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Saturday, November 26, 2011

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जीने के बहाने....





सुबह सुबह अलार्म की घंटी बजी है....में बंद करने के लिए उठता हु.....पर उठ नहीं पाता .अपना ही सर का बोझ नहीं उठाया जा रहा है......लगता है गर्दन ने रात भर किसी  के साथ कुस्ती की है....माँ.... में चीखता हु ...मगर आवाज़ भी हलक के अंदर ही मरे जा रही है...में खुद ही उठ कर कोई क्रिम ढूंड रहा हु ....क्रिम लेता हु और गर्दन पर मल देता हु....इस क्रिम की  खुसबू  मुझे काफी अच्छी लगती है ऐसा  में अपने आप  से कई बार कह चूका हु ...सुबह के साथ बजे हैं ...आज कॉलेज की छूटटी समझो....मन में  ये ख्याल बड़े ही धीमे से बोल  रहा है ,मै  रजाई के अंदर मुह दबा कर एक और सपना देखने की कोशिश में हु ....घडी का दूसरा सेट किया अलार्म भी बज चूका है....में  अपने बिस्तर को संभालता धीमे  से बाथरूम की ओर हो लेता हु.....नीद में  झूमती मेरी  आँखे और सुसताते मेरे हाथ टूथ ब्रुश को नजाने मेरे मुह पर कहाँ कहाँ  भीड़ा रहे हैं ..सब निबटाते मुझे  11 बज ही जाते हैं.....फ़ोन की घंटी बजी है ....महेश है..... कॉलेज के  फर्स्ट इयर में मिला था  मुझे .....मुझे अस्पताल जाना है सर्टिफिकेट लेने....जल्दी पहुँच......वो कहते साथ ही फ़ोन काट देता है ....महेश का अभी आर्मी में सेलेक्शन  हुआ है....में फटा फट थाली में भीगाये दो मुठठी  काले चने उठा चल देता हु.......में रास्ते में हु...महेश कई बार फ़ोन कर चूका है.....में ठीक 12 बजे उस तक पहुँचता हु...वो मेरा सरकारी अस्पताल की  पुरानी बिल्डिंग के  बहार इंतज़ार कर रहा है ...अपना बैग मेरे हाथ में थमा वो ......लम्बी लाइन में लग जाता है......साला सुबह सुबह कहा  ले आया.....अस्पताल  से आती सैकड़ो तरह की बदबुओं से  तो दम निकला जा रहा है...में महेश को मन में कोस रहा हु.......ताज़ी हवा लेने में बिल्डिंग से बहार लॉन की तरफ  हो लेता  हु.......उफ़ ये गर्दन का दर्द तो मेरी  मुलाक़ात आज यमराज से करा ही देगा ..आधा पौन घंटा हर चीज़ को कोसता में चहल कदमी   कर  अपनी  कोफ्त हर  चीज़ पर निकालता  रहा....अपने हाथ में रखे उस बैग को तकरीबन मेने फाड़ ही  दिया है..........में अपनी नज़रो को ज़बरदस्ती अनज़ाने चेहरे पर केन्द्रीत कर रहा हु......सायद कोई जाना पहचाना मिल जाए.......वैसे भी अपने ही सहर  में जब सब चेहरे नए हो तो सहर भी अपना कोई दूर का रीसतेदार लगता है......आडी तीर्छी घुमती मेरी  नज़र एक चेहरे पर  आकर रुक गयी .....dermatalogist  डिपार्टमेंट के  बहार खडी पीले suit  में वो लड़की वहीँ लगे किसी पोस्टर को बड़े गौर से पड़े जा रही थी....




मेरी नज़र बहुत देर तक उस पर टिकी  रही ...... मै  उसे लगातार पहचान नै की कोशिश कर रहा हु ......ये मुई  याद दाश  को भी क्या हो गया है में अपने हाथ पर रखे बैग को  खुद के सर पर मार देता हु ......काफी देर से खडी उस  लड़की को देख मन ठहर सा गया ....वो अब फ़ोन पर किसी से


बात कर रही है  ......नजाने कौन है  .में उस पर  ध्यान हटाकर   मुड़ने की


कोशिश में हु......उस धुंदली याद ने मेरे दिमाग पर फिर से एक  ज़ोरदार प्रहार किया है..........प्रेयर  के वक़्त लड़कियों  की लाइन में तीसरे नंबर पर खडी होने वाली   लड़की थी वो ...उसका चेहरा मुझे  मेरे दिमाग के तहखाने से मिले किसे अधूरे अभिलेखों के तरह लगा जिसमे कुछ फटे पुराने कागज़ के टुकडे रखे  हैं अधुरी सुचना के साथ  ...नाम के साथ मेरा मन अभी भी खिलवाड़ कर रहा


है...."साक्षी"......."संध्या".या ..."सुरभि'.... अपनी यादों के अखाडे  में कई पुरानी यादों को पठ खनी देने के बाद आखिर कार मुझे  उसका नाम याद आ ही  गया सुरभि था उसका नाम


.......पहली बार मेरी मुलाक़ात उससे नवी क्लास में हुई .......वो हमारी  क्लास में नयी थी ...फ्रेश मुर्गा आया है ...किसी भी नए  बच्चे  के आने पर हम चुटकी लेते  थे  .....गर्मी  की छुटीयों के बाद एक नए चेहरे ने ज्यों ही क्लास में परवेश किया तो पीछे से एक जानी पहचानी आवाज़ ने अपने अंदाज़ में कहा.........सुरभि जाओ वहा  बैठ जाओ क्लास teacher ने मेरी  ओर इशारा करते हुए  कहा था   .....वो मेरी row  में मेरी ओर बड़ते हुए ठीक मेरे  पीछे वाली सीट पर एक बहुत ही वज़नदार  शरीर    वाली लड़की के साथ  बैठी थी ....मेरे चेहरे पर एक बचपन वाली हंसी छूट आयी  थी...वो खुशकिस्मत थी ..ऐसा मै  नहीं मेरे साथ के सब उत्पाती बच्चे जानते थे ......आखिर वो हमारी क्लास की मोनिटर के साथ   बेठी  थी ...........मोनिटर की कैमरे जैसे निगाहों ने एक बार हम सब उतपाती  बचचौं पर नज़रे  फिरआयी  हैं ..और बिना कुछ बोले ही सख्त हिदायतओं के फरमान ज़ारी कर दिए ..." अब आप मोनिटर की होने वाली दोस्त को  देख भी नहीं सकते  ऐसा वो अपनी छोटी आँखों को बड़ा कर कह रही थी ..... पर उस दिन हम सब विद्रोही थे हम सबने उसे पहले से ज्यादा गौर से देखा खूबसूरत और सौम्य चेहरे वाली उस लड़की की आँखे जिस जिस  पर टकराई उन सब की  दोस्ती को उसने मूक सहमती दी ...बहुत जल्द ही उन दिनों वो teachers की चहेती बन गयी ...अब तो क्लास को चुप करना का ज़िम्मा भी कभी कभी  उसे मिल जाता था....


