फिर यूँ ही दिन आये और गए में आपने थर्ड इयर के एक्साम में व्यस्त हो गया और न मेने उसकी खबर ली न उसने मेरी .....एक दिन सुबह सुबह फ़ोन बजा एक्साम से दो दिन पहले .....में एक्साम नहीं दूंगा ....अमित का फ़ोन था.....क्यूँ भाई..मेने कहा.....बस ऐसे ही बात को हंसी में टालते हुए उसने कहा......विश उ अल दी बेस्ट फॉर यौर एक्साम बोला और फिर फ़ोन रख दिया....एक्साम खत्म हुए तो मुझे पता चला की अमित बहुत serious है ICU में भर्ती है। ....मेने उससे कई बार contact करने क़ी कोशिश क़ी पर हर बार फ़ोन स्विच ओफ्फ्फ।....एक दिन रात ९ बजे फ़ोन बजा दुसरे छोर पर अमित था......कैसा है ...बड़ी सुस्त से आवाज़ में वो बोला .....अबे फ़ोन रखते क्यूँ हो तोड़ क्यूँ नहीं देते मेने बड़े बोख़लाहट में उससे कहा ......उसने केवल हु में जवाब दिया...अपने गुस्से को शांत कर मेने उसका हाल चाल पूछा ...ठीक हु........रोज injection खाता हु तीन। ........बड़े माज़किया अंदाज़ में उसने जावाब दिया........२० मिनट तक वो मुझे हंसाता रहा अपनी मिमिक्री से उस रात में उसके बातो पर सारी रात हँसता रहा ......कुछ कुछ दिनों के अंतराल में अक्सर उससे फ़ोन पर बात हो जाया करती थी ....वो मुझे अपने ठीक होने के सामाचार देता.....एक दिन मेने उसे फ़ोन करने की कोशिश की इस बार फ़ोन फिर स्विच ओफ्फ्फ ....तकरीबन में उसे १५ दिनों तक लागातार फ़ोन करने के कोशिश करता रहा मगर सब बेकार......कहीं से जुगत लगा मेने उसके पिताजी का नंबर हासिल कर लिया....उस पर फ़ोन किया ... तो दुसरे और से एक रुवासी सी आवाज़ ने फ़ोन उठाया ...और बड़े धीमे स्वर में बोला कौन।....मेने अमित से बात करने की इच्छा ज़ाहिर की......."बाद में बात करेगा वो आप से...." वो बोली.......और फ़ोन रख दिया ....मेरे एक्साम ख़तम हुए तो में डेल्ही चला गया ...जब वापस लोटा तो .......ठीक घर पहुँचते वक़्त दरवाज़े पर फ़ोन घन घाना उठा....प्रदीप था ....."अमित घर लोट आया है" ...वो बोला ....उसकी आवाज़ बड़ी उदास सी लगी मुझे ....में अभी आता हु.....इतना कहते साथ ही मेने सामन घर में रखा और निकल गया उसके घर........प्रदीप मुझे वहीँ मिल गया...काफी लोगो का तांता लगा था.......प्रदीप अमित का पडोसी था ...मेने उससे पूछा ...कैसा.....है.....बच नहीं पायेगा डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है ...वो बोला .....में सन्न रह गया ........अब तक ७ लाख रुपये लग चुके है ....अंकल जी ने पूरा profident fund तक लगा डाला .....सब रीसते दारों से उधार मांग चुके है पर कोई उम्मीद नहीं
प्रदीप बोलता रहा और में में सुनता रहा......एक अधेड़ उम्र की महिला अमित की माँ के उपर हाथ रख कर बोली भगवान् की मर्ज़ी के आगे किसके चलती है ....aunti की पलके एक बार फिर भीग गयी ...रामदेवबाबा को क्यूँ नहीं दिखाते .....शायद वो महिला कहते कहते रुक गयी .......में धीमे से दुसरे दरवाज़े से अंदर पहुंचा ...वहां ....आभा दीदी उसके टॉयलेट के डब्बे को साफ़ कर रही थी ..."मिल सकता हु दीदी".. मेने धीमे से पूछा.....नहीं उसने मना किया है...वो बोली....वो फिर मुड़ी और बोली पूछ कर आती हु....वो कमरे में गयी जहाँ अमित लेटा था....मेने अमित को उस दरवाज़े की ओट से देखा में सन्न रह गया.......उसके सर पर एक भी बाल नहीं था और वो निहायत ही कमज़ोर हो गया था......सारे सर पर गांठे बंध गयी थी ......में वहां से चुप चाप चला आया......मेरे बालो को मत बिगाड़ वो हमेसा तीखे स्वर में हम सब को डांट दिया करता था और आज उसको इस हालत में देख कर ......बस मन में चीख निकल गयी........ठीक दस दिन बाद वो ज़िन्दगी की डोर को तोड़ हमेसा के लिया चला गया......
अच्छा कभी घर आना......... मुझे आभा दीदी की आवाज़ ने फिर झकझोर दिया...ज़रूर में बोला........उसे क्या हुआ था पता नहीं और मेरी आज तक पूछने की हिमत भी नहीं हुई.....पर हाँ इतना ज़रूर पूछ लिया दीदी से .....दीदी क्या वो जानता था उसे क्या हुआ था........वो बोली हाँ .....कब से ......मेने बड़ा तीखा प्रसन पूछा...बोली शुरु से....मै हेरान था ...वो जिस तरीके से हंस के बात किया करता था......कभी लगा नहीं की वो अपनी म़ोत के बारे में जानता था.......वो आखरी बार उस ही दिन रोया जिस दिन तुम आये थे.......और बिना बताये चले गए.....वो बड़ी गंभीर मुद्रा में बोली ........मुझे लगा वो मुझ से भी नहीं मिलना चाहता होगा....नहीं उसने तुम्हे मिलने के लिए बुलाया था..पर.....वो कहते कहते रुक गयी ..में एक बार फिर स्तब्ध और दुखी था.......वो हाथ को आँखों में फिराती है...और छुपा के आंसू पोछ लेती है.....अपने नज़र के चश्मे को फिर उतार के आँखों पर चडाती है और कहती है........bye विनोद...मगर मुझे कोई विनोदी अहसास नहीं हो रहा .है.......बस आ गयी है .......और मेने धीमे से घर क़ी ओर वापस आने के लिए कदम बड़ा दिए हैं..... मगर मुझे आभा दीदी के आँखों के नीचे ....... ज़मी आंसुओं की परत अभी भी परेसान कर रही है .............
....".ज़िन्दगी का फल्साफा ज़रा टेडा सा है
समझने को इसको थोडा ठहर जाया करता हु
रस्स्तो में लोग कम मिला करते है इसलिए
ज़िन्दगी के मयखानों में ,महफिले सजाया करता हु "
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