वो बिस्तर पर लेटी आँखे ,
हर रोज़ मुझे पूछती है ,
रोज़ मेरे ओर वो एक
पुराना सा सवाल उछाल देती है
पूछ ती है बेटा जी तो लोगे न मेरे बीना
मेरा यूँ कमरे में चले जाना उन्हें बहुत सालता है
यूँ मेरा सवालों पर निरुत्तर हो जाना ,उन्हें बहुत काटता है
हाथो में देख कागज़ के गठठे, वो आँख चमक जाती है ,
और देख उस उदास चहेरे को वो ख़ुशी दरक जाती है
यह सिलसिला सालो साल की एक कड़ी है
आँख कब की बंद हो जाती ,मगर
मौत और मेरे बीच जीमेवारी खड़ी है
वो निगाहें हर वक़्त कहती है
तुम्हारे हाथ में में इस खंडर महल की चाबी दे देता
मगर तुम्हारे और इस चाबी के बीच में नौकरी खड़ी है
bahut bhawmay.....
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