 इस बार साइंस एक्सिबिशन  में तुम जाओगी ...हमारी साइंस  टीचर  ने अचानक से ब्लैक बोर्ड पर कुछ लिखते हुए पलट कर ये बात कही थी ......हम सब पहले की तरह  ही अपनी बत्तीस्सी दिखाए हंस रहे थे....प्रतीक  ने मुझे  एस बात पर जोर से कोहनी मारी है.....वो इस बात से बेहद नाराज़ था ..वो हमारी क्लास का स्कॉलर था ।और हर कॉम्पिटिशन में उसका नाम लिया जाए उस को  ये आदत डलवा दी गयी  थी ..उस दिन वो मुझ पर बहुत बीफरा ,,तू बता यार कौन डीसर्व करता है इस कॉम्पिटिशन के लिए वो मशीन गन की तरह मुझ  पर सवाल दाग रहा था....में नहीं करता क्या?.... वो ऐसा कई  बार बोल चूका है ......... में उसकी बात अनसुना कर चल देता हु .......महीने चन्द मिनटों की तरह .ऐसे ही देखते देखते निबट गए और  हमारे मिड टर्म भी निकल गए ........प्रतीक  ने एस बार भी टॉप मारा है वो खुश है ......में ठीक ठाक नम्बरों से पास हो गया हु ........ऐसा मुझे लगता है ......सुरभी हमारी क्लास में सेकंड आयी है वो भी हमेसा की तरह हंस  रही है ......छोटी मोटी नोक झोंक के बीच हमारे ज़ल्द ही हाफ इयरली  एक्साम भी निबट गए पता ही नहीं चला  दो दिन बाद रिजल्ट है .....में पास हो  जाऊँगा में रोज़ सुबह उठ कर गायत्री मंत्र का जाप कर अपने आप को तसली देता हु ........आज रिजल्ट आया है......पिताजी को में रिजल्ट देखने को बोलता हु ...खुद टीचर  की डांट के डर से बाहर ही खड़ा हु ....सुरभी  कौन है पिताजी पूछते है ......क्लासमेट  है में हलके से बोल देता हु ......वो फर्स्ट आयी  है अगली बार उस की तरह नम्बर लाना ....मुझे बड़ी हेरानी है अब प्रतीक का क्या होगा ......प्रतीक  ने मुझ से अब बात करना तकरीबन बंद कर दिया है ,वो अब किताबों में ज्यादा समय गुज़ारता  है ......उसको लगता है उसके किले में किसी ने सेंघ लगाई है......वो किसी  जंगली शैर की तरह किताबों का बड़ी ही बेहरहमी से शीकार करता है .....किसी  के हाथ में दीखती कोई नयी  refrence book ...को ...वो  उधार मांग लेता  था ......मेरे नाइन्थ स्टैण्डर्ड के चार मौसम कैसे गुज़र गए पता ही नहीं चला .....हमारे final  एक्साम होने वाले थे हम सब बड़ी जोर शोर से मेहनत पर लग गए .......सबने  अपना अपना बेस्ट दिया.......एक्साम ख़तम हुए  तो रेस्ट के लिए कुछ दिन की छुटियाँ      मिली ....इन छूटीयों में ......में  केवल भगवान् की पूजा करता रहा ......कुछ दिनों बाद रिजल्ट भी आ गया ......हमारे क्लास मे  फर्स्ट के नाम की घोषाडा हुई तो सबसे पहला नाम प्रतीक  का लिया गया आखिर उसका रोब लोट आया था .......सुरभी  एक बार फिर सेकंड आयी.....वो उस दिन भी मौजूद नहीं थी ...हम सब खुश थे पास होने से ज्यादा हमे गर्मीयों  की  छूटियों की परवा थी.......लम्बी गर्मीयों  की छूटियों के बाद हम सब लोटे सिवाय एक के ....


सलीम .....53 नम्बर  है क्या.........किसी  ने डॉक्टर के केबिन से  बड़े ही रूखे अंदाज़ में नाम पुकारा है.....में दुबारा सुरभी  को देखता हु ....वो कुछ बदली बदली  सी लगी है..उसका पूरा चेहरा तकरीबन सफ़ेद हो चूका है ........में उसके पास तक जाता हु.....उसने मेरी  और देखा ..वो मुझे एक दम  पहचान लेती है...तू यहाँ कैसे .....और क्या कर रहा है.....दोस्त के साथ आया हु में उसे कहता हु ....वो आज भी नहीं बदली....उसकी जीवटता  देखकर बड़ी हेरानी होती है.......में ना चाहते हुए भी नजाने  क्यूँ उससे    बैवकूफी भरा सवाल     पूछ लेता  हु ......यहाँ कैसे ...और ये क्या हुआ है तुम्हे .......वो थोड़ा हिचक जाती है .......leukoderma वो हलके से बोलती है.......


इस  बीमारी ने उसके चहेरे की चमक फीकी कर दी है ...पर उसके जीजीविशा  उसे  अभी भी एक आकर्षक व्यक्तित्वव देती हैं    ......."leukoderma" एक अनुवांसिक रोग है ऐसा मेने किसी  अखबार में पडा था....हमने स्कूल की  कुछ पुरानी बातें की ...जब  तक उसे अंदर से डॉक्टर ने नहीं बुलाया ......अच्छा में चलता हु में उससे कहता  हु.....वो फिर हंसती है और bye कहती है.......में अपने कानो पर अपने mobile के ear फ़ोन   लगाता हु.......हम सब अपने अपने मौसम का इंतजार करते हैं और मौसम यादों का हो तो उसके साथ खेलने  का मजा  ही कुछ और है.......में F M की आवाज़ को  बढ़ाते हुए  इन लाइन्स को रटने   की कोशिश में हु .....किसी  ने गाने के फरमाँश की है ......समवेदनाव के तार को झनझनाता  संगीत एक बार फिर मुझे  उसकी ओर  देखने को मजबूर करता है ..उसकी जीजीविशा  देख मेरे मन के अंधेरे कमरे में बुझा दिया एक बार फिर जल उठा है....आज पांच साल हो गए पर वो मुझे नहीं मिली  में डेल्ही में हु और मुझ जैसे कई  लोगो के दिल में ........जो maths  science  से इतर .ज़िन्दगी में हँसते रहने का एक नया लेससन पड़ा रही है. कही पड़ा था मेने ".


जिंदगी जीने की कोई उम्र नहीं होती ... कुछ फैसले गज फीते से नाप -जोख कर तय नहीं किये जाते….....उसकी वजह से मेरे ज़िन्दगी में नए सुबह आयी  है तो ......मेरे तरफ से good morning teacher ..






"फ़ोन की घंटी ने  मेरी  नींद को एक बार फिर तोडा  है...में घड़ी की और देखता हु ....9 बजे हैं......फ़ोन उठाता हु.....अबे कॉलेज नहीं आना क्या....गौरव का फ़ोन है ....मुझे अभी भी   नहीं लग रहा है की मेने सपना देखा है"




"कभी खोजीयेगा   उमीदों के  खोल.......
सिराने पड़े मिल जाएंगे आपको ...
बस पलक बंद करने की देर है"
                                                                                                                    
 "कुछ सच्चे पात्र और खयालों के धागे हैं ..मेंने अपने तानाशाही दिमाग से अपने विचारों को आजाद किया है...
"मगर कुछ सचची कहानी भी है  जो हमे हर वक़्त जीने की उम्मीद देती है ... सिखा नाम की वो  लडकी   जो ज़िन्दगी के मंच पर herione है  .....जो अपने  चेहरे और टांगो से विकलांग होते हुए भी ज़िन्दगी के मंच पर बखूबी नाच रही है .....वो  अपने छोटे भाई को खूब हंसाती  है  और नौकरी कर अपने माँ बाप का सहारा बनी हुई है ..........रावत जी की मिठाई की दूकान में काम करने वाला  12 साल का सुनील ...बर्तन धोते हुए भी पहाड़े याद करना नहीं भूलता ....है ना ये  ज़िन्दगी मज़ेदार

 

Monday, November 7, 2011

उलझन



मेने कल कुछ रिश्तो  के लछछे  बांधे थे खुटे पर........
अब देखू तो वो लछछे कुछ सुलझे हैं और कुछ उलझे .....

