक रुवासी सी  आवाज़ ने फ़ोन उठाया ...और बड़े धीमे स्वर में  बोला कौन।....मेने अमित से बात करने की इच्छा ज़ाहिर की......."बाद में बात करेगा वो आप से...." वो बोली.......और फ़ोन रख दिया ....मेरे  एक्साम ख़तम  हुए तो में डेल्ही चला गया ...जब वापस लोटा तो .......ठीक घर पहुँचते  वक़्त  दरवाज़े पर फ़ोन घन घाना उठा....प्रदीप था ....."अमित घर लोट आया है" ...वो बोला ....उसकी  आवाज़ बड़ी  उदास सी  लगी मुझे ....में अभी आता हु.....इतना कहते साथ ही  मेने सामन घर में रखा और निकल गया उसके घर........प्रदीप मुझे वहीँ मिल गया...काफी  लोगो का तांता लगा था.......प्रदीप अमित का पडोसी था ...मेने उससे पूछा ...कैसा.....है.....बच नहीं पायेगा डॉक्टरों  ने जवाब दे दिया है ...वो बोला .....में सन्न  रह गया ........अब तक ७ लाख रुपये  लग चुके है ....अंकल जी ने पूरा profident fund तक लगा डाला .....सब रीसते दारों से उधार मांग  चुके है पर कोई उम्मीद नहीं

प्रदीप बोलता रहा और में  में सुनता रहा......एक अधेड़ उम्र की  महिला अमित की  माँ के उपर हाथ रख कर बोली  भगवान् की  मर्ज़ी के आगे किसके चलती है ....aunti की  पलके एक बार फिर भीग गयी ...रामदेवबाबा को क्यूँ नहीं दिखाते  .....शायद  वो महिला कहते कहते रुक गयी .......में धीमे से दुसरे दरवाज़े से अंदर पहुंचा ...वहां ....आभा दीदी उसके टॉयलेट   के डब्बे  को साफ़  कर रही थी ..."मिल सकता हु दीदी".. मेने धीमे से पूछा.....नहीं उसने  मना  किया है...वो बोली....वो फिर मुड़ी और बोली पूछ कर आती हु....वो कमरे में गयी जहाँ अमित लेटा था....मेने अमित को उस दरवाज़े की  ओट से देखा में सन्न रह गया.......उसके सर पर एक भी बाल नहीं था और वो  निहायत ही कमज़ोर हो गया था......सारे सर पर गांठे बंध गयी  थी ......में वहां से चुप चाप  चला आया......मेरे बालो को मत बिगाड़ वो हमेसा तीखे स्वर में  हम सब को  डांट दिया करता था  और  आज उसको इस हालत में देख कर ......बस मन में चीख निकल गयी........ठीक दस दिन बाद वो ज़िन्दगी की  डोर को तोड़ हमेसा के लिया चला गया......


अच्छा    कभी घर  आना......... मुझे  आभा दीदी की  आवाज़ ने फिर झकझोर  दिया...ज़रूर में बोला........उसे क्या हुआ था पता नहीं और मेरी  आज तक पूछने की  हिमत भी  नहीं हुई.....पर हाँ इतना ज़रूर   पूछ लिया दीदी से .....दीदी क्या  वो जानता था उसे क्या हुआ था........वो बोली हाँ .....कब से ......मेने बड़ा तीखा प्रसन पूछा...बोली शुरु  से....मै  हेरान था ...वो जिस तरीके से हंस के बात किया करता था......कभी लगा नहीं की वो अपनी म़ोत के बारे में जानता था.......वो आखरी बार उस ही   दिन रोया जिस दिन तुम आये थे.......और बिना बताये चले गए.....वो बड़ी  गंभीर  मुद्रा में बोली ........मुझे  लगा वो मुझ  से भी नहीं मिलना चाहता  होगा....नहीं उसने तुम्हे मिलने के लिए बुलाया था..पर.....वो कहते कहते रुक गयी ..में एक बार फिर स्तब्ध  और दुखी था.......वो हाथ को आँखों में फिराती है...और छुपा के आंसू पोछ  लेती है.....अपने नज़र के चश्मे  को फिर उतार   के     आँखों पर चडाती  है  और कहती  है........bye  विनोद...मगर मुझे कोई विनोदी अहसास नहीं हो रहा .है.......बस आ गयी है .......और मेने धीमे से घर क़ी ओर वापस आने  के लिए कदम बड़ा दिए हैं..... मगर मुझे  आभा दीदी के आँखों के नीचे ....... ज़मी  आंसुओं की  परत अभी भी परेसान कर रही है .............




....".ज़िन्दगी का फल्साफा ज़रा टेडा सा है 

समझने  को इसको थोडा ठहर जाया करता हु

रस्स्तो में लोग कम मिला करते है इसलिए 

ज़िन्दगी के मयखानों में ,महफिले सजाया करता हु "




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