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Wednesday, August 19, 2015

ऑफिस नामा..भाग -2
ऑफिस में प्रवेश कर अपनी बची कुछी आवाज़ बटोर हमने चपराशी के समुख्ख किसी पुराने नोट के भाँती सवाल उछाल दिया ।वो भी जैसे तैयार ही बेठा था, सवाल को आतिशी अंदाज़ में पकड़ने को । हमने बिना लॉग लपेट के सीधा पूछा मेनेजर साहब से मिलना है । चपराशी का होंसला तुरन्त चौकीदार की तरह खड़ा हो गया । जैसे हम जैसे कबूतरबाज़ों से निबटना उसका रोज़ का काम हो । उसके कैक्टसनुमा आवाज़ ने शब्दों की कोई बाज़ीगरी न करते हुए एक काँटा मेरी और फिर फ़ेंक दिया । क्यों? .हमने तुरंत किसी फराटा धावक की तरह जवाब दिया । ज्वाइनइंग लेनी है । अब रास्ता बताएँगे। राजसाही चपराशि ने अपने जुबान पर नियंत्रण का भाव हमे जल्द दे दिया । "जी जरूर " वो कुछ इस अंदाज़ में बोला ,जैसे किसी नास्तिक के हाथ में बेमन से रखा फूल धक्का लगने भर से भगवान् के चरणों पर अर्पित हो जाता है ।
खैर वो हमे मेनेजर के पास ले गया । मेनेजर कोई युवा महिला थी ,मन प्रफुल्लित हुआ ,इतना की हाथ स्वतः उठा और मेनेजर के आगे पेंडुलम की मुद्रा बना ,हाथ मिलाने की इच्छा ज़ाहिर करने लगा ।उन्होंने देर लगाई ,पर हाथ मिला हमे किर्तार्थ किया ।हमने फोल्डर से बोल्डर नुमा जोइनिंग लैटर का गट्ठा निकाल उनकी टेबल पर रख डाला । हम आस्वस्त थे की जब तक वो पोथी की गुत्थी सुल्झायेंगी ,एक कप चाय हम तब तक गटक चूकें होंगे । पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ ,मेनेजर साहिब हमारी सुस्त सोच से काफी चुस्त निकली ।तुरंत बोली आपको यहाँ नहीं दूसरे डिपार्टमेंट में ज्वाइन करना है । हमारी निगाहें घूमके चपराशी पर टिक गयी। वो हमे और हम उसे कुछ देर तक गुस्से में घूरते रहे । इतनी बात तो अब तक हमारी समझ में आ गयी थी । की आप ऑफिस में भले अपनी इच्छा से करारे पठाखों की तरह जाओ ,पर ऑफिस में तुम्हे सीले और फिस्स होने का अहसास ही कराया जाएगा ।और करारे होने का भ्रम जो फिर भी न टूटा ,तो ऑफिस स्वयं को माचिस की तरह प्रस्तूत करेगा । की वो जली और आप फिस्स हो जाओगे।। खैर वहां से हमने रूख किया अपने डिपार्टमेंट की ओर.,..अंदर ज्यूँ ही प्रवेश किया ........(जारी है)

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