Tuesday, October 4, 2011

शर्म



कांच का बड़ा सा दरवाजा जब चौकीदार ने खोला और हाथ को अपने  माथे   पर रखते हुए कहा " सलाम मैम साहब ". मैम साहब सुन कर महिला के चेहरे  पर एक तीखी मुस्कान बिखर गयी .उसको अपनी अमीरी पर फक्र होने लगा ...रोबीला चेहरा लिए वो अपनी  ६ साल की बेटी को ले दुकान में दाखिल हुई .दुकान के चमचमाते सीसों से टकराते हुए उस ६ साल के लड़की की  नज़र दूर बाहर खडी एक लड़की पर पड़ी .......कमजोर चेहरा ,दुबली पतली कद काठी की  वो करीब १६ साल की  लड़की उन्हें लगातार घूरे जा रही थी. " माँ देखो न उस लड़की को कितने गंदे और फटे कपडे पहने हैं उसने ....अपनी माँ के हाथ को कई बार झटकते हुए . ६ साल की पिंकी ने उस लड़की की लाचारी से झाकते उसके बदन की ओर इशारा करते हुए कहा .........वो बेहद कमज़ोर थी ओरे हर वक़्त अपने कपडे पर लगे लाचारी के चीथडों को संभाल रही थी ...पिंकी की माँ नै अपने हाल्फ स्लीव ब्लाउस को थोडा व्यवस्थित करते हुए पिंकी को झीडकी लगाई ....वो तो बेशरम लड़की है ..शर्म तो बेचने के लिए होती है इनके पास ...वो मन ही मन बुदबुदाई ...."कौन सी  ड्रेस दिखाऊँ बच्ची के लिए" ...दूकानदार अपनी जगह को छोड़ते हुए अभिनन्दन की मुद्रा में आ गया ...फरोक दिखाऊ बच्ची के लिए बहुत प्यारी लगेगी ...दुकानदार ने बात को ज़ारी रखते हुए कहा .......पिंकी की माँ उचक  पड़ी.....अंग्रेजी में कुछ तीखे प्रहार दुकानदार पर दिए......आप कैसी बात करते हैं इस नए ज़माने में फरोक पहनेगी मेरी बेटी.....वो दीखाइये ऊँगली से एक मिनी स्किर्ट की ओर इशारा करते हुए वो बोली ......दुकानदार ने एक बार उस बच्ची की और देखा और एक झुकी नजरो से उस महिला की ओर ...और जोर से चिलाया छोटू......वो तीसरे माले पर रखी ड्रेस दिखाना ........ .उधर वो दुबली लड़की अभी भी अपने कपड़ो को खींचकर कुछ बड़ा करने की कोशिश कर रही है..........शायद कुछ लाज बच जाए...


"हर बार मेने अपनी शर्म की चादर को कई बार सिया है
  मगर इस कम्बक्त बादल   ने बहाने से मुझे बेसरमी की  बारिश में फिर भिगो दिया है "

Friday, August 12, 2011

आंसू बोलू या मोती

    आँख के आंसू मटमैले  होते 
    भूख आंत को छूती है
   बीते रात केवल बर्तन लुडके थे 
   कैसे बोलू क्या बीती  है

Monday, August 1, 2011

अधकचरा



मेने  पीछले हफ्ते ही कुछ ख्वाब   रोपे थे फलक पर  .........                                                                     
हर खवाब को सीचता हु उन बूंदों से जो जमा है एक अरसे से पलक पर .....

Saturday, April 16, 2011

कुछ इन्कलाबी .............

उस दिन भी सिस्टम को गलियाते हुए में घर से निकला....साला रोड बाद में बनती है खोद पहले देते हैं.....आपसी  coordination तो साला किसी  डिपार्टमेंट के पास नहीं...है...यूँ भी हम सिविल सोसाइटी वाले लोगो की आदत है....दिन महीनो  और सालो का गुस्सा ......किसी एक चीज़ पर  ठोक बजा के निकालते है......तो में भी यही कर रह था  खुदी पड़ी उस सड़क को अपने गुस्से से लतिया  रहा था .......अरी पागल है .......थोडा मंद बुद्धि है......सामने पीले suit  में फंसी नेगी आंटी अपनी तारकिक्क  समता का  परिचय   देते हुए शर्मा अंकल को कह रही थी  .........६ फूट लम्बे शर्मा जी जो अपनी व्यवहार कुसलता   और  वाक्पटुता के लिए कालोनी में  काफी चर्चित हंसती थे ......उनकी हर बात पर  हामी भरे जा रहे थे....अपनी बात को  समर्थन मिलता देख वो कुत्ते वाली ऑंटी(नेगी ऑंटी)....जो अक्सर बच्चो को यह कह कर डरा देती  है  .......की  अगर गेट  के  अंदर आये तो कुत्ता छोड़ दूंगी तुम्हारे उपर......खीसे निपोर कर  हंसी जा रही थी....सामने खड़ा एक खूबसूरत  डील डोल  वाला लड़का बिना किसी सरकार की मदद  लिए और किसी अधिकारी  का इंतज़ार किये......उस बेतरतीब  रोड को समतल कर रहा है......

भीड़ बड गयी है ....कुत्ते वाली ऑंटी के साथ अब कालोनी के कुछ और बातूनी और फिलहाल बेकार ...ओरते जुड़ गयी है.....रावत जी का लड़का कुछ करता नहीं बेरोजगार है.......नेगी ऑंटी बड़े गर्व से बोलती है....खुद का बेटा आर्मी में सिपाही है ......अब नौकरी लगना  भला आसन काम है  क्या ......B A , M . A, करने वाले खाली है  तो ये तो दसवी  पास   है  केवल......शर्मा  जी अपने  मीठे  अंदाज़ में बढ़ी ही कडवी बात कह जाते है.........वो गोरा लड़का  अभी भी सड़क को ठीक कर रहा है ...... लड़का अपने घर से होता हुआ काफ्फी घरो की सड़क को समतल कर चूका है.....

