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Tuesday, March 19, 2013

मजहब आज फिर से बन बेठा .है ज़मीदार हमारी बस्तियों का
इंसानियत अब उधारी पर जिंदा है ,
पथ्थरों पर भेजे जा रहे है ,अब प्यार के सन्देश
पहचान छुपाने को गरीबी अब बुर्का ओडे फिरती है
उन नुच्चे हुए मकानों से मन करता है पूछ लू ,
ये किस ज़मीदार की बस्ती है ,,,,,







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