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Friday, February 18, 2011

उड़ते सन्देश पकड़ लेना.

आज हाथ काप रहे है, पर न जाने क्यूँ  लिखने का मन बना लिया है.......थेर्म मोमीटर  को मुह में कोच कर देखा तो बुखार कुछ  युएँ ही १०१ निकल आया ...बस भाई आज घर में  अकेला हूँ तो रोने का मन किया ....अपने आप को तसल ली  दे रहा हु की  अब बड़ा हो गया हूँ  तो रोना नहीं है..... तो बस   उ ट पटांग जो मन आ रहा है वो लिख रहा हु ताकि आंसूओं  को रोकने के बहाने कुछ   और कर सकू...नजाने आज बुखार में क्यूँ  कॉलेज के आखरी दिन की  तस्वीर उभर आयी  है.....उस तस्वीर ने जो सीहरण पैदा की कंठ रुंघ गया....जबरदस्ती अपना ध्यान हटाकर बहार खिड़की की  ओर करा ...ताकी बहार होती तेज़ बारिश मेरे मन में आते इन  ख्यालों को धो दे...में क्यूँ ऐसा सोच रहा हूँ  अभी तो कुछ  दिन है कॉलेज खतम होने को....पर केवल कुछ  दिन  है....न जाने क्यूँ  मु झे रह रह कर  वो हरी भाई का खोका याद आ रहा  है ...वो बारिश  में हरी भाई की  चाय....का मज़ा ही  कुछ  और था ....चाय कम पीना और दूसरो की  टांग  खीचना मन में अलग सी  गूद गुद्दी  पैदा करता है ......
वो दिन भी तो भुलाये नहीं भूलते जब माँ से झूट बोलकर रात रात तक  जंगले पार्टी की .....सुरेश भाई के खोके पर रूककर ढेरो प्रोब्लेम्स का सोलू शुन  ढूंडा .....सिर्फ सोलुशुन ढूँढने  के चक्कर में डेरों  क्लास्सेस बंक की.... रिपोर्ट कार्ड ख़राब होने की  बहुत  परवा रहती थी पर एक्साम का नहीं दोस्ती का....घंटो प्यार मोह्बात की  मुस्किलो का समाधान करना और बड़े बड़े भविष्य के ख्याली पुलाव तो सभी के बीच आपस में फेमस थे .... अभी ठण्ड बड गयी है.......और अब आंसों ऊ को छीपाने  में अपने बिस्तर में जा रहा हूँ ......
भई दो घंटे के ब्रेक के बाद वापस लोटा हूँ जैसे ही लगा की बस बुखार थोडा कम हो गया है तो बस आ गया लिखने....विचारों की  लय थोडा गड़बड़ा गए होगी पर ....फिर भी वहीँ लोटता हूँ  जहाँ छोड़ा था ...
अब तो दून विश्व्ह्वाविदयालय के दिन केवल उँगलियों पर गीन सकता हूँ ....वो बेमतलब का कॉलेज जाने का आहसास ही कुछ  और था ....छुट्टी के दिन भी में कभी कभी  कॉलेज हो आया करता था.......अस्सिग्न्मेंट उतने नहीं किये जितने दोस्तों के ख़ुशी के लिए उनके काम....पर फिर भी दोस्ती के मामले में  नंबर  फुल मिल जाते  थे .....
मु झ  जैसे स्टुडेंट को भी हर वक़्त आगे किया चाहे वो उत्  पटांग थीअटर हो या मज़े के लिए debate  बोलना .....हमेसा आगे बडाया......डी.उ की अभी हालिया सुरात थी तो उसकी जम्मी  भी हमी थे और आसमान भी ....हम अस्सी बच्चे एक फॅमिली की  तरह रहे .......अब फॅमिली हैतो मन मुटाव भी हुए ...पर आज तो कुल मिलकर सभी प्यार   भरे लड़ाई झगड़े याद आते है....दोस्तों जहाँ भी रहो  लेकिन मेरे उड़ते सन्देश पकड़  लेना....तुम्हारा साथी विनोद ......और ना जाने क्या क्या 

Monday, February 7, 2011

मरघट का ज़ल्लाद,



  में मरघट का ज़ल्लाद, में मरघट का ज़ल्लाद
                                   काली चमड़ी ,लठ हाथ में,
                                   मरघट में हूँ , में जीता ,
                                 लाशो के अम्बार, के ऊपर ,
                                 छाती ठोक हूँ , में कहता ,
                 में मरघट का जल्लाद, में मरघट का ज़ल्लाद
                                  लोगो के संताप के उपर
                        जलती हुई चिता के आग के उपर,
                             में अपनी किस्मत पर हसंता ,
                              आज कई दिनों के पश्चताप,
                          मिलेगा भर पेट भोजन आज
          में मरघट का जल्लाद, में मरघट का ज़ल्लाद

Wednesday, February 2, 2011

            यादों की  किताब    

ये दिन ये बाते तुम्हे याद आएँगी
हम रहे या न रहे ,पर तुम्हारे यादों की
किताब में अक्षर  बनकर उकर जाएँगी

कभी बुराई कभी अच्छाई,
कभी झूट ,कभी सच्चाई
कभी पलो को जीना ,
तो कभी  पलो को भूल जाने  को पीना
कभी जुड़े का फटना ,तो कभी फटे को सीना

वो सावन के बारिश के पानी को पीना
वो भूल सारे बंधन बच्चो में जीना
कभी  बच्चो से जीवन के कायदे समझना
वो सर्दी के मौसम में गुल का मुस्कराके खिलना
वो तनआही में याद्नो का धीमे से  पिघलना
बोलते  गले का युएँ रुंघ जाना
 ख़ामोशी का चील्ला के कहना, जरा रुक  जाना

वो प्यार के इज़हार पर दिल का धडकना
गलती करने पर वो माफ़ी का तड़का
वो चाय के चुस्की में जीब का जलना
दुसरो के दुःख में वो आन्सो के फुवारे
वो दुःख हमारे वो दोस्त का कन्धा

ढलती उम्र में वो  बचपन के यादें
स्कूल छूटने पर वो हजारो वादे
वो दोस्त के छुटने का एहसास पुराना
ये यादें सुनहरी इन्हें जीवन भर सजाना