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Saturday, December 27, 2014

अजायबघर

अतीत मे घटी विभिषिका को छुपाने का हुनर भर ही तो है अजायबघर ।बडे कसे अंदाज़ मे तह किया गया ईतिहास, जो ठीक से सांस भी न ले सके, और अन्ततः पड़े पड़े मृत प्राय हो जाए। किन्ही कागज़ के टुकड़ों मे किन्ही बेसुध पड़ी मूर्तियों और तस्वीरों के पीछे,इन्ही कलाओं में तो पारंगत होता है "अजायबघर "।बड़ी निस्ठुर होती है अजाब घर की फिज़ाएँ ,चोटिल वर्तमान चाहे कितना गिड गिडाये ,चाहे विद्रोही हो जाए पर आजायबघर वर्तमान को भूतकाल से रूबरू होने नहीं देता ।और अंततः चमकते भविष्य की आस लगाये वर्तमान स्वयं भूतकाल हो जाता है । और आजायबघर का ये रहसय लोक अनवरत चलता रहता है।

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