पैदल चलने का एक अपना ही मज़ा है ...अरे पागल हो क्या गाडी होती तो बात ही कुछ और होती ..नहीं नहीं यार खुद के पेरो से चलने में एक अलग ही आनंद है ....झट से मेरे दिमाग में चलते पहले विचार ने दुसरे पर हावी होते हुए कहा .... धूप ऐसे जैसे मानो सूरज पर बैठे हो .....अभी अभी बस के रेलम पेल से उतर कर अपने कॉलेज के तरफ चलना सुरु किया है .....साला एक गाडी मिल जाती तो ......नाक पर आती उस पसीने की बूँद को पोछ्ते हुए में मन ही मन चिलालाया .......कम्बक्तो ने कॉलेज भी तो जंगल में बना डाला है...अरे भाई बनाना ही था तो सहर में बनाते ...चलते चलते फेफेड़े हाफ जाते हैं ....तभी जोर से कोई पुराना स्कूटर भन भानते हुआ निकल पड़ा हमारे सामने से .....बस जैसे दिमाग में जलती आग ने विकराल रूप धारण कर लिया ......गलिया गए साले को....पर कुछ ख़ास फरक नहीं पड़ा वो तो निकल लिया.... जब गर्दन घुमा कर देखे के शायद हमारे गालियाने की बहादुरी का कोई तो साक्षी बना होगा...तो कंगाली ही हाथ लगी .....ऐसा लगा खुद को गलिया गए अकेले में .....एक फट फटी मिल जाती तो(रन फिल्म के हीरो के याद आ गयी ) ....हम भी इस १५ मिनट लम्बी सड़क को फुर से पार कर लेते..... जब भी इस सीधे लम्बी सड़क को देखता हु तो बड़े सारे टेड़े मेडे सवाल दिमाग में आते हैं...(जैसे बर्फ का गोला ...कोका कोला ...आमिर खान .....और डरमी कूल पावडर )दिमाग में विचारों का दंगल अभी भी जारी है ....सर के नसे चीगंडे मार मार कर कह रही है बस करो भाई इस धूप में चलना ...पर जो भी हो ..... में अभी कितना भी चीख लू चीला लू मगर अगर दिन के अंत तक कोई चीज़ याद रहती है तो वो है ये १.५ कम लम्बी सड़क...एक नन्ही सी पसीने के बूँद ने इस वीरान सड़क पर मेरा बखूबी साथ दिया है....गर्दन से होती हुई जो पीठ पर पहुँची है तो लगा जैसे ....जन्मो से प्यासी गरम रेत पर नदिया ने रास्ता बना दिया ...जब भी इस सड़क पर चलता हु ....तो नाजाने क्यूँ मेरी मुलाकात मुझ से हो जाती है....रोज़ अपने से मिलने का मौका ये १.५ k m लम्बी सड़क मुझे देती है ...पुरे दस मिनट तक अपने आप से और इस सड़क से बात करता हु और कभी कभी तो इस अवधि को जान बुझ कर बड़ा देता हु.. पौ पौ करती एक बड़ी गाडी जो अमूमन इस रास्ते पर कम ही चलती है मेरे बगल से बिजली की रफ़्तार से निकल गयी .....कसम से कहीं और होते तो बोलते उस गाडी वाले को रुक देखता हु तेरेको ....मगर आधय्तम के गुंड भी भर दिए इस सड़क ने मुझ में ......एक दो लोग दिख रहे है कॉलेज की और से आते हुए....बोझील चेहरे लिए.....बड़ा धीरज है इस सड़क में फिर भी हंस के स्वागत करती है .....छननी हथोडो के आवाजें तेज़ हो गयी हैं..शायद कहीं मरम्मत का काम चल रहा है...मेरे कदम अभी हलके हैं...क्लास के लिए १५ मिनट लेट हो गया हु ..... ......कॉलेज का गेट चिलचिलाता हुआ दिख रहा है ...थोडा थका हुआ.........शायद गर्मी से ......बैठ जा ...अरे अब invitation दू क्या बैठ जा ....मेरे क्लास मेट की आवाज़ थी...जो या तो अक्सर लेट आता है अपनी कार में ...या तो आता ही नहीं है.....उसके उस वक़्त पड़े खलल से मुझे ऐसा लगा जैसे वो मुझे ज़बरदस्ती मेरे किसी जिगरी दोस्त से अलग कर रहा है...मन हुआ बोल दू "नहीं बैठ ना तू निकल.....पर फिर एक प्लास्टिक इस्माईल चेहरे पर चिपकाये कहा यार अच्छा हुआ तू आ गया "उसने कुछ ख़ास ध्यान नहीं दिया....उसके उंगलियाँ म्यूजिक प्लयेर की ओर बढ गयी...गाना चल रहा है गडडी मेरे देख आवाज़ मारदी या शायद ऐसे ही कुछ ...आवाज़ वो कभी कम कभी ज्यादा करता है .....में गाडी में दुबक के बैठा हु ....उसको बोलने की हिमत नहीं है की गाना रोक दे ...में पीछे मुड मुड कर उस सड़क की तय की दूरी को आँखों के स्केल से नापने के कोशिश कर रहा हु .... आज रास्ता पांच मिनट में तय हो गया .......बड़ी टीस है मन में वो सड़क मुझसे दूर जा रही है............. कॉलेज ख़तम होने को चंद रोस है.......
एए सड़क तुझ से अब किस मोड़ पर मिल पाना होगा....
में तो चला अब... तो नए सहर में मेरा ठीकाना होगा .... फिर मिलेंगे दोस्त
sahabash content writr banega tu.
ReplyDeleteएए सड़क तुझ से अब किस मोड़ पर मिल पाना होगा....
ReplyDeleteमें तो चला अब... तो नए सहर में मेरा ठीकाना होगा ....
bahut achcha....wah.....
बड़ी टीस है मन में वो सड़क मुझसे दूर जा रही है............. कॉलेज ख़तम होने को चंद रोस है.......
ReplyDeleteहां, यह टीस सबको झेलनी पड़ती है अपने जीवन में.
भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण . ...बधाई