मेरे बेटे को ही लो...तीन तीन क्लिनिक पर बेठता है......आसान  है क्या.....शर्मा जी  की आवाज़ में एक अलग भारीपन है और थोडा गर्व भी ....शर्मा जी  का बेटा डॉक्टर है......आयुर्वेद का.....कभी पूछयेगा    की किसी अस्पताल में क्यूँ नहीं करते प्रकटिसे तो बड़े सलीके  से सम्घायेंगे .आपको शर्मा जी ...अब अपना  काम तो अपना ही होता है...क्यूँ . ये उनका पेट जुमला है......पिछले तीन साल में उनका बेटा  सेकड़ो अस्पतालों के लिए सोर  सिफ्फरिश   दे चूका है......पर शर्मा जी को छोड़ कर ये बात सारा मोहल्ला   जानता  है.......उन्हें तो बस एस बात पर फक्र है की बेटा डॉक्टर है.....लोगो से कम  मिलता है शर्मा जी का बेटा  ताकि साख बनी रहे मोहल ले  में .......और जिस से  मिलता है उसके सामने पांच साल की सीखी   डॉक्टरी .......पांच मिनट में बघार जाते है........"मेरे   मास्टर हर वक़्त एक बात कहा करते थे  .....ज्यादा पढ़े लिखे लोग अक्सर ज्यादा बोलते है......और कम पढ़े लिखे केवल काम करते हैं.......

 सड़क समतल हो चुकी है ......और वो बुधी जीवी  भवरे  (auntiyaan ) अभी भी मंडरा  रहे है.....उस गोरे लड़के के चेहरे पर शार्मिन्दागी की अलग अलग आक्रीतियाँ  उभर आयी  हैं ....शायाद कान में कुछ सब्द पड गए हैं उस लड़के के उस बुद्धीजीवे तबके के द्वारा  ....बात उसके  ही  बारे में हो रही है ये उसे अहसास हो चूका है ......"हम कैसे भी हो और किस भी सामजिक और आर्थिक परिवेश से तालुक रखते हो ...मगर हर आदमी के अंदर एक आत्म समान की  चादर होती है .......जिसे वो फटने नहीं देना चाहता ...... "वो गोरा लड़का अपने पसीने के बूंद को उंगली यो      में समेटते हुए ......सूरज की  ओर एक बार निहारता है......फावड़ा उठता है .....और अपने आप को सान्तवना देता.....अपने दो कमरों वाले घर में घुश जाता है.....
नेगी ऑंटी अपने भारी भरकम सरीर को अपने घर  की  ओर घुमाती  है और अपनी व्यस्तता गिनाते हुए  वहा  से सरक लेती  है..... शर्मा जी का लड़का कुछ गुन्नाते हुआ वहां अपनी bike में पहुँचता है ........खडी  ओरते  अब ज्यादा वयवहार कुशल होते हुए ......डॉक्टर साहब आप कैसे    है का जाप सुरु कर देती है......डॉक्टर साहब को अपनी डॉक्टरी की  डिग्री पर उस वक़्त फक्र होने लगता है.......डॉक्टर साहब हँसते हैं .......डॉक्टर साहब की  उम्र तीस साल है .... सायद उस गोरे लड़के के बराबर ......
कमाल है सड़क काफी समतल कर दी  है.....भाई दाद देने पड़ेगी  उसकी जिसने ये किया....डोक्टर  साहब फुस्फुस्साते हुएनिकल लिए....शर्मा जी अपने बेटे के ओर देखते है.......जैसे अभी तक चली  टांग खीचाये  में वो अपनी बात को फिर टटोलने की कोशिश कर रहे हैं  ......ओरतो   की   हंसी रुक गयी  है.....वो कुछ गंभीर मुद्रा में है....जैसे   दिल में अटकी असली बात को    डॉक्टर साहब ने एक झटके में बोल दिया .....भीड़ तितर  बितर हो गयी है  मेने एक बार फिर सड़क को देखा और........कहा साबास हीरो......किसी घर से गाने की  आवाज़ आ रही है.......तोड़ेगे दिवार हम ...पायेंगे हम रास्ता.....यार हाँ.......मेने भी मन ही मन   कहा ...हाँ यार तुम जैसे  लोग रहे तो जरूर पायेंगे....
  

Wednesday, April 6, 2011

चादर से झाकता वो सख्स ........




"कैसे  हो" .... बड़ी हलकी से आवाज़ में उसने कहा था.......अपने घर के सबसे कसे हुए चोराहे   पर उनसे  मेरी   यूँ मुलाक़ात हो जायेगी  कभी सोचा नहीं था....आज भी  वो वैसे  ही  है पर  चहेरे की  रोनक अब गुजरे जमाने की  बात लगती है ...लगता है मानो  सिलवटे  पर पीस कर सारी हंसी को कहीं फैंक आयी हो...आज २ साल बाद उनका  यूँ मिल जाना ...मुझे  निशब्द कर देता है ...हमारी  चूप्पी  के फासले लगातार बड रहे है.........में चूप्पी  को तोड़ता हु और सर हिला के हामी भरता हु ठीक हु....आप कैसी है ....बड़े धीमे स्वर में .. मै  बोला।.....हाथो में चुडा और सर में सिंदूर देख..........शादी कर ली  आपने     मन में सोचता हु पर  कह नहीं पाता ।......

यहाँ कैसे...धीमे से बोलते हुए  ...  बड़ी ओप्प्चारिकता  मात्र मेने शब्दों  को अपने गले से  खीचा ....अपनी  टांगो  को दुसरी दिशा में हिलाते हुए में वहां से  निकलने की  कोशिश में हु...पर उसका ध्यान नहीं है उन इशारों  पर .....वो अपने पर्स के गुप्त खानों को खोलने बैठ    गयी शायद   कुछ ढूंड  रही है....


मुझे  याद है  आज भी जब मेरी  मुलाक़ात उनसे  पहली  बार हुई थी....अमित  ने मिलवाया था मुझे  उनसे ये कहते हु ... की ये है मेरी  सबसे प्यारी दीदी   ...आभा दी ....आज भी बस उनका निक्क नाम ही जानता हु........अमित मेरा कॉलेज का सबसे अच्छा  दोस्त था.....मेने पहली  बार कॉलेज की  लंका उसी  के साथ फतह की  थी......उस वक़्त मेरे लिए कॉलेज एक लंका की  तरह ही हुआ करता था........वो हर वक़्त मुझे  मेरे घर ठीक ९ बजे लेने पहुँचता ....और मेरे थोडा ना  नुकर करने पर पहला जुमला मारता .......अबे चल यार मस्ती करेंगे.......में भी उस पुरे जुमले में से सिर्फ एक शब्द  को पकड़ता मस्ती.....और बस चल देता उसके साथ......एक कमाल का प्राणी था वो जो रोते हुए को भी अपनी कई आवाजों से हंसाता .....और नहीं तो कम से कम कोशिश तो करता था........कॉलेज  में भी लड़कियों के बीच में ख़ासा फेमस   था वो अपनी हाज़िर ज़वाबी के लिए .......अपनी फॅमिली में दो बहनों का सबसे छोटा भाई   था.......उसे बस दो ही शोक   थे एक मिमिक्री और दूसरा आर्मी में जाने का .....हर वक़्त वो मुझे आर्मी क़ी  नई घटनाओ से अपडेट करता।.....मेरी  कुछ कुछ  चीजों को  लेकर उससे  ठन पड़ती थी ....वो भगवान् से ज्यादा  अपने पर भरोसा करता और ...में ठीक उसके उलट   ज्यादातर किस्मत का ढोल पीटता .......खैर में हर वक़्त जब भी उसके सामने बहस करने जाता  तो आपनी ढेर सारी आध्यात्मिक  बातो का जखीरा  उसके सामने खोल देता.....बहस लम्बी चलती ....एक घंटे बाद आभा दीदी चाय के प्यालो के साथ प्रकट होती ...और तब जाकर हमारी बातो की  तलवारे अपने अपने मयानो में वापस लौटती.......शाम ७ बजे में उसके घर से निकलता...कल फिर आना हारने  के लिए....वो फुस्फुस्सता .......और में हलकी सी  मुस्कान लिए चल देता....

