HIGHWAY
वैसे तो समय हमारे पास बहुत रहता है पर आज हम कुछ ज्यादा ही व्यस्त रहे। वो क्या है न सारा दिन आज हाईवे पर बीता। पगला इम्तिआज़ अली हाथ्थिये पकड़ के बैठ गया और बोला चलो कहानी गढ़ते है। फिर क्या इम्तिआज़ को तो आप जानते ही है कथा वाचक की भूमिका को तो वो बड़े निराले अंदाज़ मे निभाते हैं. जो एक बार सुरु हुआ तो फिर सांस रोके आप पूरी कहानी सुन ही लोगे। ये बात तो तय शुदा है कहानी कहने का attractive अंदाज़ हे न लड़के का। तो भैया आज का दिन हम फिल्म के हाईवे पर चौकड़ी भरते रहे।या यूँ कह लो की गुम रहे यूँ भी खो जाना एक अलग अनुभव होता है , बहुत सा गिल्ट ,डर और नजाने कितने ऐसे यादें की पोटली है जो आपकी यादों की हार्डडिस्क से आसानी से उतरती ही नहीं।चाहे कितना धक्का दो पर मुई वो घिसे पीटी यादें ठसकने का नाम न ले । दिमाग यादों का और अनुभावों का नया स्लॉट मांगता है पर हर किसी को नहीं मिलता न ऐसा गोल्डन चांस। जैसा फिल्म की किरदार वीरा को मिलता है और उसके ऊपर सूट बूट वाले प्यार से इतर वो उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ .......... वाला प्यार। जिसको ये अनुभव हो जाए तो वो ज़िन्दगी के हाईवे पर हाई वेव्स का अनुभव करता ही है। इतनी ऊँची लहर जो एकदम मिठास वाली ज़िन्दगी को थोड़ा नमकीन बना दे । फिल्म हाई वे बूँद बूँद खुद को खुद के पास लाने की कहानी है।
डर और प्यार के बीच में होले होले रिसती ज़िन्दगी का अनुभव आपके दिमाग मे गहरे बैठ जाएगा ।डायरेक्टर इम्तिआज़ अली ने अपने कसे हुए हांथो का हुनर एक बार फिर से दिखाया है। कहानी शुरू होती है फिल्म की किरदार वीरा से जिसने जीवन के स्याह रंग को देखा है पर सफ़ेद अंदाज़ मे,,,,, पर वो ज़िन्दगी का सफ़ेद रंग भी देखती है स्याह अंदाज़ मे। शादी के एक रोज़ पहले वीरा का अपहरण हो जाता है और फिर सुरु होता है आड़ी तिरछी सड़को पर दौड़ता प्यार का ये खूबसूरत सफर। पूरी फिल्म मे वीरा किड्नैप्ड होने के बावजूद .। डर को अपने पास सरकने नहीं देती … महावीर की भूमिका मे रणदीप अपनी छाप छोड़ जाते हैं। कहानी की शुरुवात मे वीरा (आलिआ भट्ट ) का ये सफर थोड़ा डरावना लगता है पर अन्तःतः किडनैपर को ही वीरा की मासूमियत से प्यार हो जाता है और उससे भी ज्यादा उसकी हर हालात मे जीवन को गले लगाने की जीवटता से। अंग्रेजी मे इस वाले प्यार को स्टॉक होम सिंड्रोम कहते हैं। जिसमे किडनैपर को विकटिम से प्यार हो जाता है। ये कहानी मोटे तोर पर देखे तो दो उलझे व्यक्तित्वों की कहानी है,जो जब सुलझने लगते हैं। तब तक फिल्म अंत की ओरे अग्रसर हो जाती है। हाईवे आपकी आँखों मे आंसू, डर और हंसी तीनो एक साथ दे जायेगी। आलिआ भट्ट सच मे तारीफ़ की हक़दार हैं उन्होने फिल्म मे अपने किरदार को बखूबी जिया है। सहज अभिनय ,बेहतरीन पटकथा और उतने ही शानदार निर्देशन के लिए इम्तिआज़ अली और उनकी पूरी टीम ढेर सारी तालियों की हक़ दार है।
आज हम पूरी रात हाईवे पर ही बिताएंगे ......वो भी गाना सुनते हुए . ( ज़िन्दगी एक सफर है सुहाना )