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Tuesday, December 24, 2013

कि छोड़ दे हाथ ;उन बोनी उमीदों का
जिसके ठीगने कदमो का हर रोज़ उपहास उड़ता है.
फंसा के देख उँगलियाँ ;उन सूखे खेतों की दरारों पर .
जहाँ चटकती हड्डियों का इतिहास रहता है.

हर रोज़ वहाँ गरजते बादलों से अब सिहरन नहीं होती .
तेरे घर मे मेरी चमड़ी का ; एक नक्काशीदार लिबास रहता है .

मेरी बची हड्डियों का चाहे तो खुशबूदार झूमर बना देना .
इन हड्डियों मे ज़मी राख मे मेरा फिसलता खवाब रहता है.
और रह जाए कसर कोई फिर भी .
तो मेरा बेटा तेरा कर्जदार रहता है .

बचे रहना ज़ब तक बचो मेरे बच्चो.
पड़ोश के उस घर मे ज़मीदार रहता है. 

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