यूँ तो अमित मेरे स्कूल में पड़ता था पर ७ साल एक ही स्कूल में होने के बावजूद भी मेरी  उससे कभी कोई ख़ास बात नहीं हुई .....वो स्कूल के  बड़े दबंग किसम के बच्चो  के साथ रहता...तो मेने भी कभी उसके करीब आने की  ज़हमत नहीं उठायी ....स्कूल छुटा तो सब यार दोस्त अलग अलग हो गए ...उसके भी और मेरे भी...कहते है दो अकेले  आदमी अक्सर करीब आ जाते है ....वही हमारे  साथ भी हुआ......दोनों ने कॉलेज में  सेम  सब्जेक्ट  लिए ताकि आगे के रास्तो में भी साथ चलना हो.....कॉलेज के दो साल कब कॉलेज की लेबो और लायेब्ररीयों के चक्कर  काटते काटते ख़तम हो गए पता ही नहीं चला.... हम घंटो सरवे  चौक पर बाते करते ...मुझे  आज भी याद है  c d S का फॉर्म खरीदते वक़्त उसने हाथ मेरे और करते हुआ कहा था .......अबे में एक दिन IMA में ट्रेनिंग ले रहा हूँगा और तू आएगा साला Salute   मारने मुझे ....अबे खयाल;इ पुलाव मत बना तो शायद हो भी जाये उसकी  बात काट ते  हुए मेने कहा....

फिर यूँ ही दिन आये और गए में  आपने थर्ड इयर के एक्साम में व्यस्त हो गया और न मेने उसकी  खबर ली  न उसने मेरी   .....एक दिन सुबह सुबह फ़ोन बजा  एक्साम से दो दिन पहले .....में एक्साम नहीं दूंगा ....अमित का फ़ोन था.....क्यूँ भाई..मेने कहा.....बस ऐसे ही बात को हंसी में टालते हुए  उसने  कहा......विश उ अल दी  बेस्ट फॉर यौर एक्साम बोला और फिर फ़ोन रख दिया....एक्साम खत्म  हुए तो मुझे  पता चला की अमित बहुत serious   है ICU  में भर्ती  है। ....मेने उससे कई बार contact   करने क़ी  कोशिश क़ी  पर हर बार फ़ोन स्विच ओफ्फ्फ।....एक दिन रात ९ बजे फ़ोन बजा दुसरे छोर पर अमित था......कैसा है ...बड़ी  सुस्त से आवाज़ में वो बोला .....अबे फ़ोन रखते क्यूँ हो तोड़ क्यूँ नहीं देते मेने बड़े बोख़लाहट  में उससे कहा ......उसने केवल हु में जवाब दिया...अपने गुस्से को शांत  कर मेने उसका हाल चाल  पूछा  ...ठीक हु........रोज injection खाता हु तीन। ........बड़े माज़किया अंदाज़ में उसने जावाब दिया........२० मिनट तक वो मुझे हंसाता रहा अपनी मिमिक्री से   उस रात में उसके  बातो  पर सारी रात   हँसता  रहा ......कुछ कुछ दिनों के अंतराल में अक्सर उससे फ़ोन  पर बात हो जाया  करती थी  ....वो  मुझे अपने ठीक होने के सामाचार देता.....एक दिन मेने उसे फ़ोन करने की  कोशिश की इस  बार फ़ोन फिर स्विच ओफ्फ्फ  ....तकरीबन में उसे १५ दिनों तक लागातार फ़ोन करने के कोशिश करता रहा मगर सब बेकार......कहीं से जुगत लगा मेने उसके पिताजी का नंबर हासिल कर लिया....उस पर   फ़ोन किया ... तो दुसरे और से एक रुवासी सी  आवाज़ ने फ़ोन उठाया ...और बड़े धीमे स्वर में  बोला कौन।....मेने अमित से बात करने की इच्छा ज़ाहिर की......."बाद में बात करेगा वो आप से...." वो बोली.......और फ़ोन रख दिया ....मेरे  एक्साम ख़तम  हुए तो में डेल्ही चला गया ...जब वापस लोटा तो .......ठीक घर पहुँचते  वक़्त  दरवाज़े पर फ़ोन घन घाना उठा....प्रदीप था ....."अमित घर लोट आया है" ...वो बोला ....उसकी  आवाज़ बड़ी  उदास सी  लगी मुझे ....में अभी आता हु.....इतना कहते साथ ही  मेने सामन घर में रखा और निकल गया उसके घर........प्रदीप मुझे वहीँ मिल गया...काफी  लोगो का तांता लगा था.......प्रदीप अमित का पडोसी था ...मेने उससे पूछा ...कैसा.....है.....बच नहीं पायेगा डॉक्टरों  ने जवाब दे दिया है ...वो बोला .....में सन्न  रह गया ........अब तक ७ लाख रुपये  लग चुके है ....अंकल जी ने पूरा profident fund तक लगा डाला .....सब रीसते दारों से उधार मांग  चुके है पर कोई उम्मीद नहीं

प्रदीप बोलता रहा और में  में सुनता रहा......एक अधेड़ उम्र की  महिला अमित की  माँ के उपर हाथ रख कर बोली  भगवान् की  मर्ज़ी के आगे किसके चलती है ....aunti की  पलके एक बार फिर भीग गयी ...रामदेवबाबा को क्यूँ नहीं दिखाते  .....शायद  वो महिला कहते कहते रुक गयी .......में धीमे से दुसरे दरवाज़े से अंदर पहुंचा ...वहां ....आभा दीदी उसके टॉयलेट   के डब्बे  को साफ़  कर रही थी ..."मिल सकता हु दीदी".. मेने धीमे से पूछा.....नहीं उसने  मना  किया है...वो बोली....वो फिर मुड़ी और बोली पूछ कर आती हु....वो कमरे में गयी जहाँ अमित लेटा था....मेने अमित को उस दरवाज़े की  ओट से देखा में सन्न रह गया.......उसके सर पर एक भी बाल नहीं था और वो  निहायत ही कमज़ोर हो गया था......सारे सर पर गांठे बंध गयी  थी ......में वहां से चुप चाप  चला आया......मेरे बालो को मत बिगाड़ वो हमेसा तीखे स्वर में  हम सब को  डांट दिया करता था  और  आज उसको इस हालत में देख कर ......बस मन में चीख निकल गयी........ठीक दस दिन बाद वो ज़िन्दगी की  डोर को तोड़ हमेसा के लिया चला गया......


