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Tuesday, December 30, 2014

Ass in पाताल

 मुझे अस्पताल से एक अजीब सी एलर्जी थी ,या यूँ कहूँ की सायद बैर भर था ,शायद क्या बैर ही था।एक बात जो में दिमाग में गाँठ बाँध चूका था। वो ये की अस्पताल की धुरी और डॉक्टर की छुरी से दूर ही रहो तो अच्छा ,पर अब ये बकलोल बातें सोच के भी तो कुछ नहीं होना।अस्पताल के आगे छाती फुलाये और माथे पर बड़ा सा एल लगाए आखिर कर हमको अस्पताल का गुरुत्वाअकर्षण अपनी और ले ही आया था ।हम  समझे की शायद इस जीवन हम को कोई बीमारी घेर  न पाईगी। पर जब गला घिरने लगा तो हमे समझते देर न लगी की हम घिर गए। अब भीतर घुसने की प्रक्रिया तो पूरी कर चुके है हम ।पर अंदर का माहोल हमे भयाक्रांत कर रहा है ।सामने केलिन्डर पर औंधे मुह पड़ा इंजेक्शन अपने आगे के पुछले भाग का बड़ा बेतरतीब पर्दर्शन कर रहा है । वहां से ठीक बाएं और एक और पोस्टर चस्पा है ,जिसमे खून की आँख नाक वाली बोतल मुस्करा कर कह रही है सेव ब्लड  ,पर ये क्या खूधैय बोतल बूँद बूँद खून टपका रही है। इस वक़्त नजाने हमे क्यों पुराने कई ब्लड बैंक में कार्यरत मित्रों की याद आ गयी । जो एक पार्ले जी बिस्कुट के बहाने खून का पूरा थैला शरीर से खींच लेते थे । दायें और चार कुर्सियां लावारिशों की तरह मुह कताड़े पसरी है। किसी  की तशतरी ने शायद अपना डेरा वहां नहीं डाला है ।सब लोग व्यस्त हैं ।

गर्दन पर्चों और फ़ाइल पर गड़ाये सब लोग मानव शरीर का कोई न कोई अंग हाथ में लिए फिर रहे हैं,मालुम पड़ता है अस्पताल नहीं अंग तस्करी का अड्डा हो। तभी एक व्यक्ति भन भनाते हुआ अपना आडा तिरछा सर लिए  हमारी छाती पर सीधा गड गया ।अबे क्या दीखता नहीं है। उसने मेरी और दहाड़ा है ।,नज़र दौड़ाये देखता हु तो उसकी किडनी कई  भागों में विभाजित हो अस्पताल की धुल चाट रही है। तो तू क्या है बे चूतियों का सरदार में बिफर जाता हु ।बीच बचाव कर किसी दिल वाली फ़ाइल लिए प्राणी ने मामला वही सुलटा दिया और हमसे पूछा , दिल का केबिन कहा मिलेगा ?,क्या? अजी डॉक्टर साहब कहा मिलेंगे ।हम गर्दन झटक के न बोल गए। दूसरा सख्स  फिर ज़मीन में बिखरे टुकड़ों को समेट फ़ाइल में सजा रहा है ।अपनी किडनी का सिलसिलेवार ब्यौरा ,ऐसे ही कई और भी है अलग अलग अंगों की फ़ाइल लिए ।,अपने अपने डॉक्टर का केबिन को  तलाश रहे है.।

खैर जैसे तैसे हम पहुँच लिए डॉक्टर की पर्चा खिड़की के आगे ,अम्मा असली जंग तो अब शूरु होगी। पीछे खड़े किसी अल्हाबादी भाई साहब ने तीखी टिप्पड़ी की। अब पर्चा चुवां चुआं न मिलता बेटा, मेहनत करनी पड़ती है ।साथ खड़े लड़के को कोई समझा रहा था।यूँ इतनी देर में हम पहुँच लिए पर्चा  खिड़की तक ,ज्यूँ ही हाथ घुसाया, दस हाथ और घुस लिए । खिड़की से पर्चा सहित हाथ निकलने में तकरीबन पांच मिनट लग गए। ,हाथ का पाव भर मांस टिकट खिड़की में लगे सरिया और लोगो के नाखूनो की भेंट चढ़ गया सो अलग। पर्चा हाथ लगा नहीं की हम सीधे उस भीमकाय बिल्डिंग के कई मोड़ों और चौराहों को पार कर हो लिए अपने वाले डॉक्टर के केबिन में ।अपनी भड़ भड़ाती हुई छाती और गड गड़ाती हुई आवाज़ को संभालते हम दाखिल हुए।  डॉक्टर के समुख  ।वहां डॉक्टर के हाथ में झूलती सुई को देख  हमारा दिल भक से बैठ गया । अपने फुले हुए रसगुल्ले जैसे शरीर को लिए डॉक्टर साहिब हमारी और घुमे । डनलप के जैसे मखमली हाथ हमारे पुरे शरीर का मुयाना करने को एक दम तैयार । गले में झूलते अपने यंत्र को हमारी तन्त्रिका पर चिपका दिया ।और ताबत तोड़ हमारी स्वास् को बड़े ख़ास अंदाज़ में परिक्षण कर डाला। जाओ इनका बलगम टेस्ट कराओ, साथ खड़े एकदम मटमैले अस्सिटेंट को हिदायति सन्देश जारी किया । हालांकि कोट तो अस्सिटेंट मोहदय ने डॉक्टर के माफिक ही पहना था ।ताकि आने वाले मरीज़  भ्रम में उसे  डॉक्टर से कम ना समझे ।और औधा न सही, कम से कम सम्मान तो डॉक्टर के साथ साझा कर ही पाये।पर  ऐसा कुछ हो पाना संभव नहीं था।जब तक की वो मैल जड़ित ,बदबूदार कोट अस्सिटेंट मोहदय के शरीर का अभिन्न हिस्सा बना हुआ था ।खैर हमे जो बोला गया हमने वो किया। हमने बड़े बल पूर्वक अपने गम को बहार धकेले ने की पुरजोर कोशिश की और अन्तःतः लो वो बहार बलगम के रूप में प्रस्तुत हो गया ।  पर अजी बलगम न हुआ कोहिनूर हिरा हुआ। झटक के लपका और डिब्बी में बंद । बोले दो दिन बाद आना ,अजी कहाँ आना एक बार जो गए तो लौटेंगे नहीं । धकियाते मुकियाते अपना रास्ता बना सीधे अस्पताल की खुली हवा की और अग्रसर हुए ।और अस्पताल को अलविदा कहा ।हलाकि दो दिन बाद फिर जाना है रिपोर्ट लेने । सोच रहे है ये कार्य किसी के मथे मड दे ।कोई है जो ये अहसान करेगा हम पर ,हाँ हाँ जानते हैं ।मुश्किल है, पर फिर भी ,अगर कोई हो तो आपका स्वागत है ।

(किन्ही कारण वश अगर हमे ही अस्पताल का विचरण करना पड़ा तो अगली पोस्ट् भी इसी पर होगी )।जय राम जी की

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