अच्छा    कभी घर  आना......... मुझे  आभा दीदी की  आवाज़ ने फिर झकझोर  दिया...ज़रूर में बोला........उसे क्या हुआ था पता नहीं और मेरी  आज तक पूछने की  हिमत भी  नहीं हुई.....पर हाँ इतना ज़रूर   पूछ लिया दीदी से .....दीदी क्या  वो जानता था उसे क्या हुआ था........वो बोली हाँ .....कब से ......मेने बड़ा तीखा प्रसन पूछा...बोली शुरु  से....मै  हेरान था ...वो जिस तरीके से हंस के बात किया करता था......कभी लगा नहीं की वो अपनी म़ोत के बारे में जानता था.......वो आखरी बार उस ही   दिन रोया जिस दिन तुम आये थे.......और बिना बताये चले गए.....वो बड़ी  गंभीर  मुद्रा में बोली ........मुझे  लगा वो मुझ  से भी नहीं मिलना चाहता  होगा....नहीं उसने तुम्हे मिलने के लिए बुलाया था..पर.....वो कहते कहते रुक गयी ..में एक बार फिर स्तब्ध  और दुखी था.......वो हाथ को आँखों में फिराती है...और छुपा के आंसू पोछ  लेती है.....अपने नज़र के चश्मे  को फिर उतार   के     आँखों पर चडाती  है  और कहती  है........bye  विनोद...मगर मुझे कोई विनोदी अहसास नहीं हो रहा .है.......बस आ गयी है .......और मेने धीमे से घर क़ी ओर वापस आने  के लिए कदम बड़ा दिए हैं..... मगर मुझे  आभा दीदी के आँखों के नीचे ....... ज़मी  आंसुओं की  परत अभी भी परेसान कर रही है .............




....".ज़िन्दगी का फल्साफा ज़रा टेडा सा है 

समझने  को इसको थोडा ठहर जाया करता हु

रस्स्तो में लोग कम मिला करते है इसलिए 

ज़िन्दगी के मयखानों में ,महफिले सजाया करता हु "




Tuesday, March 29, 2011

वो सीधी सड़क






पैदल चलने का एक अपना ही  मज़ा है ...अरे पागल हो क्या गाडी होती तो बात ही  कुछ और होती ..नहीं नहीं यार खुद के पेरो से चलने में एक अलग ही  आनंद है ....झट से मेरे दिमाग में चलते पहले विचार ने दुसरे  पर हावी होते हुए  कहा .... धूप ऐसे जैसे   मानो   सूरज पर बैठे हो .....अभी अभी बस के रेलम पेल से उतर कर अपने कॉलेज  के तरफ चलना सुरु किया है  .....साला एक गाडी मिल जाती तो ......नाक पर आती उस पसीने की  बूँद को पोछ्ते हुए  में  मन ही मन चिलालाया .......कम्बक्तो  ने कॉलेज  भी  तो जंगल  में बना डाला है...अरे भाई  बनाना ही था तो सहर  में बनाते  ...चलते चलते फेफेड़े हाफ जाते हैं ....तभी जोर से कोई पुराना स्कूटर भन भानते  हुआ निकल पड़ा हमारे सामने से .....बस जैसे दिमाग में जलती आग ने विकराल रूप धारण कर लिया ......गलिया गए साले को....पर कुछ  ख़ास फरक नहीं पड़ा वो तो निकल लिया.... जब गर्दन घुमा कर देखे के शायद हमारे गालियाने की बहादुरी का कोई तो साक्षी  बना होगा...तो कंगाली ही  हाथ लगी .....ऐसा लगा खुद को गलिया गए अकेले में .....एक  फट फटी  मिल जाती तो(रन फिल्म के हीरो के याद आ गयी ) ....हम भी इस १५ मिनट लम्बी सड़क को फुर से पार कर लेते.....  जब भी इस सीधे लम्बी सड़क को देखता हु तो बड़े सारे टेड़े मेडे सवाल दिमाग में आते हैं...(जैसे बर्फ का गोला ...कोका कोला ...आमिर खान .....और डरमी  कूल पावडर )दिमाग में विचारों का दंगल अभी भी जारी है ....सर के नसे  चीगंडे मार मार कर कह रही है बस करो भाई इस धूप में चलना ...पर जो भी हो ..... में अभी कितना भी चीख लू  चीला लू मगर अगर दिन के अंत तक कोई चीज़ याद रहती है तो वो है ये १.५ कम लम्बी सड़क...एक नन्ही सी पसीने के बूँद ने इस वीरान सड़क पर मेरा  बखूबी साथ दिया है....गर्दन से होती हुई जो पीठ पर पहुँची है तो लगा जैसे ....जन्मो से प्यासी गरम रेत पर नदिया ने रास्ता बना दिया ...जब भी इस सड़क पर चलता हु ....तो नाजाने क्यूँ मेरी मुलाकात मुझ  से हो जाती है....रोज़ अपने से मिलने का  मौका ये १.५ k m लम्बी सड़क मुझे  देती  है ...पुरे दस मिनट तक अपने आप से और इस सड़क से  बात करता हु और कभी कभी तो इस अवधि को जान बुझ  कर बड़ा देता हु.. पौ पौ करती एक बड़ी गाडी जो अमूमन इस रास्ते पर कम ही  चलती  है  मेरे बगल से बिजली की  रफ़्तार से निकल गयी .....कसम से कहीं और होते तो बोलते उस गाडी वाले को रुक देखता हु तेरेको  ....मगर आधय्तम के गुंड भी भर दिए इस सड़क ने मुझ में ......एक दो लोग दिख  रहे है कॉलेज  की  और से आते हुए....बोझील  चेहरे लिए.....बड़ा धीरज     है इस सड़क में फिर भी  हंस के स्वागत करती  है    .....छननी  हथोडो  के आवाजें तेज़ हो गयी  हैं..शायद कहीं मरम्मत  का काम चल रहा है...मेरे कदम अभी हलके हैं...क्लास के लिए १५ मिनट लेट हो गया हु   ..... ......कॉलेज का गेट चिलचिलाता हुआ दिख रहा है ...थोडा थका हुआ.........शायद गर्मी से ......बैठ जा ...अरे अब invitation  दू क्या बैठ जा ....मेरे क्लास मेट की आवाज़ थी...जो या तो अक्सर लेट आता है अपनी कार में   ...या तो  आता ही  नहीं है.....उसके उस वक़्त पड़े खलल से  मुझे  ऐसा लगा जैसे वो मुझे  ज़बरदस्ती मेरे किसी जिगरी  दोस्त से अलग कर रहा है...मन हुआ बोल दू "नहीं बैठ ना तू निकल.....पर फिर एक प्लास्टिक इस्माईल   चेहरे पर चिपकाये कहा यार अच्छा  हुआ तू  आ गया "उसने कुछ ख़ास ध्यान नहीं दिया....उसके उंगलियाँ म्यूजिक प्लयेर की ओर बढ गयी...गाना चल रहा है गडडी मेरे देख आवाज़ मारदी  या शायद ऐसे ही कुछ ...आवाज़ वो कभी कम कभी ज्यादा करता है .....में गाडी में दुबक के बैठा हु ....उसको बोलने की हिमत नहीं है की गाना रोक दे ...में पीछे मुड मुड कर उस सड़क की तय की दूरी को आँखों के स्केल से नापने के कोशिश कर रहा हु .... आज रास्ता पांच मिनट में तय हो गया .......बड़ी टीस है मन में वो सड़क मुझसे दूर जा रही है............. कॉलेज  ख़तम होने को चंद रोस है.......

एए सड़क तुझ से अब किस मोड़ पर मिल पाना होगा....
में तो चला अब... तो  नए सहर   में मेरा ठीकाना होगा ....                                                                  फिर मिलेंगे  दोस्त 

Wednesday, March 23, 2011

नौकरी


वो बिस्तर पर लेटी आँखे ,
हर रोज़ मुझे पूछती है ,
रोज़ मेरे ओर वो एक 
पुराना सा सवाल उछाल देती है
पूछ ती  है बेटा जी तो लोगे न मेरे बीना 

मेरा यूँ कमरे में चले जाना उन्हें बहुत सालता है 
यूँ मेरा सवालों पर निरुत्तर हो जाना ,उन्हें  बहुत काटता है 
हाथो में देख  कागज़ के गठठे, वो आँख चमक जाती है ,
और देख उस उदास  चहेरे को वो ख़ुशी दरक जाती है 
 यह सिलसिला सालो साल की  एक कड़ी है 
आँख कब की  बंद हो जाती ,मगर
मौत  और मेरे बीच जीमेवारी खड़ी है

वो निगाहें  हर वक़्त कहती  है
तुम्हारे हाथ में में इस खंडर महल की चाबी दे देता 
मगर तुम्हारे और इस चाबी के बीच में नौकरी खड़ी है 


Monday, March 14, 2011

परम्परा


लोग पुछते हैं की क्या तुम जानते हो
हमारी परम्परानो और मान्यताओ को मानते हो 
मेने छोटे मन से पूछा ,कैसी मान्यता  
उत्तर मिला तुम नहीं जानते 
यह हिन्दू है ,यह भगवन को पूजता है
यह मुस्लिम, इसका सर केवल अल्लाह के लिए झुकता है 
और यह सिख है और यह ईसाई 

यह कैसी  मान्यता ,जो दिलो को दिलो से दूर करती  है 
यह कैसे परम्परा, जो जीवित स्त्री को सती करती है .
मेने कहा के मेरा मन तो इन सोचो से दूर है
दूर है ! इसका मतलब तू यहाँ की  नहीं विदेशी धुल है ..

यह कैसी  मान्यता जो त्योहारों पर पशुओं  का  नरसंघार करती  है 
और उन्हें के खून से अपने भाग्वान का श्रींगार करती है 
यह कैसे मान्यता ,की अपने सुख में दूसरो को दुःख दो 
गर्दन पर चाक़ू फिराओ और बोलो मत रो 

Thursday, March 3, 2011

किनारे पर रखा मेरे यादों का कटोरा



अक्सर में लिखना तब सुरु करता हूँ ,जब अपनी तबियत थोडा नासाज़ पाता हूँ .आज भी सर भारी है ....और ज़मीन आड़ी तीरची नज़र आ रही है ...तो सोचा दिमाग में कुछ  ज्यादा ख्याल भर गए है तो बेहतर होगा के उन्हें .....कागज़ पर उड़ेल दू ... तो बस बैठ गया बीस्तर  पर गुमटी मार कर ....अब काफी देर निठ्ला बेठा रहा तो लगा की  चलो पुरानी एल्बम ही  देखि जाये...काफी उथल पुथल मचाने के बाद आलमारी के भीतर वाले खाने में आख़िरकार वो यादों की  पोटली मिल ही गयी ......देखकर ख़ुशी इतनी हुई ,जैसे नजाने कौन सी  जंग जीत ली हो....खैर जैसे तैसे उस एल्बम को बहार निकाला और थोडा झाड़ा ,क्यूंकि आस पास कोई कपडा नहीं दिखा तो ...ज्यादा झाड़ने की जहमत भी नहीं उठाई ..
एल्बम को झटके से पकड़ कर बीच से खोल डाला...और देखा की कौन सी  फोटो मेरे आँखों  के सामने पहले आती  है...ऐसा खेल में छुटपन में बहुत खेलता था ...आज एक बार फिर कोशिश की ...सिर्फ कोशिश हाँ ....खैर जिस फोटो पर मेरी  पहली  नज़र पड़ी  ,पूरा दिन में उस ही फोटो को लेकर घूमता रहा ....वो कोने रखी एल्बम का अगला पन्ना पलटना तो में भूल ही गया...फोटो थी मेरे उन पुराने दोस्तों की ..जो नाजाने अब कीन कीन जगहों पर है .तस्वीर उतनी साफ़ नहीं थी ..काफी धुंदली थी ..पर उन सब दोस्तों के चेहरे ,और यादें एक दम तेज़ी से दिमाग में कौंध  गए ...वो स्कूल छुटने के आखरी दिन बहुत तेज़ बारिश हुई तो सबको ठीक से बाय भी नहीं कह पाया...कुछ दोस्त रूठे हुए थे...तो उनको सॉरी बोलने की  तमन्ना दिल में हीरह गयी..आज वो दोस्त सामने होते तो गले लगा कर कहता सॉरी  यार भूल तो नहीं जाओगे... पर वो इच्छा पूरी नहीं हो पायी तो आज उन सारे दोस्तों के फोटो देख मन ही मन सॉरी कह दिया..आजकल कॉलेज में हूँ और कॉलेज खत्म होने को चंद दिन रह गए हैं ...और कुछ लोग रूठे हुए हैं ..इस  फोटो को देख कर लगा की पांच साल हो गए ..स्कूल छोड़े  और एक फोटो मेरे हाथ में है और मुझे   अफ़सोस है ...की  उन दोस्तों को गले लगा कर नहीं बोल पाया" यार तुम बहुत याद आओगे " में नहीं चाहता की अगले पांच साल बाद मेरे हाथ में एक और फोटो हो ......और में फिर उनके फोटो को बोलू यार तुम बहुत याद आओगे ........तो मेने सोचा है की इस से पहले की मेरी  यादों के फूल  अपनी अपनी खुस्बूऐन लेकर अलग अलग बिखर जाये ....में इन्हें एक बार फिर से अपने अंदर भर लेना चाहता हु ... तो मेरा ख्याल है की किनारे  पर रखे मेरे यादों के कटोरे को खोलने का टाइम आ गया है...तो कैसा ख्याल है जनाब .....

Tuesday, March 1, 2011

मोड़


टक टक टक टक पेर है मेरे, वो सड़क अकेली लगती है .
पीछे छुटी वो मोड़ मुझे , कोई बिछड़ी सहेली लगती है .
इन पथरीले रास्तो  पर पत्थर की चुभन भी ठंडी  लगती है
ज़िन्दगी के इन सुनसान रास्तो में ,निकलती खून की अपनी  धार भी अत्ठ्कैली  लगती है 

उस पीछे छुटी हर मोड़ की  धुप नवेली लगती है.
 उन मोड़ो पर जाना कम होता है ,
पर नाजाने क्यूँ मुझे मेरी  सांस वहीँ पर दिखती  है
उन मोड़ो पर पहले वसंत दिख जाता था .
ज्यादा नहीं तो कहीं किसी कोने पर एक ,आत फूल खिल जाता था .

उसके यादों के पतझड़ को किताब में संभाले रखता हु
और जब देख सुखी पतियों को आँख भर आये
तो संभाले उसके किसी फूल को देख  हल्का सा हँसता हु.

Friday, February 18, 2011

उड़ते सन्देश पकड़ लेना.

आज हाथ काप रहे है, पर न जाने क्यूँ  लिखने का मन बना लिया है.......थेर्म मोमीटर  को मुह में कोच कर देखा तो बुखार कुछ  युएँ ही १०१ निकल आया ...बस भाई आज घर में  अकेला हूँ तो रोने का मन किया ....अपने आप को तसल ली  दे रहा हु की  अब बड़ा हो गया हूँ  तो रोना नहीं है..... तो बस   उ ट पटांग जो मन आ रहा है वो लिख रहा हु ताकि आंसूओं  को रोकने के बहाने कुछ   और कर सकू...नजाने आज बुखार में क्यूँ  कॉलेज के आखरी दिन की  तस्वीर उभर आयी  है.....उस तस्वीर ने जो सीहरण पैदा की कंठ रुंघ गया....जबरदस्ती अपना ध्यान हटाकर बहार खिड़की की  ओर करा ...ताकी बहार होती तेज़ बारिश मेरे मन में आते इन  ख्यालों को धो दे...में क्यूँ ऐसा सोच रहा हूँ  अभी तो कुछ  दिन है कॉलेज खतम होने को....पर केवल कुछ  दिन  है....न जाने क्यूँ  मु झे रह रह कर  वो हरी भाई का खोका याद आ रहा  है ...वो बारिश  में हरी भाई की  चाय....का मज़ा ही  कुछ  और था ....चाय कम पीना और दूसरो की  टांग  खीचना मन में अलग सी  गूद गुद्दी  पैदा करता है ......
वो दिन भी तो भुलाये नहीं भूलते जब माँ से झूट बोलकर रात रात तक  जंगले पार्टी की .....सुरेश भाई के खोके पर रूककर ढेरो प्रोब्लेम्स का सोलू शुन  ढूंडा .....सिर्फ सोलुशुन ढूँढने  के चक्कर में डेरों  क्लास्सेस बंक की.... रिपोर्ट कार्ड ख़राब होने की  बहुत  परवा रहती थी पर एक्साम का नहीं दोस्ती का....घंटो प्यार मोह्बात की  मुस्किलो का समाधान करना और बड़े बड़े भविष्य के ख्याली पुलाव तो सभी के बीच आपस में फेमस थे .... अभी ठण्ड बड गयी है.......और अब आंसों ऊ को छीपाने  में अपने बिस्तर में जा रहा हूँ ......
भई दो घंटे के ब्रेक के बाद वापस लोटा हूँ जैसे ही लगा की बस बुखार थोडा कम हो गया है तो बस आ गया लिखने....विचारों की  लय थोडा गड़बड़ा गए होगी पर ....फिर भी वहीँ लोटता हूँ  जहाँ छोड़ा था ...
अब तो दून विश्व्ह्वाविदयालय के दिन केवल उँगलियों पर गीन सकता हूँ ....वो बेमतलब का कॉलेज जाने का आहसास ही कुछ  और था ....छुट्टी के दिन भी में कभी कभी  कॉलेज हो आया करता था.......अस्सिग्न्मेंट उतने नहीं किये जितने दोस्तों के ख़ुशी के लिए उनके काम....पर फिर भी दोस्ती के मामले में  नंबर  फुल मिल जाते  थे .....
मु झ  जैसे स्टुडेंट को भी हर वक़्त आगे किया चाहे वो उत्  पटांग थीअटर हो या मज़े के लिए debate  बोलना .....हमेसा आगे बडाया......डी.उ की अभी हालिया सुरात थी तो उसकी जम्मी  भी हमी थे और आसमान भी ....हम अस्सी बच्चे एक फॅमिली की  तरह रहे .......अब फॅमिली हैतो मन मुटाव भी हुए ...पर आज तो कुल मिलकर सभी प्यार   भरे लड़ाई झगड़े याद आते है....दोस्तों जहाँ भी रहो  लेकिन मेरे उड़ते सन्देश पकड़  लेना....तुम्हारा साथी विनोद ......और ना जाने क्या क्या 

Monday, February 7, 2011

मरघट का ज़ल्लाद,



  में मरघट का ज़ल्लाद, में मरघट का ज़ल्लाद
                                   काली चमड़ी ,लठ हाथ में,
                                   मरघट में हूँ , में जीता ,
                                 लाशो के अम्बार, के ऊपर ,
                                 छाती ठोक हूँ , में कहता ,
                 में मरघट का जल्लाद, में मरघट का ज़ल्लाद
                                  लोगो के संताप के उपर
                        जलती हुई चिता के आग के उपर,
                             में अपनी किस्मत पर हसंता ,
                              आज कई दिनों के पश्चताप,
                          मिलेगा भर पेट भोजन आज
          में मरघट का जल्लाद, में मरघट का ज़ल्लाद

Wednesday, February 2, 2011

            यादों की  किताब    

ये दिन ये बाते तुम्हे याद आएँगी
हम रहे या न रहे ,पर तुम्हारे यादों की
किताब में अक्षर  बनकर उकर जाएँगी

कभी बुराई कभी अच्छाई,
कभी झूट ,कभी सच्चाई
कभी पलो को जीना ,
तो कभी  पलो को भूल जाने  को पीना
कभी जुड़े का फटना ,तो कभी फटे को सीना

वो सावन के बारिश के पानी को पीना
वो भूल सारे बंधन बच्चो में जीना
कभी  बच्चो से जीवन के कायदे समझना
वो सर्दी के मौसम में गुल का मुस्कराके खिलना
वो तनआही में याद्नो का धीमे से  पिघलना
बोलते  गले का युएँ रुंघ जाना
 ख़ामोशी का चील्ला के कहना, जरा रुक  जाना

वो प्यार के इज़हार पर दिल का धडकना
गलती करने पर वो माफ़ी का तड़का
वो चाय के चुस्की में जीब का जलना
दुसरो के दुःख में वो आन्सो के फुवारे
वो दुःख हमारे वो दोस्त का कन्धा

ढलती उम्र में वो  बचपन के यादें
स्कूल छूटने पर वो हजारो वादे
वो दोस्त के छुटने का एहसास पुराना
ये यादें सुनहरी इन्हें जीवन भर सजाना

Monday, January 17, 2011

कलम

लिखो लिखो बस लिखते रहो
शब्दों में बस तुम यूँ दिखते रहो
इन शब्दों में बस यूँ बंधा रहूँ
तुम लिखते रहो बस लिखते रहो

स्याही नीली न हो तो , काली से लिख दो
काली न हो तो , लाली से लिख दो
आँखों के आसूंओ ,को इसमें टपकाना
भावो और प्यार के समंदर बहाना
तुम लिखते रहो बस लिखते रहो

हाथो के पकड़ को कलम से कहना
चाहे राख रहूँ या दफ़न रहूँ
मेरे हाथो में सदा युएँ बने रहना
तुम बस लिखते रहो बस लिखते रहो

फिजाओं में घुले एस डर को लिख दो
हृदय में भरे इन तुफानो को लिख  दो
में चलता रहूँ और तुम कैद करो हर पल को
तुम लिखते रहो बस यूँ लिखते रहो

Twinkel your life

let d winds blow...
let d stars glow...
let d moon 2 shine in sky...
let ur ambitions 2 fly high...
let ur will 2 answer it why...
let everything be at its place...
let smile comes on ur face...
dont let u 2 be alone,wait sorrows to gone...
let life to play its tone...
but never feel low...
let ur emotions blow...
let ur face to glow...